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यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केन्द्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत (फैडरलिज्म) को स्वीकार किया गया है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करता है। हालांकि, भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत के बावजूद, यह केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है, जो प्रबल परिसंघवाद (फे़डरलिज़्म) की संकल्पना के विपरीत है। भारतीय संविधानRead more
भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत (फैडरलिज्म) को स्वीकार किया गया है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करता है। हालांकि, भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत के बावजूद, यह केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है, जो प्रबल परिसंघवाद (फे़डरलिज़्म) की संकल्पना के विपरीत है।
भारतीय संविधान का केंद्रीयकृत स्वरूप कई पहलुओं से स्पष्ट है। पहले, संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है, जिसमें केंद्र के पास कुछ महत्वपूर्ण शक्तियाँ अधिक हैं, जैसे रक्षा, विदेश नीति, और परमाणु ऊर्जा। यह शक्ति असंतुलन केंद्रीय सरकार को व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
दूसरे, संविधान के अनुच्छेद 356 और 357 के तहत, केंद्र सरकार को राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार प्राप्त है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ता है।
तीसरे, संविधान के अनुच्छेद 249 और 350B जैसे प्रावधानों के माध्यम से, केंद्र सरकार को राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति प्राप्त होती है, जैसे कि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर केंद्रीय विधायी नियंत्रण लागू किया जा सकता है।
ये तत्व भारत के परिसंघीय ढांचे को एक सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ दिखाते हैं, जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विपरीत है, जिसमें राज्यों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार दिए जाते हैं। हालांकि, इस संतुलन को बनाए रखते हुए, भारतीय संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक विशिष्ट शक्ति वितरण की व्यवस्था करता है, जो देश की विविधता और अखंडता को सुनिश्चित करता है।
See lessहाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2015]
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है। असुविधाएँ: अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाRead more
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है।
असुविधाएँ:
अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ आती हैं।
समन्वय की समस्याएँ: संघीय और राज्य एजेंसियों के बीच असंगठित प्रयास, राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभावी समाधान करने में देरी और असंगति पैदा कर सकते हैं।
संसाधन असमानता: राज्यों के बीच असमान संसाधन वितरण, क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
स्वार्थों का टकराव: विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच प्राथमिकताओं में टकराव, प्रभावी शासन को बाधित कर सकता है।
सहकारी परिसंघवाद के समाधान:
सुधारित समन्वय: यह संघीय और राज्य सरकारों के बीच संयुक्त पहलों और समझौतों को बढ़ावा देता है, जिससे राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा पर समन्वित प्रयास किए जा सकते हैं।
See lessसंसाधन साझेदारी: सहयोग की भावना से संसाधनों और विशेषज्ञता का साझा उपयोग संभव होता है, असमानता को कम करता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
एकीकृत रणनीति: यह नीति निर्माण में राज्य और संघीय उद्देश्यों को जोड़ता है, जिससे नीतिगत टकराव कम होते हैं और नीति की समग्रता में सुधार होता है।
