सिन्धु जल संधि का एक विवरण प्रस्तुत कीजिए तथा बदलते हुए द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में उसके पारिस्थितिक, आर्थिक एवं राजनीतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान? परिचय नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालRead more
नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान?
परिचय
नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालांकि, इसके लाभ और समस्याएं दोनों ही महत्वपूर्ण हैं और इनका आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।
लाभ
- सूखा का समाधान: नदियों को जोड़ने से पानी की आपूर्ति को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है, जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है। उदाहरण के लिए, गंगा-यमुना लिंक परियोजना से गंगा और यमुना के जल संसाधनों का साझा उपयोग संभव हो सकता है।
- बाढ़ नियंत्रण: जब नदियों को जोड़ने से अतिरिक्त जल अन्य क्षेत्रों में प्रवाहित किया जा सकता है, तो इससे बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। पद्मा और यमुना लिंक के प्रस्तावित जोड़ने से बाढ़ के खतरे को कम करने की संभावना है।
- जल-परिवहन में सुधार: नदियों को जोड़ने से जल-मार्गों का विस्तार और सुधार किया जा सकता है, जो वाणिज्यिक परिवहन को बढ़ावा देगा। राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (Ganga) को बेहतर बनाने की योजनाएं इसके उदाहरण हैं।
आलोचना
- पर्यावरणीय प्रभाव: नदियों को जोड़ने से पारिस्थितिक तंत्र में व्यापक बदलाव आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, कावेरी-गंगा लिंक परियोजना के खिलाफ कई पर्यावरणीय संगठनों ने आपत्ति जताई है, क्योंकि इससे नदी के प्रवाह और आसपास की वनस्पति पर प्रभाव पड़ सकता है।
- सामाजिक और राजनीतिक विवाद: नदियों को जोड़ने के कार्य से राज्यों के बीच जल वितरण विवाद पैदा हो सकते हैं। कृष्णा-गोदावरी लिंक परियोजना पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच विवाद इसका उदाहरण है।
- आर्थिक लागत: इस परियोजना की लागत अत्यधिक हो सकती है और इसे लागू करने में बहुत अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। नर्मदा परियोजना के तहत भी इसी तरह की समस्याएं देखी गई हैं, जहां उच्च लागत और देरी की समस्याओं का सामना किया गया।
निष्कर्ष
नदियों को आपस में जोड़ना एक दीर्घकालिक समाधान हो सकता है जो सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित कर सकता है। हालांकि, इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का समग्र आकलन करना और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। उचित नियोजन और कार्यान्वयन के माध्यम से ही इसके लाभों को अधिकतम किया जा सकता है।
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सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई एक महत्वपूर्ण समझौता है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में संपन्न किया गया था। इस संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। पूर्वी नदियाँ—सतलज, ब्यास, और रावी—भारत को दी गईं, जबकिRead more
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई एक महत्वपूर्ण समझौता है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में संपन्न किया गया था। इस संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। पूर्वी नदियाँ—सतलज, ब्यास, और रावी—भारत को दी गईं, जबकि पश्चिमी नदियाँ—सिंधु, झेलम, और चिनाब—पाकिस्तान को दी गईं। भारत को पूर्वी नदियों का पूरा उपयोग करने की अनुमति दी गई, जबकि पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग (जैसे कि सिंचाई, पनबिजली, और घरेलू उपयोग के लिए) किया जा सकता है।
पारिस्थितिक निहितार्थ:
संधि के कारण पश्चिमी नदियों के जल का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में प्रवाहित होता है, जिससे पाकिस्तान के पारिस्थितिकी तंत्र और कृषि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल आवश्यकताओं के कारण पश्चिमी नदियों पर बढ़ता दबाव पारिस्थितिकीय संकट का कारण बन सकता है।
आर्थिक निहितार्थ:
सिंधु जल संधि ने भारत और पाकिस्तान दोनों की कृषि अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, भारत की सीमित अधिकारिता के कारण पश्चिमी नदियों के जल से जुड़ी पनबिजली परियोजनाएँ आर्थिक विकास में पूरी तरह से योगदान नहीं कर पा रही हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों की कृषि, सिंधु प्रणाली पर अत्यधिक निर्भर है।
राजनीतिक निहितार्थ:
सिंधु जल संधि को दोनों देशों के बीच जल विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने का एक स्थायी समाधान माना गया है। हालाँकि, बदलते द्विपक्षीय संबंधों और बढ़ते तनाव के बीच, इस संधि को एक राजनीतिक हथियार के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में कई बार इस संधि की समीक्षा की मांग की गई है, विशेषकर तब जब भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बढ़ता है।
हालांकि संधि ने अब तक स्थायित्व बनाए रखा है, लेकिन दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और राजनीतिक अस्थिरता इसे खतरे में डाल सकती है। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में संधि की पुनः समीक्षा और जल प्रबंधन में सहयोग की आवश्यकता हो सकती है, ताकि दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित किया जा सके।
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