भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
भारतीय संविधान के "आधारभूत ढांचा सिद्धान्त" के विकास एवं प्रभाव की विवेचना विकास: प्रस्तावना: "आधारभूत ढांचा सिद्धान्त" (Basic Structure Doctrine) की शुरुआत केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले से हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धान्त को स्थापित किया कि संसद संविधान को संशोधित कर सकती है, लेकिनRead more
भारतीय संविधान के “आधारभूत ढांचा सिद्धान्त” के विकास एवं प्रभाव की विवेचना
विकास:
- प्रस्तावना: “आधारभूत ढांचा सिद्धान्त” (Basic Structure Doctrine) की शुरुआत केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले से हुई। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धान्त को स्थापित किया कि संसद संविधान को संशोधित कर सकती है, लेकिन उसकी आधारभूत संरचना को नहीं बदल सकती।
- विकास: इस सिद्धान्त के अंतर्गत, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में इसके तत्वों को स्पष्ट किया। इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राजनारायण (1975) और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत सरकार (1980) में, न्यायालय ने यह तय किया कि लोकतंत्र, विधायिका की स्वतंत्रता, और संविधान का मूल ढांचा संविधान संशोधनों से अपरिवर्तित रहना चाहिए।
- विस्तार: एल. चंद्रकुमार बनाम भारत सरकार (1997) और आई.आर. कोहली बनाम तमिलनाडु राज्य (2007) जैसे मामलों में, इस सिद्धान्त का दायरा बढ़ाया गया, जिसमें न्यायिक समीक्षा और संघीय संरचना की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया।
प्रभाव:
- संवैधानिक सुरक्षा: इस सिद्धान्त ने संविधान की मूल भावना और लोकतांत्रिक ढांचे को सुरक्षित किया है। उदाहरण के लिए, 2019 में नागरिकता संशोधन कानून पर आलोचनाओं के बावजूद, न्यायालय ने इसे संविधान की मूल संरचना के खिलाफ नहीं पाया।
- न्यायिक समीक्षा: यह सिद्धान्त न्यायपालिका को संविधान संशोधनों की समीक्षा करने की शक्ति देता है, जिससे संसद की असीमित शक्ति पर नियंत्रण रहता है। 2019 में जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति पर इस सिद्धान्त का प्रयोग किया गया।
- संविधान की स्थिरता: आधारभूत ढांचा सिद्धान्त ने संविधान की स्थिरता और निरंतरता को सुनिश्चित किया है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच संतुलन बनाए रखा गया है।
निष्कर्ष: “आधारभूत ढांचा सिद्धान्त” ने भारतीय संविधान की मूल संरचना को संरक्षण प्रदान किया है, जिससे संविधान की स्थिरता और न्यायिक समीक्षा की भूमिका को सुनिश्चित किया गया है। यह सिद्धान्त संविधान की अनिवार्यता और संवैधानिक लोकतंत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
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भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि "किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।" स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धाRead more
भारत के संविधान में जीवन का अधिकार की समीक्षा
संविधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के धारा 21 के तहत जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, जो कहता है कि “किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।”
स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता: धारा 21 में जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है। इसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, और जीवन की गुणवत्ता शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे “जीवन की गुणवत्ता” के हिस्से के रूप में मान्यता दी है, जिसमें आवास, शिक्षा, और काम के उचित हालात भी शामिल हैं।
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष: धारा 21 का अधिकार संविधान के मौलिक अधिकारों में प्रमुख है और इसे केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं माना जा सकता। यह आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं के समग्र दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
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