Home/mppsc: sthaniya swashasan
- Recent Questions
- Most Answered
- Answers
- No Answers
- Most Visited
- Most Voted
- Random
- Bump Question
- New Questions
- Sticky Questions
- Polls
- Followed Questions
- Favorite Questions
- Recent Questions With Time
- Most Answered With Time
- Answers With Time
- No Answers With Time
- Most Visited With Time
- Most Voted With Time
- Random With Time
- Bump Question With Time
- New Questions With Time
- Sticky Questions With Time
- Polls With Time
- Followed Questions With Time
- Favorite Questions With Time
पंचायती राज संस्थाओं के अप्रभावी प्रदर्शन के पाँच कारणों का उल्लेख कीजिए।
परिचय: भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्थापना 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत हुई थी, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना और स्थानीय शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना था। हालांकि, अपनी स्थापना के तीन दशकों के बाद भी, कई क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाएँ अपेRead more
परिचय: भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्थापना 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत हुई थी, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना और स्थानीय शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना था। हालांकि, अपनी स्थापना के तीन दशकों के बाद भी, कई क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाएँ अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में असफल रही हैं। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं।
1. वित्तीय स्वतंत्रता की कमी: पंचायती राज संस्थाओं के अप्रभावी प्रदर्शन का एक प्रमुख कारण उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की कमी है। PRIs के पास आय के स्वतंत्र स्रोतों की कमी है और उन्हें राज्य सरकारों से अनुदान और सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अधिकांश पंचायतें अपने बजट का बड़ा हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों से प्राप्त करती हैं, जिससे उनकी योजना और विकास कार्यों में स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
2. अधिकारों और शक्तियों की सीमितता: हालांकि संविधान के तहत PRIs को व्यापक अधिकार दिए गए हैं, लेकिन व्यवहार में राज्य सरकारें इनके अधिकारों को सीमित करती हैं। कई बार पंचायतों को नीतियों के क्रियान्वयन में अपर्याप्त अधिकार दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में पंचायतों को शिक्षा, स्वास्थ्य और जल प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निर्णय लेने की सीमित स्वतंत्रता होती है, जिससे वे प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर पातीं।
3. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी: पंचायती राज संस्थाओं में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी भी उनके अप्रभावी प्रदर्शन का एक बड़ा कारण है। कई पंचायत स्तर पर निर्णय लेने में पारदर्शिता का अभाव होता है, और विकास योजनाओं में धन का दुरुपयोग आम है। उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत कई पंचायतों में भ्रष्टाचार के मामलों की सूचना मिली है, जिससे इस योजना का वास्तविक लाभ लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता।
4. क्षमता और प्रशिक्षण की कमी: PRIs के प्रतिनिधियों की क्षमता और प्रशिक्षण का अभाव भी उनके अप्रभावी प्रदर्शन का एक कारण है। अधिकांश पंचायती प्रतिनिधि आवश्यक प्रशासनिक और तकनीकी ज्ञान से वंचित होते हैं, जिससे वे प्रभावी ढंग से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ रहते हैं। उदाहरण के लिए, कई पंचायतों में डिजिटलीकरण की पहलें धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं क्योंकि प्रतिनिधि और कर्मचारी डिजिटल उपकरणों के उपयोग में प्रशिक्षित नहीं हैं।
5. महिला और वंचित वर्ग की भागीदारी में कमी: हालांकि 73वें संशोधन के तहत महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, लेकिन वास्तविक भागीदारी अभी भी सीमित है। कई मामलों में, महिला प्रतिनिधियों को उनके परिवार के पुरुष सदस्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिससे उनकी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कई महिला सरपंच “प्रॉक्सी सरपंच” के रूप में कार्य करती हैं, जहां उनके पति या अन्य पुरुष सदस्य उनके नाम पर निर्णय लेते हैं।
निष्कर्ष: पंचायती राज संस्थाओं का अप्रभावी प्रदर्शन कई संरचनात्मक और कार्यात्मक चुनौतियों का परिणाम है। वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, सीमित अधिकार, भ्रष्टाचार, प्रशिक्षण का अभाव, और महिलाओं एवं वंचित वर्गों की प्रभावी भागीदारी की कमी जैसे कारक इनके प्रदर्शन में बाधा डालते हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए आवश्यक है कि PRIs को अधिक स्वायत्तता, बेहतर वित्तीय संसाधन, और प्रतिनिधियों के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान किए जाएं, ताकि वे अपने दायित्वों को प्रभावी ढंग से निभा सकें और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत कर सकें।
See less