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गुप्तकाल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास पर प्रकाश डालिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईसवी) भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वर्णकाल के रूप में जाना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विकास हुए: गणित: गुप्तकाल में गणित में उल्लेखनीय उन्नति हुई। आर्यभट ने "आर्यभटीय" में शून्य और दशमलव प्रणाली का वर्णन किया। उन्होंने त्रिकोणमिति और अंकगणित के बुनियादी सिद्धांतों कीRead more
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईसवी) भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्वर्णकाल के रूप में जाना जाता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण विकास हुए:
इन उपलब्धियों ने गुप्तकाल को भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
See lessभारतीय सांस्कृतिक विरासत के वैज्ञानिक पहलुओं की विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2021]
खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना "आर्यभटीय" में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं। आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। "सुष्रुतRead more
इन पहलुओं से प्राचीन भारतीय ज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों की गहराई का पता चलता है।
See lessकोरोना महामारी काल में भारतीय संस्कृति ने विश्व को किस प्रकार से प्रभावित किया ? (200 Words) [UPPSC 2023]
कोरोना महामारी के दौरान भारतीय संस्कृति ने विश्व को कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया: योग और ध्यान: महामारी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन के लिए योग और ध्यान की प्राचीन भारतीय विधियाँ अत्यधिक लोकप्रिय हुईं। विश्वभर में लोगों ने ऑनलाइन योग कक्षाएँ और ध्यान सत्रों का लाभ उठाया, जिससेRead more
कोरोना महामारी के दौरान भारतीय संस्कृति ने विश्व को कई महत्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित किया:
इन तरीकों से भारतीय संस्कृति ने महामारी के कठिन समय में सांस्कृतिक, स्वास्थ्य, और सामुदायिक दृष्टिकोण से वैश्विक प्रभाव डाला।
See less600-300 ईसा पूर्व में मानव के सामाजिक-आर्थिक विकास में लौह खनिज की भूमिका का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
Role of Iron Mineral in Social-Economic Development (600-300 BCE) 1. Agricultural Advancements: The use of iron revolutionized agriculture by improving tools like plows and hoes. These iron tools enabled more efficient soil cultivation, leading to increased crop yields and expanded agricultural actiRead more
Role of Iron Mineral in Social-Economic Development (600-300 BCE)
1. Agricultural Advancements: The use of iron revolutionized agriculture by improving tools like plows and hoes. These iron tools enabled more efficient soil cultivation, leading to increased crop yields and expanded agricultural activities. This advancement supported growing populations and contributed to economic stability.
2. Economic Growth: Iron facilitated the development of metalworking industries and trade networks. Iron weapons and tools became crucial for military and craftsmanship, boosting economic activities. For example, Iron Age societies in India and Europe saw enhanced trade and technology due to iron’s widespread use.
3. Social Impact: The introduction of iron also impacted social structures. The ability to produce iron tools and weapons led to the rise of more complex societies and state formation. For instance, the Magadhan Empire in ancient India utilized iron for both agriculture and military purposes, leading to its expansion.
Conclusion: From 600-300 BCE, iron played a crucial role in enhancing agricultural productivity, stimulating economic growth, and transforming social structures, thereby contributing significantly to human socio-economic development.
See lessप्राचीन भारत में 'प्रयागराज' के सांस्कृतिक महत्त्व का वर्णन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
1. धार्मिक महत्व: प्रयागराज, जिसे पहले प्रयाग कहा जाता था, गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। इसे तीर्थराज के रूप में माना जाता है। यहां पर कुम्भ मेला का आयोजन होता है, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2023 के कुम्भ मेला में लाखों तीर्थयात्री पहुंचे, जो इस स्थल की धार्मिक महRead more
1. धार्मिक महत्व: प्रयागराज, जिसे पहले प्रयाग कहा जाता था, गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। इसे तीर्थराज के रूप में माना जाता है। यहां पर कुम्भ मेला का आयोजन होता है, जो हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2023 के कुम्भ मेला में लाखों तीर्थयात्री पहुंचे, जो इस स्थल की धार्मिक महत्वपूर्णता को दर्शाता है।
2. साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व: प्रयागराज का उल्लेख महाभारत और ऋग्वेद में मिलता है, जो इसके प्राचीन सांस्कृतिक महत्व को प्रमाणित करता है। इस स्थल का संबंध प्राचीन हिंदू ग्रंथों और इतिहास से जुड़ा हुआ है।
3. संस्कृतिक प्रभाव: प्राचीन भारत में, प्रयागराज को एक प्रमुख सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में देखा गया। यहां के प्राचीन मंदिर और गुरुकुल भारतीय संस्कृति और शिक्षा के महत्वपूर्ण स्थल थे।
निष्कर्ष: प्रयागराज का सांस्कृतिक महत्व प्राचीन भारत में धार्मिक, साहित्यिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक था, जो इसकी समृद्धि और परंपराओं को दर्शाता है।
See lessगुप्तकाल को प्राचीन भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' क्यों कहा जाता है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईस्वी) को प्राचीन भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय सांस्कृतिक, कला, विज्ञान, और प्रशासनिक क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति और समृद्धि देखी गई। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: 1. **सांस्कृतिक उन्नति**: गुप्तकाल में भारतीय कला और वास्तुकला ने उत्Read more
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईस्वी) को प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय सांस्कृतिक, कला, विज्ञान, और प्रशासनिक क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति और समृद्धि देखी गई। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. **सांस्कृतिक उन्नति**: गुप्तकाल में भारतीय कला और वास्तुकला ने उत्कर्ष प्राप्त किया। अजंता-एलोरा की गुफाएँ और खजुराहो के मंदिर इस काल की अद्भुत स्थापत्य कला के उदाहरण हैं। गुप्तकाल में धार्मिक और साहित्यिक रचनाएँ भी महत्वपूर्ण थीं, जैसे कि कालिदास की महाकाव्य रचनाएँ (शकुन्तला, मेघदूत) और भवभूति की काव्य रचनाएँ।
2. **वैज्ञानिक और गणितीय प्रगति**: गणित और खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण उन्नति हुई। आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे वैज्ञानिकों ने खगोलशास्त्र और गणित में योगदान दिया, और ‘शून्य’ और दशमलव प्रणाली का विकास इस काल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक था।
3. **अर्थशास्त्र और प्रशासन**: गुप्तकाल में व्यापार और अर्थव्यवस्था ने प्रगति की। प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत थी, और शांति और स्थिरता ने आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।
4. **धार्मिक सहिष्णुता**: यह काल हिन्दू धर्म के विकास और बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए जाना जाता है। धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न धार्मिक विचारों का समर्थन किया गया।
इन कारणों से गुप्तकाल को ‘स्वर्ण युग’ की संज्ञा दी गई, जो भारतीय इतिहास का एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली काल था।
See lessप्राचीन भारतीय ज्ञान के उन बिन्दुओं को स्पष्ट करिये जिनके आधार पर भारत को 'विश्वगुरु' अभिहित किया गया। (200 Words) [UPPSC 2022]
भारत को 'विश्वगुरु' की उपाधि देने के पीछे कई प्राचीन भारतीय ज्ञान के बिन्दु हैं, जो इसकी महान सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को दर्शाते हैं: 1. **वेद और उपनिषद**: वेद और उपनिषद भारतीय ज्ञान परंपरा के मूलाधार हैं, जो न केवल धार्मिक बल्कि दार्शनिक और वैज्ञानिक ज्ञान का समावेश करते हैं। वेदों में ब्रह्मा,Read more
भारत को ‘विश्वगुरु’ की उपाधि देने के पीछे कई प्राचीन भारतीय ज्ञान के बिन्दु हैं, जो इसकी महान सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को दर्शाते हैं:
1. **वेद और उपनिषद**: वेद और उपनिषद भारतीय ज्ञान परंपरा के मूलाधार हैं, जो न केवल धार्मिक बल्कि दार्शनिक और वैज्ञानिक ज्ञान का समावेश करते हैं। वेदों में ब्रह्मा, शिव और विष्णु जैसे देवताओं की विशेषताओं का वर्णन है, जबकि उपनिषद आत्मा, ब्रह्मा और मोक्ष के गहरे दार्शनिक विचार प्रस्तुत करते हैं।
2. **आयुर्वेद और योग**: आयुर्वेद, भारतीय चिकित्सा पद्धति, और योग, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए हैं, ने दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवनशैली पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। पतंजलि की ‘योगसूत्र’ और चरक संहिता जैसे ग्रंथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं।
3. **गणित और खगोलशास्त्र**: भारतीय गणितज्ञों ने शून्य और दशमलव प्रणाली का विकास किया, जो आधुनिक गणित की नींव है। आर्यभट्ट और भास्कर जैसे वैज्ञानिकों ने खगोलशास्त्र और गणित में महत्वपूर्ण योगदान किया।
4. **साहित्य और कला**: महाकाव्य जैसे महाभारत और रामायण, जो न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक साहित्यिक धरोहर का हिस्सा हैं, ने सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा का प्रसार किया। भारतीय कला, संगीत और नृत्य भी विश्वव्यापी पहचान प्राप्त कर चुके हैं।
इन सभी ज्ञानवर्धक पहलुओं ने भारत को प्राचीन काल में एक प्रमुख शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया, जिसके कारण इसे ‘विश्वगुरु’ का दर्जा मिला।
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