गुप्तकाल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास पर प्रकाश डालिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना "आर्यभटीय" में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं। आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। "सुष्रुतRead more
- खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना “आर्यभटीय” में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं।
- आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। “सुष्रुतसंहिता” में सर्जरी और चिकित्सा के अद्वितीय विधियों का उल्लेख है।
- वास्तुशास्त्र: प्राचीन वास्तुशास्त्र और मंदिर निर्माण में भौगोलिक और ध्वनिक विज्ञान का उपयोग किया गया, जो वास्तुकला के विज्ञान को दर्शाता है।
- धातु विज्ञान: दिल्ली का लौह स्तम्भ, जो जंग रहित है, प्राचीन धातु विज्ञान की उन्नति को प्रदर्शित करता है।
इन पहलुओं से प्राचीन भारतीय ज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों की गहराई का पता चलता है।
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गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईसवी) भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वर्णकाल के रूप में जाना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विकास हुए: गणित: गुप्तकाल में गणित में उल्लेखनीय उन्नति हुई। आर्यभट ने "आर्यभटीय" में शून्य और दशमलव प्रणाली का वर्णन किया। उन्होंने त्रिकोणमिति और अंकगणित के बुनियादी सिद्धांतों कीRead more
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईसवी) भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वर्णकाल के रूप में जाना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विकास हुए:
इन उपलब्धियों ने गुप्तकाल को भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
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