लचीला शासन: यह राज्यों को संघीय कार्यक्रमों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति देता है, जिससे शासन की प्रतिक्रिया और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
इस प्रकार, सहकारी परिसंघवाद संरचनात्मक असुविधाओं को कम कर, बेहतर समन्वय, संसाधन समानता और नीति में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।
"संघवाद के भारतीय मॉडल की अत्यधिक केंद्रीकृत होने के कारण आलोचना की जाती है, लेकिन यह राज्यों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है।" विश्लेषण कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किRead more
भारतीय संघवाद की आलोचना अक्सर इसकी अत्यधिक केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण की जाती है, लेकिन साथ ही यह राज्य सरकारों को पर्याप्त अवसर और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। भारतीय संविधान में संघीय ढांचे को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्ति का वितरण सुनिश्चित किया गया है।
केंद्रवाद का पहलू: भारतीय संघवाद में केंद्र सरकार के पास महत्वपूर्ण शक्तियां और अधिकार हैं। संविधान की सातवीं अनुसूची में केंद्र, राज्य, और समवर्ती सूची के माध्यम से शक्ति का विभाजन किया गया है, लेकिन केंद्र के पास समवर्ती सूची में कानून बनाने की शक्ति होती है यदि राज्य सरकारों के साथ सहमति न हो। इसके अलावा, आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, जो राज्यों की स्वायत्तता को सीमित कर सकते हैं। इस कारण से, संघीय संरचना को केंद्रीकृत माना जाता है।
राज्यों को स्वायत्तता: इसके बावजूद, भारतीय संविधान राज्यों को कई महत्वपूर्ण अधिकार और स्वायत्तता भी प्रदान करता है। राज्यों के पास अपनी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नीतियों को आकार देने का अधिकार होता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और स्थानीय प्रशासन जैसे क्षेत्र राज्य सूची में आते हैं, जिनमें राज्य सरकारें स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती हैं। इसके अतिरिक्त, पंचायतों और नगर निकायों के माध्यम से स्थानीय स्वायत्तता को भी प्रोत्साहित किया गया है, जो स्थानीय समस्याओं का समाधान और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
विवाद और सुधार: संघवाद की इस संरचना पर आलोचना यह भी है कि केंद्रीकरण के कारण राज्यों के बीच समान विकास की खाई उत्पन्न हो सकती है और यह केन्द्र-राज्य संबंधों में असंतुलन पैदा कर सकता है। कई विशेषज्ञ और राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि राज्यों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि संघीय व्यवस्था अधिक संतुलित और प्रभावी हो सके।
इस प्रकार, भारतीय संघवाद की संरचना के दोनों पहलू – केंद्रीकरण और राज्य स्वायत्तता – संघीय प्रणाली की जटिलता को दर्शाते हैं। जहां केंद्रीकरण केंद्र सरकार की शक्ति को मजबूत करता है, वहीं राज्यों को दी गई स्वायत्तता उनके विकास और प्रशासनिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है।
See lessन्यायालयों के द्वारा विधायी शक्तियों के वितरण से संबंधित मुद्दों को सुलझाने से, 'परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धान्त' और 'समरस अर्थान्वयन' उभर कर आए हैं। स्पष्ट कीजिए । (150 words) [UPSC 2019]
'परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धान्त' और 'समरस अर्थान्वयन' भारतीय संविधान की संरचनात्मक और व्याख्यात्मक तासीर को समझने में महत्वपूर्ण हैं: 1. परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धान्त: इस सिद्धान्त के तहत, जब संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विवाद होता है, तो संघ की शक्तियाँ सर्वोच्च मानी जाती हैं। यह सिद्धान्Read more
‘परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धान्त’ और ‘समरस अर्थान्वयन’ भारतीय संविधान की संरचनात्मक और व्याख्यात्मक तासीर को समझने में महत्वपूर्ण हैं:
