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अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध, अन्य राष्ट्रों के हितों का सम्मान किए बिना स्वयं के राष्ट्रीय हित की प्रोन्नति करने की नीति के द्वारा नियंत्रित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच द्वंद्व और तनाव उत्पन्न होते हैं। ऐसे तनावों के समाधान में नैतिक विचार किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2015]
नैतिक विचार और अंतर्राष्ट्रीय तनाव का समाधान 1. वैश्विक स्वास्थ्य संकट में सहयोग: कोविड-19 महामारी के दौरान, देशों ने वैक्सीन वितरण और स्वास्थ्य सहयोग में नैतिक दृष्टिकोण अपनाया। COVAX पहल, जिसमें उच्च आय वाले देश अपने संसाधनों को साझा कर रहे हैं, गरीब देशों को वैक्सीन प्रदान करने के लिए एक उदाहरण हRead more
नैतिक विचार और अंतर्राष्ट्रीय तनाव का समाधान
1. वैश्विक स्वास्थ्य संकट में सहयोग:
कोविड-19 महामारी के दौरान, देशों ने वैक्सीन वितरण और स्वास्थ्य सहयोग में नैतिक दृष्टिकोण अपनाया। COVAX पहल, जिसमें उच्च आय वाले देश अपने संसाधनों को साझा कर रहे हैं, गरीब देशों को वैक्सीन प्रदान करने के लिए एक उदाहरण है। इस नैतिक दृष्टिकोण से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ा और स्वास्थ्य संकट को सामूहिक प्रयास से हल करने की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
2. पर्यावरणीय संरक्षण:
पैरिस समझौता ने देशों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संयुक्त प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। यह समझौता नैतिक जिम्मेदारी पर आधारित है, जिसमें सभी देशों ने मिलकर कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा किया, यह मानते हुए कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव वैश्विक है और इसका समाधान वैश्विक सहयोग से ही संभव है।
3. मानवाधिकार संरक्षण:
म्यांमार संकट में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए नैतिक दबाव बनाया। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने म्यांमार पर मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर दबाव डाला, जिससे कि एक अधिक न्यायपूर्ण और नैतिक समाधान की दिशा में प्रयास किए जा सकें।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि नैतिक विचार देशों को एक साझा हित की ओर प्रेरित कर सकते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय तनाव और संघर्ष को कम किया जा सकता है।
See lessशक्ति, शांति एवं सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के आधार माने जाते हैं। स्पष्ट कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
शक्ति, शांति और सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का आधार 1. शक्ति (Power): अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शक्ति सबसे महत्वपूर्ण कारक है। शक्ति को आमतौर पर आर्थिक, सैन्य, और राजनीतिक रूप में मापा जाता है। अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता इस बात का उदाहरण है कि कैसे शक्ति का संतुलन वैश्विक राजनीति को प्रभRead more
शक्ति, शांति और सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का आधार
1. शक्ति (Power):
2. शांति (Peace):
3. सुरक्षा (Security):
इन तीन तत्वों—शक्ति, शांति, और सुरक्षा—के संतुलन से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की नींव मजबूत होती है और वैश्विक स्थिरता सुनिश्चित की जाती है।
See less'शक्ति की इच्छा विद्यमान है, लेकिन विवेकशीलता और नैतिक कर्त्तव्य के सिद्धांतों से उसे साधित और निर्देशित किया जा सकता है।' अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए । (150 words) [UPSC 2020]
शक्ति की इच्छा और विवेकशीलता तथा नैतिक कर्तव्य के सिद्धांत **1. शक्ति की इच्छा a. परिभाषा: शक्ति की इच्छा, जैसा कि फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा, वह स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिसके तहत राष्ट्र और नेता प्रभुत्व और नियंत्रण की दिशा में प्रयासरत रहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यह विशेष रूप से रणनीतिक लाभ औरRead more
शक्ति की इच्छा और विवेकशीलता तथा नैतिक कर्तव्य के सिद्धांत
**1. शक्ति की इच्छा
a. परिभाषा:
शक्ति की इच्छा, जैसा कि फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा, वह स्वाभाविक प्रवृत्ति है जिसके तहत राष्ट्र और नेता प्रभुत्व और नियंत्रण की दिशा में प्रयासरत रहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यह विशेष रूप से रणनीतिक लाभ और प्रभाव की खोज में दिखाई देती है।
b. हाल का उदाहरण:
चीन और अमेरिका के बीच की भूराजनीतिक प्रतिस्पर्धा इस इच्छाशक्ति को दर्शाती है, जहां दोनों देश आर्थिक और सैन्य सत्तासीनता के लिए संघर्षरत हैं।
**2. विवेकशीलता और नैतिक कर्तव्य द्वारा निर्देशन
a. विवेकशीलता:
राजनैतिक निर्णय विवेकशीलता के आधार पर लिए जा सकते हैं, जो दीर्घकालिक स्थिरता और सहयोग को प्राथमिकता देती है। पेरिस जलवायु समझौता इसका एक उदाहरण है, जिसमें देशों ने आपसी लाभ की बजाय वैश्विक भलाई को महत्व दिया।
b. नैतिक कर्तव्य:
अंतर्राष्ट्रीय मानक और नैतिक सिद्धांत, जैसे संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत, राज्य की कार्रवाइयों को नैतिक दिशा प्रदान करते हैं। भारत के शांति सैनिक अभियानों में नैतिक कर्तव्य की भावना से अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता को बढ़ावा मिला है।
