जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं न कि आदिम पहचान से। चर्चा कीजिये । (200 Words) [UPPSC 2022]
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है। 2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्म और नृजातीय हिंसा कीRead more
धर्मनिरपेक्षता का मूल सिद्धांत
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत किसी भी राज्य या समाज को धार्मिक समानता और तटस्थता पर आधारित होने की आवश्यकता का प्रतिक है। इसका उद्देश्य सभी धर्मों को समान सम्मान देना और धर्म के आधार पर भेदभाव को समाप्त करना है।
2. धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति
धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति आमतौर पर धार्मिक और जातीय आधार पर समाज में विभाजन और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। यह राजनीति धर्म और जाति के नाम पर संघर्ष और अशांति को उत्तेजित करती है, जिससे एकता और सामूहिक शांति प्रभावित होती है।
3. हाल के उदाहरण
धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण के सिद्धांत के विपरीत, हिंसा और धार्मिक तनाव के उदाहरण हाल ही में देखने को मिले हैं। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विवादों ने धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया। दिल्ली हिंसा (2020) भी इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे धार्मिक और जातीय आधार पर राजनीति हिंसा को जन्म देती है।
4. धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियाँ
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति को धार्मिक पहचान और जातीय राजनीति द्वारा चुनौती दी जाती है। जब राजनीतिक दल धार्मिक वोटबैंक को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाते हैं, तो इससे धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना प्रभावित होती है। पोलराइजेशन और साम्प्रदायिक बयानबाज़ी भी इस पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
5. समाधान और भविष्य
धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने के लिए, समाज में समरसता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षा और संवाद के माध्यम से धार्मिक और जातीय सामंजस्य को प्रोत्साहित किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के अधिकारों की रक्षा करना धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस प्रकार, धर्म और नृजातीय हिंसा की राजनीति धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के विपरीत जाती है और इसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
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जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न प्रारंभ भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जRead more
जातीय गठजोड़: धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न
प्रारंभ
भारतीय राजनीति में जातीय गठजोड़ का सिद्धान्त है। कुछ लोगों का मानना है कि जातीय पहचान आदिम तथा अपरिवर्तनशील है, जबकि अन्य लोग मानते हैं कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं। इस चर्चा में हम देखेंगे कि जातीय गठजोड़ धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारकों से उत्पन्न होते हैं, न कि आदिम पहचान से।
धर्मनिरपेक्ष तथा राजनीतिक कारक
आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व: ब्रिटिश साम्राज्य की अवधि में जातियों के लिए आरक्षण तथा प्रतिनिधित्व की नीति ने जातिय आधारित राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई। यह नीति ने जातिय आधारित दलों और गठजोड़ों की स्थापना में सहायता की, जिनकी política पावर और लाभ प्राप्त करने में अधिक रुचि थी न कि आदिम पहचान से।
recent example
2019 लोक सभा चुनावों में कई राज्यों में जातीय गठजोड़ों की स्थापना देखी गई। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी तथा राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोड़ा बनाया। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस तथा अन्य दलों के साथ गठजोड़ा बनाया।
समाप्ति
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