“उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति सागरीय भागों पर होती है एवं स्थलीय भागों पर पहुँचते ही ये तूफान धीरे-धीरे क्षीण होकर खत्म हो जाते हैं।” कारण सहित स्पष्ट करें। (125 Words) [UPPSC 2019]
1. वायु की अपरदनात्मक क्रिया: a. सैंड ड्यून्स (Sand Dunes): वायु की अपरदनात्मक क्रिया से बालू के ढेर या सैंड ड्यून्स बनते हैं। ये विशेषकर रेगिस्तानी क्षेत्रों में देखे जाते हैं जैसे थार रेगिस्तान। वायु के निरंतर प्रवाह से बालू को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है और धीरे-धीरे ऊँचे और ढलवाँRead more
1. वायु की अपरदनात्मक क्रिया:
a. सैंड ड्यून्स (Sand Dunes): वायु की अपरदनात्मक क्रिया से बालू के ढेर या सैंड ड्यून्स बनते हैं। ये विशेषकर रेगिस्तानी क्षेत्रों में देखे जाते हैं जैसे थार रेगिस्तान। वायु के निरंतर प्रवाह से बालू को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है और धीरे-धीरे ऊँचे और ढलवाँ कूड़े का निर्माण होता है।
b. फ्येन (Fens): वायु की अपरदनात्मक क्रिया से फ्येन का निर्माण होता है। यह एक प्रकार की छोटे कणों की चट्टान होती है जो वायु द्वारा गहराई में खोदी जाती है। मध्य-भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में फ्येन का निर्माण होता है।
2. वायु की निक्षेपात्मक क्रिया:
a. लुस (Loess): वायु की निक्षेपात्मक क्रिया द्वारा लुस का निर्माण होता है, जो एक प्रकार की धूल की परत होती है। यह सामान्यत: मध्य-भारत में देखी जाती है, जहाँ वायु द्वारा लाए गए कण भूमि पर जमा होते हैं और उपजाऊ मिट्टी का निर्माण करते हैं।
b. सैंडर: वायु की निक्षेपात्मक क्रिया से सैंडर का निर्माण होता है, जो रेगिस्तान क्षेत्रों में रात की ठंडी हवा और दिन की गर्मी के कारण बालू की परतों के रूप में देखे जाते हैं। ये विशेषकर अरब रेगिस्तान और सहारा रेगिस्तान में होते हैं।
3. हाल का उदाहरण: लद्दाख में सैंड ड्यून्स और लुस की उपस्थिति को देखने को मिलता है, जहाँ वायु की क्रियाओं ने विशेष भू-आकृतियों का निर्माण किया है।
निष्कर्ष: वायु की अपरदनात्मक और निक्षेपात्मक क्रियाएँ विभिन्न भू-आकृतियों को आकार देती हैं, जो क्षेत्र की भौगोलिक और परिस्थितिकीय विशेषताओं को दर्शाती हैं। इन प्रक्रियाओं के अध्ययन से वायु की भूगोलिक प्रभावों को समझा जा सकता है।
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1. ऊष्मा की कमी: उष्णकटिबंधीय चक्रवात समुद्र की सतह से ऊष्मा और नमी प्राप्त करते हैं। जब ये चक्रवात स्थलीय भागों पर पहुँचते हैं, तो इनका ऊष्मा और नमी का स्रोत समाप्त हो जाता है, जिससे तूफान की ऊर्जा और इंटेन्सिटी घट जाती है। 2. वृक्षों और अन्य बाधाएँ: स्थलीय भागों पर पहुंचते ही, चक्रवात धरती पर उपस्Read more
1. ऊष्मा की कमी: उष्णकटिबंधीय चक्रवात समुद्र की सतह से ऊष्मा और नमी प्राप्त करते हैं। जब ये चक्रवात स्थलीय भागों पर पहुँचते हैं, तो इनका ऊष्मा और नमी का स्रोत समाप्त हो जाता है, जिससे तूफान की ऊर्जा और इंटेन्सिटी घट जाती है।
2. वृक्षों और अन्य बाधाएँ: स्थलीय भागों पर पहुंचते ही, चक्रवात धरती पर उपस्थित वनों, भौगोलिक रुकावटों, और स्थल की ऊँचाइयों के संपर्क में आता है। ये बाधाएँ वातावरणीय प्रवाह को अस्थिर करती हैं, जिससे चक्रवात की धारा कमजोर हो जाती है।
3. नमी की कमी: स्थलीय क्षेत्रों में वातावरणीय नमी की कमी होती है, जो चक्रवात के लिए आवश्यक होती है। उदाहरण के तौर पर, चक्रवात अम्फान (2020) ने बांग्लादेश और भारत के स्थलीय हिस्सों में पहुँचने के बाद अपनी तूफानी ताकत खो दी थी।
4. विवर्तन और घर्षण: स्थलीय क्षेत्रों पर घर्षण की अधिकता के कारण, चक्रवात की वातावरणीय संरचना में अस्थिरता आती है, जिससे इसके चक्रवातीय बल कमजोर हो जाते हैं।
निष्कर्ष: उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की स्थलीय भागों पर पहुँचने के बाद ऊष्मा और नमी की कमी, भौगोलिक रुकावटें, और घर्षण के कारण ये धीरे-धीरे क्षीण हो जाते हैं।
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