1. परिसंघीय सर्वोच्चता का सिद्धान्त:
इस सिद्धान्त के तहत, जब संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विवाद होता है, तो संघ की शक्तियाँ सर्वोच्च मानी जाती हैं। यह सिद्धान्त न्यायालयों द्वारा उन मामलों में लागू किया जाता है जहाँ संविधान के तहत संघीय ढांचे की प्राथमिकता होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई राज्य कानून संघीय कानून के साथ टकराता है, तो संघीय कानून को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे संघ की सर्वोच्चता सुनिश्चित होती है।
2. समरस अर्थान्वयन:
न्यायालय संविधान की धारा और उसकी विभिन्न स्तरीय व्यवस्थाओं को इस प्रकार व्याख्यायित करता है कि संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन बनाए रखा जा सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संविधान की प्रावधानों का प्रभावी और समरस तरीके से कार्यान्वयन हो, जिससे सभी स्तरों पर न्यायसंगत और समानुपातिक प्रशासन संभव हो सके। न्यायालय समरस अर्थान्वयन के माध्यम से विवादित मामलों में संतुलन और न्याय का लक्ष्य प्राप्त करने की कोशिश करता है।
इन सिद्धान्तों के माध्यम से, भारतीय संविधान संघीय संरचना में न्याय और संतुलन सुनिश्चित करता है।
See lessआपके विचार में सहयोग, स्पर्धा एवं संघर्ष ने किस प्रकार से भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है ? अपने उत्तर को प्रमाणित करने के लिए कुछ हालिया उदाहरण उद्धृत कीजिए । ((150 words) [UPSC 2020]
भारत का महासंघीय ढांचा सहयोग, स्पर्धा, और संघर्ष के मिश्रण से आकार लिया गया है। भारतीय संविधान ने संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण किया है, जिससे सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। लेकिन यह सहयोग अक्सर स्पर्धा और संघर्ष में बदल जाता है, जिससे संघीय ढांचे का विकास प्रभावित होता है। सहयोग का उदाहरRead more
भारत का महासंघीय ढांचा सहयोग, स्पर्धा, और संघर्ष के मिश्रण से आकार लिया गया है। भारतीय संविधान ने संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण किया है, जिससे सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। लेकिन यह सहयोग अक्सर स्पर्धा और संघर्ष में बदल जाता है, जिससे संघीय ढांचे का विकास प्रभावित होता है।
सहयोग का उदाहरण COVID-19 महामारी के दौरान देखा गया, जब केंद्र और राज्य सरकारों ने साथ मिलकर संकट का सामना किया। आर्थिक पैकेज और टीकाकरण अभियान में केंद्र-राज्य सहयोग ने प्रभावी रूप से कार्य किया।
स्पर्धा का उदाहरण GST लागू करने के दौरान देखने को मिला, जहाँ राज्यों ने राजस्व हिस्सेदारी के लिए मोलभाव किया। हालाँकि, अंततः यह स्पर्धा एक राष्ट्रव्यापी कर प्रणाली की स्थापना में सहायक रही।
संघर्ष का उदाहरण कृषि कानूनों के विरोध में देखा गया, जब राज्यों ने केंद्र के कानूनों का विरोध किया और उन्हें राज्य की स्वायत्तता पर अतिक्रमण के रूप में देखा।
इन तीनों तत्वों ने मिलकर भारतीय महासंघ को अधिक लचीला और सामयिक चुनौतियों के प्रति उत्तरदायी बनाया है।
See lessएक राज्य-विशेष के अन्दर प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर करने तथा जाँच करने के केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी० बी० आइ०) के क्षेत्राधिकार पर कई राज्य प्रश्न उठा रहे हैं। हालांकि, सी० बी० आइ० जाँच के लिए राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोके रखने की शक्ति आत्यंतिक नहीं है। भारत के संघीय ढाँचे के विशेष संदर्भ में विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
भारत के संघीय ढांचे के विशेष संदर्भ में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की जाँच के लिए राज्यों द्वारा दी गई सहमति और इसके क्षेत्राधिकार पर उठते प्रश्न महत्वपूर्ण हैं। संविधानिक प्रावधान: सहयोग और सहमति: भारतीय संविधान के तहत, कानून और व्यवस्था का मामला राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। CBI को केंद्रीयRead more
