मूर्ति तैयार हुई। शिल्पी उसे लेकर बाजार गया। पर दुर्भाग्य। वह न बिकी। अब कौन सा मुँह लेकर घर लौटे। आखिर घर तो लौटना ही था। उसे देखते ही बच्चा ‘बताशा बताशा’ चिल्लाता हुआ दौड़ा और उसके आगे उसने हाथ ...
(क) शीर्षक: बसन्त का आगमन (ख) भावार्थ: गद्यांश में ऋतुराज बसन्त के आगमन का वर्णन किया गया है, जो शीत के प्रकोप को समाप्त कर देता है। पतझड़ के बाद पश्चिमी पवन ने पेड़-पौधों को स्वच्छ किया और नए पत्तों के उगने से जीवन में नवोदित यौवन का अनुभव होता है। विभिन्न फूलों जैसे कनेर और मदार की सुगंध चारों ओरRead more
(क) शीर्षक: बसन्त का आगमन
(ख) भावार्थ:
गद्यांश में ऋतुराज बसन्त के आगमन का वर्णन किया गया है, जो शीत के प्रकोप को समाप्त कर देता है। पतझड़ के बाद पश्चिमी पवन ने पेड़-पौधों को स्वच्छ किया और नए पत्तों के उगने से जीवन में नवोदित यौवन का अनुभव होता है। विभिन्न फूलों जैसे कनेर और मदार की सुगंध चारों ओर फैलने लगती है। शीत की कठोरता और ग्रीष्म का ताप समाप्त हो जाता है, जिससे समशीतोष्ण वातावरण में सभी प्राणियों में उत्साह और उमंग की लहरें उठती हैं। प्रकृति ने अपने रूप को इस तरह सँवारा है कि उसकी सुंदरता का वर्णन करना कठिन है। बसन्त का आगमन एक नई स्फूर्ति और जीवन का संचार करता है, जो जीर्णता को मिटा देता है।
(ग) रेखांकित अंशों की व्याख्या:
- “ऋतुराज बसन्त के आगमन से ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग गया”: यह वाक्य बताता है कि बसन्त ऋतु की शुरुआत के साथ ही ठंडी और कठोर शीतलहर समाप्त हो जाती है, जिससे वातावरण में सुखद बदलाव आता है।
- “प्रकृति ने बसन्त के आगमन पर अपने रूप को इतना सँवारा है”: यहाँ प्रकृति के सौंदर्य और उसकी सजावट का वर्णन किया गया है, जो बसन्त ऋतु के आगमन के साथ नए जीवन और उमंग का प्रतीक है।
- “बसन्त के आगमन के साथ ही जैसे जीर्णता और पुरातन का प्रभाव तिरोहित हो गया है”: इस वाक्य का अर्थ है कि बसन्त का आगमन पुराने और जीर्ण तत्वों को समाप्त कर देता है, नए जीवन और स्फूर्ति का संचार करता है।
इन अंशों में बसन्त ऋतु की महिमा और उसके प्रभाव का गहरा अर्थ निहित है, जो जीवन में नवोन्मेष लाता है।
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गद्यांश में एक शिल्पी की दुखद कहानी प्रस्तुत की गई है। उसने एक मूर्ति बनाई और उसे बेचने बाजार गया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह न बिकी। घर लौटते समय उसका बच्चा 'बताशा' मांगते हुए दौड़ा। शिल्पी शब्दहीन होकर अपने बच्चे को गोद में लेकर रोने लगा। यह दृश्य पूंजीवाद और असमानता की आलोचना करता है, जिसमें कुछ लोग ऐशRead more
गद्यांश में एक शिल्पी की दुखद कहानी प्रस्तुत की गई है। उसने एक मूर्ति बनाई और उसे बेचने बाजार गया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह न बिकी। घर लौटते समय उसका बच्चा ‘बताशा’ मांगते हुए दौड़ा। शिल्पी शब्दहीन होकर अपने बच्चे को गोद में लेकर रोने लगा। यह दृश्य पूंजीवाद और असमानता की आलोचना करता है, जिसमें कुछ लोग ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीते हैं जबकि अन्य कठिन परिश्रम के बावजूद बुनियादी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर पाते। लेखक प्रश्न करता है कि क्या पूंजीवाद की व्यवस्था में बुद्धि इतनी सीमित रह गई है कि समाज में इतनी भारी विषमता कायम हो गई है।
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