महासागरीय अधस्तल के मानचित्रण पर आधारित उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत ने महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन को नए आयाम प्रदान किए हैं। सविस्तार वर्णन कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
विसर्प (Meandering) एक नदी की प्रवृत्ति को दर्शाता है जिसमें नदी के प्रवाह की दिशा लगातार बदलती रहती है, जिससे नदी की धारा में जिग-जैग मोड़ बनते हैं। यह प्रक्रिया बाढ़ के मैदानों में सामान्य रूप से देखी जाती है, जहाँ नदी अपने द्वारा छोड़े गए अवसादों पर निर्भर करती है और चपटी भूमि पर बहती है। बाढ़ केRead more
विसर्प (Meandering) एक नदी की प्रवृत्ति को दर्शाता है जिसमें नदी के प्रवाह की दिशा लगातार बदलती रहती है, जिससे नदी की धारा में जिग-जैग मोड़ बनते हैं। यह प्रक्रिया बाढ़ के मैदानों में सामान्य रूप से देखी जाती है, जहाँ नदी अपने द्वारा छोड़े गए अवसादों पर निर्भर करती है और चपटी भूमि पर बहती है।
बाढ़ के मैदानों से जुड़ी विभिन्न भू-आकृतियाँ निम्नलिखित हैं:
स्लीक: बाढ़ के मैदानों में नदी द्वारा छोड़े गए नर्म अवसाद से निर्मित यह वाणिज्यिक क्षेत्र होते हैं। ये समतल और उपजाऊ होते हैं।
लूप्स: नदी के चक्रीय मोड़, जो विसर्प के कारण बनते हैं। समय के साथ, ये मोड़ बड़ा होकर अलग-थलग जलाशयों में बदल सकते हैं।
ऑक्सबो: पुराने लूप्स या मोड़ों की प्रक्रिया से बनते हैं, जब एक लूप भर जाता है और नदी एक सीधी धारा बनाती है, जिससे पुराना लूप बंद हो जाता है।
फ्लडप्लेन: नदी की नियमित बाढ़ से बनने वाला समतल क्षेत्र, जहाँ अवसाद जमा होते हैं और उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है।
ये भू-आकृतियाँ नदी के विसर्प की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं और बाढ़ के मैदानों की अद्वितीय विशेषताओं को दर्शाती हैं।
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महासागरीय अधस्तल के मानचित्रण पर आधारित उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत (Seafloor Spreading Theory) ने महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस सिद्धांत का प्रस्ताव 1960 के दशक में हुआ और इसका प्रमुख योगदान अमेरिकी भूगर्भशास्त्री हैरी हैस ने किया था। सिद्धांत का मूलभूतRead more
महासागरीय अधस्तल के मानचित्रण पर आधारित उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत (Seafloor Spreading Theory) ने महासागरों और महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान किया है। इस सिद्धांत का प्रस्ताव 1960 के दशक में हुआ और इसका प्रमुख योगदान अमेरिकी भूगर्भशास्त्री हैरी हैस ने किया था।
सिद्धांत का मूलभूत विचार: उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत के अनुसार, महासागरीय तल (Seafloor) लगातार उत्पन्न होता है और इसका विस्तार होता है। यह प्रक्रिया समुद्री दरारों (Mid-Ocean Ridges) से शुरू होती है, जहां नई परतें मैग्मा के रूप में उगती हैं और ठंडी होकर ठोस होती हैं। जैसे-जैसे नई परतें बनती हैं, पुरानी परतें महासागरीय तल से बाहर की ओर फैल जाती हैं और महासागर के किनारों पर समा जाती हैं, जिसे महासागरीय तल का विलोप (Subduction) कहा जाता है।
महासागरीय और महाद्वीपीय वितरण पर प्रभाव: इस सिद्धांत ने बताया कि महासागरों के तल के विस्तार के कारण महाद्वीप भी स्थानांतरित होते हैं। इस प्रक्रिया से प्लेट टेक्टोनिक्स की समझ में सुधार हुआ, जिससे महाद्वीपीय ड्रिफ्ट (Continental Drift) और प्लेट टेक्टोनिक्स के सिद्धांतों को जोड़ने में सहायता मिली। उदाहरण के लिए, अटलांटिक महासागर के दोनों ओर के महाद्वीपों की स्थानांतरण प्रक्रिया ने महाद्वीपीय विभाजन और महासागरीय विस्तार को स्पष्ट किया।
प्रस्तावित परिवर्तन: उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत ने यह भी स्पष्ट किया कि महासागरीय तल के विभाजन और महाद्वीपीय टकराव की घटनाएँ भूगर्भीय गतिविधियों, जैसे कि भूकंप और ज्वालामुखियों, को उत्पन्न करती हैं। इसके अलावा, यह सिद्धांत महाद्वीपीय स्थिति और समुद्री भूगोल के बदलावों की भविष्यवाणी करने में सहायक है।
इस प्रकार, उत्तरवर्ती प्रवाह सिद्धांत ने भूगर्भीय प्रक्रियाओं की अंतर्दृष्टि प्रदान की और महासागर और महाद्वीपों के वितरण की गतिशीलता को समझने में एक नई दिशा दी।
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