भारत के संघीय ढांचे के विशेष संदर्भ में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) की जाँच के लिए राज्यों द्वारा दी गई सहमति और इसके क्षेत्राधिकार पर उठते प्रश्न महत्वपूर्ण हैं।
संविधानिक प्रावधान:
सहयोग और सहमति: भारतीय संविधान के तहत, कानून और व्यवस्था का मामला राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। CBI को केंद्रीय जांच एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया है, लेकिन इसके कार्यक्षेत्र और जाँच की शक्ति पर राज्य सरकारों की सहमति आवश्यक है।
संविधानिक ढाँचा: अनुच्छेद 245 के तहत, राज्य की अधिकारिता राज्य के अधिकार क्षेत्र तक सीमित होती है, और किसी भी केंद्रीय एजेंसी को राज्य के अधिकार क्षेत्र में बिना सहमति के जाँच करने का अधिकार नहीं होता।
CBI का क्षेत्राधिकार:
सहमति की आवश्यकता: CBI की जाँच शुरू करने के लिए राज्य सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक है। इसका मतलब है कि राज्य सरकारों को किसी भी मामले की जाँच के लिए CBI को अधिकृत करने की शक्ति होती है। यदि राज्य सरकार सहमति नहीं देती, तो CBI जाँच नहीं कर सकती है।
आत्यंतिक शक्ति: हालांकि, CBI को “स्वतंत्र” माना जाता है, लेकिन राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोकना उसकी आत्यंतिक शक्ति को सीमित करता है। यह केंद्रीय एजेंसी की प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकता है, विशेषकर उन मामलों में जहाँ भ्रष्टाचार या गंभीर अपराध शामिल हैं और राज्यों की राजनीति से प्रभावित हो सकते हैं।
संघीय ढाँचा और न्यायिक समीक्षा:
संघीय संतुलन: भारत का संघीय ढाँचा राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति का संतुलन बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है। CBI की जाँच की प्रक्रिया में राज्यों की सहमति की आवश्यकता इस संघीय संतुलन को बनाए रखती है, लेकिन यह केंद्रीय एजेंसी की स्वतंत्रता को भी सीमित कर देती है।
न्यायिक समीक्षा: न्यायपालिका इस मुद्दे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि राज्य सरकारें अपनी सहमति का उपयोग अनुचित तरीके से न करें और CBI की जाँच को अवरुद्ध न करें।
इस प्रकार, CBI की जाँच के लिए राज्यों द्वारा दी गई सहमति और इसके क्षेत्राधिकार पर उठते प्रश्न भारत के संघीय ढांचे के मूल्यों और प्रावधानों को चुनौती देते हैं, जो राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति के संतुलन को बनाए रखते हैं।
See lessआपकी राय में, भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है ? (150 words)[UPSC 2022]
भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को काफी हद तक परिवर्तित किया है। पंचायतों और नगरीय स्थानीय निकायों को स्वायत्तता मिलने से स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा रहा है। यह विकेन्द्रीकरण स्थानीय विकास योजनाओं को अपनाने और कार्यान्वित करने में तेजी लाया हRead more
भारत में शक्ति के विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर शासन परिदृश्य को काफी हद तक परिवर्तित किया है। पंचायतों और नगरीय स्थानीय निकायों को स्वायत्तता मिलने से स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा रहा है। यह विकेन्द्रीकरण स्थानीय विकास योजनाओं को अपनाने और कार्यान्वित करने में तेजी लाया है, जिससे बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और प्रशासनिक पारदर्शिता में सुधार हुआ है। स्थानीय निकायों को वित्तीय और विधायी शक्तियाँ मिलने से वे क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को अधिक त्वरित और उपयुक्त ढंग से समझ सकते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं, जैसे कि भ्रष्टाचार, कमजोर संस्थागत क्षमताएँ और संसाधनों की कमी, जो प्रभावी शासन में बाधक हो सकती हैं। फिर भी, विकेन्द्रीकरण ने जमीनी स्तर पर प्रशासनिक दक्षता और उत्तरदायित्व में सुधार लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
