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क्या निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में अभीष्ट लाभार्थियों के सशक्तिकरण और समावेशन की प्रभावी क्रियाविधि को सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, निःशक्त व्यक्तियों के सशक्तिकरण और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम निःशक्तता की परिभाषा को विस्तारित करते हुए 21 प्रकार की निःशक्तताओं को शामिल करता है, जैसे कि ऑटिज्म, मानसिक बीमारी, और एकाधिक निःशक्तता, जिससे अधिक लोगों को लाभ मिल सकRead more
निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, निःशक्त व्यक्तियों के सशक्तिकरण और समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह अधिनियम निःशक्तता की परिभाषा को विस्तारित करते हुए 21 प्रकार की निःशक्तताओं को शामिल करता है, जैसे कि ऑटिज्म, मानसिक बीमारी, और एकाधिक निःशक्तता, जिससे अधिक लोगों को लाभ मिल सके।
सशक्तिकरण और समावेशन के लिए प्रमुख विशेषताएँ:
आरक्षण और रोजगार: अधिनियम के तहत सरकारी नौकरियों में 4% और शैक्षणिक संस्थानों में 5% आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जिससे निःशक्त व्यक्तियों को आर्थिक और शैक्षणिक समावेशन प्राप्त हो सके।
सुलभता: सार्वजनिक भवनों, परिवहन, और सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) को सुलभ बनाने पर जोर दिया गया है, जिससे शारीरिक और डिजिटल समावेशन सुनिश्चित हो सके।
अधिकार और सुरक्षा: यह अधिनियम निःशक्त व्यक्तियों को समानता, गरिमा, और स्वतंत्रता के साथ जीवन का अधिकार प्रदान करता है, जिससे वे स्वाभिमान के साथ जीवन जी सकें।
विशेष न्यायालय और दंड: अधिनियम में अपराधों के त्वरित निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना और भेदभाव के लिए दंड का प्रावधान किया गया है, जो कानूनी सुरक्षा और प्रवर्तन को सुनिश्चित करता है।
चुनौतियाँ:
हालाँकि, अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती है। अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, जागरूकता की कमी, और नीति क्रियान्वयन में देरी इसके पूर्ण लाभ को सीमित करते हैं। सशक्तिकरण और समावेशन के लिए, प्रवर्तन, संवेदनशीलता कार्यक्रमों, और संसाधनों के बेहतर आवंटन पर ध्यान देना आवश्यक है।
निष्कर्ष:
See lessयह अधिनियम सशक्तिकरण और समावेशन के लिए एक मजबूत ढाँचा प्रदान करता है, लेकिन इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी कार्यान्वयन और सामाजिक जागरूकता महत्वपूर्ण हैं।
भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली बहुसंख्य चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। साथ ही, दिव्यांगजनों के लिए उपबंधित विधायी प्रावधानों और समाज के इस वर्ग के उत्थान के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई पहलों का भी उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ: सुविधाओं की कमी: सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, और शिक्षा संस्थानों में दिव्यांगजनों के लिए उचित सुविधाओं की कमी होती है, जैसे कि रampe, ब्रेल सिस्टम, और विशेष शैक्षिक सामग्री। भेदभाव और सामाजिक अज्ञानता: समाज में दिव्यांगजनों के प्रति पूRead more
भारत में दिव्यांगजनों (PwDs) द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:
विधायी प्रावधान और सरकारी पहलों:
इन पहलुओं और प्रावधानों के बावजूद, दिव्यांगजनों के पूर्ण सशक्तिकरण के लिए निरंतर सुधार और समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। सरकार की नीतियाँ और योजनाएँ दिव्यांगजनों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन समाज को भी उनके अधिकारों और सम्मान के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
See lessदिव्यांगता के संदर्भ में सरकारी पदाधिकारियों और नागरिकों की गहन संवेदनशीलता के बिना दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 केवल विधिक दस्तावेज़ बनकर रह जाता है। टिप्पणी कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक महत्वपूर्ण विधिक ढांचा है जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। हालांकि, इस अधिनियम की प्रभावशीलता गहराई से संवेदनशीलता और समझ पर निर्भर करती है। सरकारी पदाधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों को सही तरीके सेRead more
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक महत्वपूर्ण विधिक ढांचा है जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। हालांकि, इस अधिनियम की प्रभावशीलता गहराई से संवेदनशीलता और समझ पर निर्भर करती है।
सरकारी पदाधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों को सही तरीके से लागू करने के लिए उचित प्रशिक्षण और जागरूकता की आवश्यकता है। इसके बिना, नीतियां केवल कागज तक सीमित रह जाती हैं और उनका वास्तविक प्रभाव सीमित होता है।
सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा के अभाव में, समाज में पूर्वाग्रह और भेदभाव की स्थिति बनी रहती है। नागरिकों की समझ और संवेदनशीलता का अभाव अधिनियम की प्रभावशीलता को कम कर सकता है। इसलिए, अधिनियम के उद्देश्यों को साकार करने के लिए गहरी संवेदनशीलता और समग्र शिक्षा आवश्यक है।
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