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मलय प्रायद्वीप में उपनिवेशन उन्मूलन प्रक्रम में सन्निहित क्या-क्या समस्याएँ थीं ?(150 words) [UPSC 2017]
मलय प्रायद्वीप में उपनिवेशन उन्मूलन प्रक्रम की समस्याएँ जातीय तनाव जातीय तनाव मलय प्रायद्वीप में उपनिवेश उन्मूलन के प्रमुख समस्याओं में से एक था। मलय बहुसंख्यक और चीनी अल्पसंख्यक समुदायों के बीच मतभेद और संघर्ष ने स्वतंत्रता आंदोलन को जटिल बना दिया। मलय कम्युनिस्ट पार्टी (MCP) द्वारा संचालित विद्रोहRead more
मलय प्रायद्वीप में उपनिवेशन उन्मूलन प्रक्रम की समस्याएँ
जातीय तनाव
जातीय तनाव मलय प्रायद्वीप में उपनिवेश उन्मूलन के प्रमुख समस्याओं में से एक था। मलय बहुसंख्यक और चीनी अल्पसंख्यक समुदायों के बीच मतभेद और संघर्ष ने स्वतंत्रता आंदोलन को जटिल बना दिया। मलय कम्युनिस्ट पार्टी (MCP) द्वारा संचालित विद्रोह, जो प्रमुख रूप से चीनी थे, ने इन तनावों को और बढ़ा दिया।
राजनीतिक अस्थिरता
राजनीतिक अस्थिरता स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महत्वपूर्ण समस्या रही। ब्रिटिश शासन के समाप्ति के बाद, मलय राष्ट्रीय संगठन (UMNO) और मलय चीनी संघ (MCA) के बीच सत्ता संघर्ष ने एक स्थिर प्रशासन स्थापित करने में बाधा डाली।
आर्थिक विषमताएँ
आर्थिक विषमताएँ भी एक प्रमुख चुनौती थी। ब्रिटिश उपनिवेशी व्यवस्था के अंतर्गत, रबर और टिन के आर्थिक हितों ने धन वितरण में असमानता को जन्म दिया, जिससे स्थानीय जनसंख्या में असंतोष फैल गया।
हालिया उदाहरण
See lessमलेशिया की स्वतंत्रता: 1957 में मलय प्रायद्वीप ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की और मलेशिया का गठन हुआ। स्वतंत्रता की संधि और संघीय संविधान ने जातीय और राजनीतिक मुद्दों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे शांतिपूर्ण संक्रमण संभव हो सका।
बाह्य दबाव और औपनिवेशिक विरोध के साथ-साथ घेरलू दबाव ने यूरोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए विवश किया। सविस्तार वर्णन कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
रोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए बाह्य, औपनिवेशिक विरोध और घरेलू दबाव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाह्य दबाव: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध किया और औपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र ने भी उपनिवेRead more
रोपीय शक्तियों को उपनिवेशों पर अपना दावा छोड़ने के लिए बाह्य, औपनिवेशिक विरोध और घरेलू दबाव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बाह्य दबाव: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध किया और औपनिवेशिक देशों की स्वतंत्रता का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र ने भी उपनिवेशवाद को समाप्त करने का समर्थन किया, जिससे वैश्विक दबाव बढ़ा।
औपनिवेशिक विरोध: उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी से बढ़े। भारत, अल्जीरिया, इंडोनेशिया जैसे देशों में हुए आंदोलनों ने यूरोपीय शक्तियों के लिए उपनिवेशों को बनाए रखना कठिन कर दिया। इन आंदोलनों ने राजनीतिक और सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से औपनिवेशिक शासन को चुनौती दी।
घरेलू दबाव: यूरोप के भीतर युद्धोत्तर आर्थिक कठिनाइयों और युद्ध के बाद की पुनर्निर्माण की जरूरतों ने उपनिवेशों को बनाए रखने की लागत को बढ़ा दिया। जनता और राजनीतिक नेताओं के बीच उपनिवेशों को छोड़ने की मांग बढ़ी, क्योंकि उनका प्रबंधन अब लाभकारी नहीं रहा था।
इन तीनों दबावों ने मिलकर यूरोपीय शक्तियों को विवश किया कि वे अपने उपनिवेशों पर दावा छोड़ दें और उन्हें स्वतंत्रता प्रदान करें।
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