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भागवत धर्म में 'चतुर्व्यह' क्या है?
भागवत धर्म में 'चतुर्व्यूह' परिचय भागवत धर्म, जो कि हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है और भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों की पूजा पर केंद्रित है, में 'चतुर्व्यूह' का महत्वपूर्ण स्थान है। 'चतुर्व्यूह' शब्द का अर्थ है 'चारfold गठन' या 'चारfold व्यवस्था' और यह हिंदू धार्मिक ग्रंथों के संदर्भ में दिव्यRead more
भागवत धर्म में ‘चतुर्व्यूह’
परिचय
भागवत धर्म, जो कि हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है और भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों की पूजा पर केंद्रित है, में ‘चतुर्व्यूह’ का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘चतुर्व्यूह’ शब्द का अर्थ है ‘चारfold गठन’ या ‘चारfold व्यवस्था’ और यह हिंदू धार्मिक ग्रंथों के संदर्भ में दिव्य प्रकटियों और उनके रणनीतिक पहलुओं को समझने में महत्वपूर्ण है।
परिभाषा और महत्व
‘चतुर्व्यूह’ से तात्पर्य भगवान विष्णु के चारfold प्रकटियों से है, विशेष रूप से भागवत पुराण में। इस अवधारणा के अनुसार, भगवान विष्णु अपने चार भिन्न रूपों या पहलुओं में प्रकट होते हैं। ये रूप हैं:
ये चार रूप मिलकर ब्रह्मांड के संतुलन और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक पूर्ण दिव्य रणनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ऐतिहासिक और ग्रंथीय संदर्भ
‘चतुर्व्यूह’ की अवधारणा भागवत पुराण में विस्तृत रूप से वर्णित है, जो भागवत परंपरा के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। भागवत पुराण में यह बताया गया है कि विष्णु के चतुर्व्यूह रूप ब्रह्मांड की स्थिरता और संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण होते हैं।
हाल के उदाहरण और प्रासंगिकता
निष्कर्ष
भागवत धर्म में चतुर्व्यूह भगवान विष्णु के चार प्रकटियों का प्रतिनिधित्व करता है। यह अवधारणा हिंदू धर्मशास्त्र में दिव्य शासन और ब्रह्मांडीय संतुलन की दृष्टि को समझने में महत्वपूर्ण है। चतुर्व्यूह की समझ से भागवत परंपरा की धार्मिक दृष्टि को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है।
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