उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों पर चर्चा कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत में जूट उद्योग की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारक हैं: प्राकृतिक कारक: जूट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की उपलब्धता बंगाल और असम जैसे क्षेत्रों में होती है, लेकिन अन्य राज्यों में इसकी उपलब्धता नहीं है। आर्थिक कारक: जूट उत्पादन और प्रसंस्करण में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश कRead more
भारत में जूट उद्योग की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारक हैं:
- प्राकृतिक कारक: जूट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की उपलब्धता बंगाल और असम जैसे क्षेत्रों में होती है, लेकिन अन्य राज्यों में इसकी उपलब्धता नहीं है।
- आर्थिक कारक: जूट उत्पादन और प्रसंस्करण में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जो छोटे और मध्यम उद्यमियों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
- राजनीतिक कारक: सरकार द्वारा जूट उद्योग के लिए प्रोत्साहन और नीतियों की कमी भी इस उद्योग को प्रभावित करती है।
- प्रतिस्पर्धा: प्लास्टिक और सिंथेटिक पैकेजिंग सामग्री के उदय ने जूट उत्पादों के लिए बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है।
जूट उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियां हैं:
- प्राकृतिक आपदाओं का खतरा
- उच्च लागत और कम उत्पादकता
- नए प्रतिस्पर्धी उत्पादों का उदय
- कुशल श्रमिकों की कमी
- उचित मार्केटिंग और वितरण संबंधी चुनौतियां
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार और उद्योग के बीच समन्वय महत्वपूर्ण है।
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उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक 1. कच्चे माल की उपलब्धता: उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लRead more
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. कच्चे माल की उपलब्धता:
उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए निरंतर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब के चावल मिलें देश के बासमती चावल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रोसेस करती हैं।
2. अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ:
इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियाँ विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिए अनुकूल हैं। इंडो-गैंगेटिक मैदानी क्षेत्रों की उर्वर भूमि गेहूँ, मक्का, और सरसों जैसी फसलों की प्रचुरता को बढ़ावा देती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की स्थापना में सहायक है।
3. पानी और सिंचाई की पहुंच:
उत्तर-पश्चिमी भारत विस्तृत नहर सिंचाई प्रणालियों जैसे भाखड़ा नांगल और पश्चिमी यमुना नहर से लाभान्वित होता है, जो कृषि के लिए साल भर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इस भरोसेमंद सिंचाई नेटवर्क से खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति होती है।
4. बाजारों और निर्यात केंद्रों की निकटता:
क्षेत्र की निकटता बड़े उपभोक्ता बाजारों जैसे दिल्ली और निर्यात केंद्रों जैसे कांडला पोर्ट और मुंद्रा पोर्ट से, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के वितरण को सरल बनाती है। यह खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की व्यवहार्यता को बढ़ाता है, क्योंकि परिवहन लागत कम होती है।
5. सरकारी नीतियाँ और अवसंरचना:
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना जैसे विभिन्न सरकारी योजनाएँ और खाद्य प्रक्रमण इकाइयों के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई प्रोत्साहन ने इन उद्योगों के विकास में सहायक भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में विकसित अवसंरचना, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ, खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के सुचारू संचालन को समर्थन देती हैं।
6. कुशल श्रम और तकनीकी प्रगति:
कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की उपस्थिति से कुशल श्रमिक और खाद्य प्रक्रमण तकनीक में नवाचार प्रदान किए जाते हैं। इससे उत्पादकता और दक्षता में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
See lessउत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों का स्थानीयकरण कच्चे माल की उपलब्धता, अनुकूल जलवायु, पानी की पहुंच, बाजारों की निकटता, सरकारी समर्थन, और कुशल श्रम के कारण संभव हुआ है। ये कारक इस क्षेत्र को भारत के खाद्य प्रक्रमण क्षेत्र में प्रमुख बनाते हैं, स्थानीय किसानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ पहुँचाते हैं।