हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा ? (150 words)[UPSC 2020]
नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान? परिचय नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालRead more
नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान?
परिचय
नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालांकि, इसके लाभ और समस्याएं दोनों ही महत्वपूर्ण हैं और इनका आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।
लाभ
- सूखा का समाधान: नदियों को जोड़ने से पानी की आपूर्ति को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। उदाहरण के लिए, गंगा-यमुना लिंक परियोजना से गंगा और यमुना के जल संसाधनों का साझा उपयोग संभव हो सकता है।
- बाढ़ नियंत्रण: जब नदियों को जोड़ने से अतिरिक्त जल अन्य क्षेत्रों में प्रवाहित किया जा सकता है, तो इससे बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। पद्मा और यमुना लिंक के प्रस्तावित जोड़ने से बाढ़ के खतरे को कम करने की संभावना है।
- जल-परिवहन में सुधार: नदियों को जोड़ने से जल-मार्गों का विस्तार और सुधार किया जा सकता है, जो वाणिज्यिक परिवहन को बढ़ावा देगा। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (Ganga) को बेहतर बनाने की योजनाएं इसके उदाहरण हैं।
आलोचना
- पर्यावरणीय प्रभाव: नदियों को जोड़ने से पारिस्थितिक तंत्र में व्यापक बदलाव आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, कावेरी-गंगा लिंक परियोजना के खिलाफ कई पर्यावरणीय संगठनों ने आपत्ति जताई है, क्योंकि इससे नदी के प्रवाह और आसपास की वनस्पति पर प्रभाव पड़ सकता है।
- सामाजिक और राजनीतिक विवाद: नदियों को जोड़ने के कार्य से राज्यों के बीच जल वितरण विवाद पैदा हो सकते हैं। कृष्णा-गोदावरी लिंक परियोजना पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच विवाद इसका उदाहरण है।
- आर्थिक लागत: इस परियोजना की लागत अत्यधिक हो सकती है और इसे लागू करने में बहुत अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। नर्मदा परियोजना के तहत भी इसी तरह की समस्याएं देखी गई हैं, जहां उच्च लागत और देरी की समस्याओं का सामना किया गया।
निष्कर्ष
नदियों को आपस में जोड़ना एक दीर्घकालिक समाधान हो सकता है जो सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित कर सकता है। हालांकि, इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का समग्र आकलन करना और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। उचित नियोजन और कार्यान्वयन के माध्यम से ही इसके लाभों को अधिकतम किया जा सकता है।
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हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर दूरगामी प्रभाव **1. नदियों के प्रवाह में बदलाव: हिमालय के हिमनदों के पिघलने से गंगा, यमुन और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में बदलाव होगा। शुरू में, पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, लेकिन समय के साथ हिमनदों के घटने से जRead more
हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर दूरगामी प्रभाव
**1. नदियों के प्रवाह में बदलाव: हिमालय के हिमनदों के पिघलने से गंगा, यमुन और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में बदलाव होगा। शुरू में, पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, लेकिन समय के साथ हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति में कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए, गंगा का प्रवाह ग्लेशियरों के पिघलने के कारण अस्थिर हो सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है।
**2. बाढ़ का जोखिम: तेजी से पिघलने से ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) का जोखिम बढ़ता है। हाल ही में उत्ताराखंड में ग्लेशियर पिघलने और भूस्खलनों के कारण बाढ़ आई थी, जो इस खतरनाक परिदृश्य को दर्शाती है।
**3. जल की कमी: हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में जो ग्लेशियर-आधारित नदियों पर निर्भर हैं। इन क्षेत्रों में कृषि और पेयजल की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
**4. पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन: ग्लेशियरों के पिघलने से पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें ठंडे पानी पर निर्भर जीवों और वनस्पतियों की स्थिति प्रभावित हो सकती है। नदी के तापमान और प्रवाह में बदलाव से जल जीवों की विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
इस प्रकार, हिमालय के हिमनदों के पिघलने से भारत के जल-संसाधनों पर गंभीर और दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें जल प्रवाह की अस्थिरता, बाढ़ का खतरा, जल की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव शामिल हैं।
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