अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काय कर्मयोग किस प्रकार सहायक हो सकता हैं? विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
परिवार और समाज की भूमिका में मूल्यों का निर्माण 1. परिवार का प्रभाव प्रारंभिक शिक्षा: परिवार बच्चे को प्रारंभिक मूल्यों और आचार-व्यवहार का पहला सबक सिखाता है। उदाहरण के लिए, अच्छे आदर्श और सच्चाई की शिक्षा से बच्चे में नैतिक गुण विकसित होते हैं, जैसा कि सिंधु स्वाति, एक प्रसिद्ध शिक्षिका, ने अपने बचRead more
परिवार और समाज की भूमिका में मूल्यों का निर्माण
1. परिवार का प्रभाव
- प्रारंभिक शिक्षा: परिवार बच्चे को प्रारंभिक मूल्यों और आचार-व्यवहार का पहला सबक सिखाता है। उदाहरण के लिए, अच्छे आदर्श और सच्चाई की शिक्षा से बच्चे में नैतिक गुण विकसित होते हैं, जैसा कि सिंधु स्वाति, एक प्रसिद्ध शिक्षिका, ने अपने बच्चों में नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता दी।
- मूल्य आधारित अनुशासन: परिवार में अनुशासन और सकारात्मक प्रेरणा बच्चों के मूल्य निर्माण में सहायक होती है। जैसे, सुप्रिया सोलंकी, जिन्होंने अपने बच्चों में ईमानदारी और संगठन के महत्व को सिखाया।
2. समाज का प्रभाव
- सामाजिक मानक: समाज के सामाजिक मानक और संस्कार बच्चों की सोच और व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, स्वच्छ भारत अभियान ने समाज में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई और बच्चों में सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को प्रोत्साहित किया।
- सामाजिक सहभागिता: समाज में भागीदारी और समाज सेवा के अवसर बच्चों को सहानुभूति और समाज के प्रति जिम्मेदारी सिखाते हैं, जैसे युवा स्वच्छता मिशन ने युवाओं को समाज के प्रति उत्तरदायित्व का पाठ पढ़ाया।
निष्कर्ष: परिवार और समाज दोनों मिलकर मूल्यों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो बच्चों के समाजिक और नैतिक विकास को दिशा प्रदान करते हैं।
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अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका 1. निष्काम कर्मयोग का सार गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, नRead more
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका
1. निष्काम कर्मयोग का सार
गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर।
2. तनाव और चिंता को कम करना
परिणाम की चिंता से मुक्ति: निष्काम कर्मयोग द्वारा व्यक्तियों को परिणामों के बारे में चिंता करने की बजाय वर्तमान कार्य पर ध्यान केंद्रित करने का प्रेरणा मिलता है। यह दृष्टिकोण उन लोगों के लिए उपयोगी है जो जीवन के प्रदर्शन दबाव से ग्रस्त होते हैं। जैसे कि विद्यार्थियों और पेशेवरों में प्रदर्शन चिंता को कम करने के लिए यह सिद्धांत सहायक हो सकता है।
3. भावनात्मक सहनशीलता में वृद्धि
कर्तव्य और उद्देश्य की भावना: यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों में उद्देश्य खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो अवसाद के लक्षणों जैसे निराशा और नकारात्मकता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, ‘माइंडफुलनेस’ आधारित प्रथाएँ भी इसी तरह के उद्देश्य और फोकस को प्रोत्साहित करती हैं।
4. संतुलित जीवन की दिशा में योगदान
संतुलित दृष्टिकोण: निष्काम कर्मयोग जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकता है। आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य में भी समान दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं, जैसे कि ‘कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT)’, जो नकारात्मक सोच को चुनौती देती है और सकारात्मक कार्यों को बढ़ावा देती है।
5. वर्तमान समस्याओं में उपयोगिता
आधुनिक संदर्भ में अनुप्रयोग: गीता के निष्काम कर्मयोग को आज के संदर्भ में माइंडफुलनेस और तनाव प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से लागू किया जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर और संगठनों ने इस दृष्टिकोण को शामिल किया है, जिससे अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को प्रबंधित किया जा सके।
संक्षेप में, गीता का निष्काम कर्मयोग अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति को कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने, परिणामों से मुक्ति, और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
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