भारत में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
भारत में संघीय ढाँचा: विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का समायोजन 1. संघीय ढाँचा का समायोजन: संविधान की संरचना: भारतीय संविधान की संघीय ढाँचा के अंतर्गत, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। यह केंद्र-राज्य संबंध की स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है और राज्यों की विविध आवश्यकताRead more
भारत में संघीय ढाँचा: विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का समायोजन
1. संघीय ढाँचा का समायोजन:
- संविधान की संरचना: भारतीय संविधान की संघीय ढाँचा के अंतर्गत, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। यह केंद्र-राज्य संबंध की स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है और राज्यों की विविध आवश्यकताओं को समायोजित करता है।
- विशेष प्रावधान: विभिन्न राज्यों के लिए विशेष प्रावधान जैसे कि आर्थिक और सामाजिक योजनाएँ तैयार की जाती हैं। अशांत क्षेत्र और विकसित क्षेत्रों के लिए अलग-अलग नीतियाँ और सहायता प्रदान की जाती हैं।
2. चुनौतियाँ:
- राज्य केंद्रित असमानताएँ: विभिन्न राज्यों के विकास और आर्थिक स्थिति में असमानताएँ हो सकती हैं, जिससे संसाधनों की वेतन वितरण में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- केंद्र-राज्य विवाद: कभी-कभी, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों और संसाधनों को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं, जो संघीय ढाँचे के कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकते हैं।
3. समाधान:
- वित्तीय आयोग: वित्तीय आयोग राज्य सरकारों के लिए वित्तीय वितरण और आर्थिक सहायता को सुनिश्चित करता है, जिससे राज्यों के बीच संसाधनों की असमानता कम होती है।
- संविधान संशोधन: समय-समय पर, संविधान संशोधन और नई नीतियों के माध्यम से केंद्र-राज्य विवादों का समाधान और संघीय संतुलन बनाए रखा जाता है।
निष्कर्ष: भारतीय संघीय ढाँचा विभिन्न राज्यों की विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को समायोजित करने में सक्षम है, परंतु चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संविधानिक और वित्तीय उपायों के माध्यम से संतुलित किया जाता है।
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भारत में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण 1. अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका: अंतर-राज्यीय परिषद का गठन 1990 में संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत किया गया। इसका उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करना है। यह परिषद राज्योंRead more
भारत में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण
1. अंतर-राज्यीय परिषद की भूमिका:
अंतर-राज्यीय परिषद का गठन 1990 में संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत किया गया। इसका उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच बेहतर सहयोग और समन्वय सुनिश्चित करना है। यह परिषद राज्यों के प्रतिनिधियों, केंद्रीय मंत्रियों, और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है।
2. सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना:
3. चुनौतियाँ:
निष्कर्ष:
See lessअंतर-राज्यीय परिषद सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन और सिफारिशों की अनिवार्यता में सुधार की आवश्यकता है।