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शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य शीतयुद्ध के बाद, अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अनेक परिवर्तन हुए हैं, जिससे भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों को आकार मिला है। आर्थिक आयाम: भारत ने वैश्वीकरण की ओर बढ़ते हुए, अपने आर्थिक संबंधों को विस्तार दिया है। रुर्बू नीतियों के तहत, भारत नेRead more
शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
शीतयुद्ध के बाद, अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में अनेक परिवर्तन हुए हैं, जिससे भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों को आकार मिला है।
आर्थिक आयाम:
भारत ने वैश्वीकरण की ओर बढ़ते हुए, अपने आर्थिक संबंधों को विस्तार दिया है। रुर्बू नीतियों के तहत, भारत ने अमेरिका, जापान, आसियान और अन्य देशों के साथ व्यापारिक समझौतों को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए, भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौता (ASEAN-India FTA) ने क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा दिया है। इसके अलावा, “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे कार्यक्रमों ने घरेलू उत्पादन और विदेशी निवेश को आकर्षित किया है।
सामरिक आयाम:
सामरिक दृष्टिकोण से, भारत ने “सामर्थ्य आधारित सैन्य सहयोग” की नीति अपनाई है। अमेरिका के साथ न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप और COMCASA जैसे समझौतों ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया है। इसके अलावा, QUAD (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) जैसे मंचों के माध्यम से, भारत ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी सामरिक स्थिति को मजबूत किया है।
निष्कर्ष:
See lessइस प्रकार, शीतयुद्धोत्तर काल में भारत की पूर्वोन्मुखी नीति ने आर्थिक विकास को सशक्त किया है और सामरिक स्थिरता को बढ़ावा दिया है, जिससे वह एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है।