निष्कर्ष:
See lessहालांकि शक्ति की इच्छा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में प्रमुख भूमिका निभाती है, इसे विवेकशीलता और नैतिक कर्तव्य के सिद्धांतों द्वारा साधित और निर्देशित किया जा सकता है, जैसा कि सहयोगात्मक समझौतों और नैतिक प्रथाओं के माध्यम से देखा जाता है।
पिछले सात महीनों से रूस और युक्रेन के बीच युद्ध जारी है। विभिन्न देशों ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र स्टैंड लिया है और कार्यवाही की है। हम सभी जानते हैं कि मानव त्रासदी समेत समाज के विभिन्न पहलुओं पर युद्ध का अपना असर रहता है। वे कौन-से नैतिक मुद्दे हैं, जिन पर युद्ध शुरू करते समय और अब तक इसकी निरंतरता पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है? इस मामले में दी गई स्थिति में शामिल नैतिक मुद्दों का औचित्यपूर्ण वर्णन कीजिए। (150 words) [UPSC 2022]
युद्ध के नैतिक मुद्दे: रूस-युक्रेन संघर्ष 1. मानवतावादी प्रभाव मानव त्रासदी: युद्ध के परिणामस्वरूप नागरिकों की जान-माल की भारी हानि होती है। रूस-युक्रेन युद्ध ने लाखों लोगों को विस्थापित किया और कई की मौत हो गई। नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए युद्ध की नैतिक वैधता पर सवाल उठते हैं। 2. युद्ध की वैधतRead more
युद्ध के नैतिक मुद्दे: रूस-युक्रेन संघर्ष
1. मानवतावादी प्रभाव
मानव त्रासदी: युद्ध के परिणामस्वरूप नागरिकों की जान-माल की भारी हानि होती है। रूस-युक्रेन युद्ध ने लाखों लोगों को विस्थापित किया और कई की मौत हो गई। नागरिकों के जीवन की रक्षा के लिए युद्ध की नैतिक वैधता पर सवाल उठते हैं।
2. युद्ध की वैधता
सत्यापित कारण: युद्ध का आरंभ नैतिक कारण और वैधता पर आधारित होना चाहिए। रूस का आक्रमण अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बहस का विषय है, और “न्यायपूर्ण युद्ध” के सिद्धांत के अनुसार, युद्ध का कारण उचित होना चाहिए।
3. अनुपातशीलता
सैन्य आवश्यकताएँ बनाम नागरिक नुकसान: अनुपातशीलता का सिद्धांत कहता है कि सैन्य कार्यवाही से नागरिकों को अनावश्यक हानि नहीं होनी चाहिए। हाल ही में रूसी हमलों में नागरिक क्षेत्रों की बमबारी ने अनुपातशीलता पर प्रश्न खड़ा किया है।
4. जवाबदेही
युद्ध अपराध: युद्ध के दौरान युद्ध अपराधों की जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय युद्ध अपराधों की जांच कर रहा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानकों का पालन हो सके।
इन नैतिक मुद्दों को समझना और उनका पालन करना युद्ध के मानवाधिकार और कानूनी मानकों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
See lessविदेशी वित्त पोषित अनुसंधान परियोजना के तहत विकासशील देशों में किए जाने वाले चिकित्सा अनुसंधान से उत्पन्न हो सकने वाले विभिन्न नैतिक मुद्दों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
विदेशी वित्त पोषित अनुसंधान परियोजनाओं के तहत विकासशील देशों में चिकित्सा अनुसंधान से कई नैतिक मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं: अनुसंधान की नैतिकता: विकासशील देशों में गरीब और कमजोर आबादी पर अनुसंधान के दौरान सूचनाओं की सही और स्पष्ट जानकारी देना और उनकी स्वीकृति प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। अक्सर,Read more
विदेशी वित्त पोषित अनुसंधान परियोजनाओं के तहत विकासशील देशों में चिकित्सा अनुसंधान से कई नैतिक मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं:
इन समस्याओं के समाधान के लिए, अनुसंधान परियोजनाओं को स्थानीय समुदायों के साथ पारदर्शी और सम्मानजनक ढंग से काम करना चाहिए, और सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुसंधान का लाभ स्थानीय लोगों तक पहुंच सके।
See lessहालांकि, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई संस्थान कार्यरत हैं, फिर भी, राष्ट्र अपने हितों की पूर्ति हेतु अक्सर नैतिक मूल्यों और इन संस्थानों के दिशा-निर्देशों की उपेक्षा कर देते हैं। उदाहण सहित चर्चा कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन जैसे कई संस्थान कार्यरत हैं। ये संस्थान शांति, सुरक्षा, और व्यापारिक निष्पक्षता के दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। फिर भी, राष्ट्र अक्सर अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए नैतिक मूल्यों और संस्थानों केRead more
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन जैसे कई संस्थान कार्यरत हैं। ये संस्थान शांति, सुरक्षा, और व्यापारिक निष्पक्षता के दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। फिर भी, राष्ट्र अक्सर अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए नैतिक मूल्यों और संस्थानों के दिशा-निर्देशों की उपेक्षा करते हैं।
उदाहरण के रूप में, संयुक्त राष्ट्र की आदिवासी अधिकारों पर घोषणा के बावजूद, कई देश अपने आदिवासी समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। ब्राज़ील में अमेज़न वर्षावन की वनों की कटाई और म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार, दोनों ही ऐसे उदाहरण हैं जहाँ राष्ट्रीय स्वार्थों ने अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों की अनदेखी की है।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि कैसे राष्ट्र अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक नैतिक मानदंडों की अनदेखी कर सकते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की प्रभावशीलता पर प्रश्न उठते हैं।
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