न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या कीजिये तथा भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
"लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता": मूल्यांकन 1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation - PIL): लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शRead more
“लोकहित का प्रत्येक मामला, लोकहित वाद का मामला नहीं होता”: मूल्यांकन
1. लोकहित वाद (Public Interest Litigation – PIL):
लोकहित वाद एक कानूनी उपकरण है जो न्यायपालिका को समाज के सामान्य हित और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देता है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
2. लोकहित और लोकहित वाद में अंतर:
- लोकहित वाद के मानदंड: सभी लोकहित के मामलों को लोकहित वाद के तहत नहीं लाया जा सकता। PIL की स्वीकार्यता के लिए इसे समाज के बड़े हिस्से की सामूहिक समस्याओं और मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन से जोड़ना आवश्यक है।
- हालिया उदाहरण: सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में “फिल्म प्रमोशन” के लिए लोकहित वाद की मांग को खारिज कर दिया, क्योंकि यह व्यक्तिगत लाभ से संबंधित था, न कि सामाजिक न्याय से।
3. प्रभाव और चुनौतियाँ:
- उचित उपयोग: PIL का उचित उपयोग विचारशीलता और सही समस्याओं पर केंद्रित रहना चाहिए। अन्यथा, यह अनावश्यक मुकदमों और न्यायपालिका की ओवरलोडिंग का कारण बन सकता है।
- हालिया उदाहरण: मध्यप्रदेश में रात 8 बजे के बाद शराब बिक्री पर PIL दायर की गई, जिसे न्यायालय ने सार्वजनिक महत्व से नहीं जोड़ा, और इस विवाद को अस्थायी राहत प्रदान की।
निष्कर्ष:
लोकहित का हर मामला लोकहित वाद का मामला नहीं होता। PIL को सामाजिक कल्याण और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए ही सीमित करना चाहिए, ताकि इसका उचित प्रभाव और सकारात्मक उपयोग सुनिश्चित हो सके।
न्यायिक सक्रियतावाद और भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसका प्रभाव 1. न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या: न्यायिक सक्रियतावाद वह न्यायिक दृष्टिकोण है जिसमें न्यायपालिका सामाजिक और संवैधानिक मुद्दों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। इसका उद्देश्य मूलभूत अधिकारों की रक्षाRead more
न्यायिक सक्रियतावाद और भारत में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के पारस्परिक संबंधों पर इसका प्रभाव
1. न्यायिक सक्रियतावाद की व्याख्या:
न्यायिक सक्रियतावाद वह न्यायिक दृष्टिकोण है जिसमें न्यायपालिका सामाजिक और संवैधानिक मुद्दों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करती है। इसका उद्देश्य मूलभूत अधिकारों की रक्षा और संविधान की व्याख्या के माध्यम से सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है।
2. भारत में प्रभाव:
निष्कर्ष:
See lessन्यायिक सक्रियतावाद ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को नया रूप दिया है, जिससे न्यायपालिका को सशक्त और सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिला है, और संविधानिक अधिकारों की रक्षा की जा रही है।