See less"साथ आकर संघ बनाने" (कमिंग टुगेदर फेडरेशन) और "सबको साथ लाकर संघ बनाने" (होल्डिंग टुगेदर फेडरेशन) के बीच के अंतरों को उदाहरण सहित वर्णित कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
"साथ आकर संघ बनाने" और "सबको साथ लाकर संघ बनाने" के बीच कुछ मुख्य अंतर हैं। ये दोनों दृष्टिकोण संगठनों या समूहों के रूप में संघर्ष या संघ गठन के तरीके को दर्शाते हैं। साथ आकर संघ बनाने (कमिंग टुगेदर फेडरेशन): इस दृष्टिकोण में, संघ या समूह के सदस्यों को एकत्रित करने का मुख्य उद्देश्य होता है। इसमें सRead more
“साथ आकर संघ बनाने” और “सबको साथ लाकर संघ बनाने” के बीच कुछ मुख्य अंतर हैं। ये दोनों दृष्टिकोण संगठनों या समूहों के रूप में संघर्ष या संघ गठन के तरीके को दर्शाते हैं।
ये दो दृष्टिकोण संगठनिक संघर्षों या समूहों के गठन में अंतर दर्शाते हैं, जहाँ एक में नेतृत्व और उच्च स्तर का समर्थन महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरे में सभी सदस्यों के सहयोग और समानता को ज्यादा महत्व दिया जाता है।
See lessसंघीय सरकारों द्वारा 1990 के दशक के मध्य से अनुच्छेद 356 के उपयोग की कम आवृत्ति के लिये जिम्मेदार विधिक एवं राजनीतिक कारकों का विवरण प्रस्तुत कीजिए । (250 words) [UPSC 2023]
संघीय सरकारों द्वारा अनुच्छेद 356 के उपयोग की कम आवृत्ति: विधिक और राजनीतिक कारक 1. "विधिक कारक": "सुप्रीम कोर्ट की नीतिगत सीमाएँ": 1990 के दशक के मध्य से सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 356 के प्रयोग पर सख्त निगरानी रखी है। "S.R. Bommai v. Union of India (1994)" के निर्णय में, कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35Read more
संघीय सरकारों द्वारा अनुच्छेद 356 के उपयोग की कम आवृत्ति: विधिक और राजनीतिक कारक
1. “विधिक कारक”:
2. “राजनीतिक कारक”:
निष्कर्ष:
संघीय सरकारों द्वारा अनुच्छेद 356 के उपयोग की आवृत्ति में कमी के पीछे विधिक और राजनीतिक दोनों ही कारक हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और न्यायपूर्ण बनाने में योगदान किया, जबकि राजनीतिक कारकों ने संघीय संबंधों को स्थिर रखने की दिशा में कदम उठाए।
See lessभारत में सहकारी संघवाद को सुनिश्चित करने में विद्यमान विभिन्न चुनौतियों को रेखांकित कीजिए। साथ ही, सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के उपायों का मुझाव दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारत में सहकारी संघवाद को सुनिश्चित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: राज्यों के बीच असमान विकास: देश के विभिन्न क्षेत्रों में विकास का स्तर असमान है, जिससे सहकारी संघवाद को प्रभावित होता है। राज्यों की वित्तीय क्षमता में अंतर: कुछ राज्यों की वित्तीय क्षमता अन्य राज्यों से बेहतर है, जिससRead more
भारत में सहकारी संघवाद को सुनिश्चित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
राज्यों के बीच असमान विकास: देश के विभिन्न क्षेत्रों में विकास का स्तर असमान है, जिससे सहकारी संघवाद को प्रभावित होता है।
राज्यों की वित्तीय क्षमता में अंतर: कुछ राज्यों की वित्तीय क्षमता अन्य राज्यों से बेहतर है, जिससे संघीय व्यवस्था में असंतुलन पैदा होता है।
राजनीतिक पक्षपात: कभी-कभी राजनीतिक लाभ के लिए राज्य सरकारें कें द्र सरकार के सहयोग को नकार देती हैं।
कानूनी और संस्थागत चुनौतियां: कई बार संघ और राज्य के कानूनों और संस्थाओं में टकराव होता है।
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए कुछ उपाय हैं:
राज्यों के बीच संपर्क और समन्वय को बढ़ावा देना।
See lessवित्तीय संसाधनों का समुचित वितरण और राज्यों की क्षमता विकास।
राज्यों की आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान को बढ़ावा देना।
संविधान के प्रावधानों का उचित क्रियान्वयन।
इन कदमों से भारत में सहकारी संघवाद को मजबूत किया जा सकता है।