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प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों और निर्णय विधियों की मदद से लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिए । (250 words) [UPSC 2023]
लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य 1. "संवैधानिक प्रावधान": "अनुच्छेद 15(1)": यह प्रावधान लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है। इसके तहत, राज्य किसी व्यक्ति को धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है, जिससे महिलाओं को समान अवसर प्रदान किया जा सके। "अनुच्छेद 21":Read more
लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
1. “संवैधानिक प्रावधान”:
2. “प्रासंगिक निर्णय विधियाँ”:
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान लैंगिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण प्रावधान प्रदान करता है। इन संवैधानिक प्रावधानों और निर्णय विधियों के माध्यम से, न्यायपालिका ने लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे समाज में महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।
See lessडिजिटल स्वास्थ्य देखभाल भारत में स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और उसकी वहनीयता से संबंधित स्थायी मुद्दों का समाधान करने में सक्षम है। संदर्भ में, देश को 'डिजिटल स्वास्थ्य' क्रांति के मुहाने पर लाने में आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) की भूमिका डिजिटल स्वास्थ्य देखभाल में 1. स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच: डिजिटल स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर: आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन ने एक व्यापक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है, जिसमें स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स, टेलीमेडिसिन और डेटा प्रबंधन शामिल हैं। इससे ग्रामीण और दूरदरRead more
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) की भूमिका डिजिटल स्वास्थ्य देखभाल में
1. स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच:
2. लागत और वहनीयता:
निष्कर्षतः, आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन डिजिटल स्वास्थ्य क्रांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे भारत में स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और उसकी वहनीयता में सुधार हो रहा है।
See lessस्थायी आजीविका सुनिश्चित करने में गरीबी आय और उत्पादक संसाधनों की कमी से अधिक बाधक है। इस संदर्भ में, भारत में मौजूद गरीबी की गतिशील प्रकृति पर चर्चा कीजिए और इस समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाए गए उपायों को रेखांकित कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में गरीबी की गतिशील प्रकृति एक जटिल समस्या है, जो केवल आय और उत्पादक संसाधनों की कमी से अधिक गहरी है। गरीबी की गतिशीलता का अर्थ है कि गरीब लोगों की स्थिति केवल आर्थिक संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत कारकों द्वारा भी प्रभावित होती है। गरीबी की गतिशील प्रकृति: सामाजRead more
भारत में गरीबी की गतिशील प्रकृति एक जटिल समस्या है, जो केवल आय और उत्पादक संसाधनों की कमी से अधिक गहरी है। गरीबी की गतिशीलता का अर्थ है कि गरीब लोगों की स्थिति केवल आर्थिक संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत कारकों द्वारा भी प्रभावित होती है।
गरीबी की गतिशील प्रकृति:
समाधान के उपाय:
इन उपायों के बावजूद, गरीबी का समाधान एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक समानता और प्रशासनिक सुधारों को एकीकृत रूप से लागू करना होगा। इन क्षेत्रों में समन्वित प्रयासों से ही गरीबी को स्थायी रूप से समाप्त किया जा सकता है।
See lessहालांकि, 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ' योजना ने लैंगिक भेदभाव पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन यह खराब कार्यान्वयन और निगरानी के कारण वांछित परिणाम प्राप्त करने में विफल रही है। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दें)
"बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" योजना को भारत में लैंगिक भेदभाव और बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा को बढ़ावा देना और कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं को रोकना है। हालांकि इस योजना ने जागरूकता और नीतिगत समर्थन प्रदान किया, इसके वांछित परिRead more
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” योजना को भारत में लैंगिक भेदभाव और बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य लड़कियों की शिक्षा और सुरक्षा को बढ़ावा देना और कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं को रोकना है। हालांकि इस योजना ने जागरूकता और नीतिगत समर्थन प्रदान किया, इसके वांछित परिणाम प्राप्त करने में कई चुनौतियाँ आई हैं।
खराब कार्यान्वयन: योजना की सफलता में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक इसका खराब कार्यान्वयन है। स्थानीय स्तर पर योजनाओं की सही तरीके से निगरानी और समन्वय की कमी के कारण, कई क्षेत्रों में धन और संसाधनों का उचित उपयोग नहीं हुआ। कई मामलों में, योजनाओं की जानकारी और संसाधन केवल कागज पर ही सीमित रहे, और वास्तविक परिवर्तन की कमी देखी गई।
निगरानी की कमी: योजना की प्रभावशीलता को मापने के लिए प्रभावी निगरानी तंत्र की कमी भी एक प्रमुख समस्या है। यह आवश्यक है कि योजना के कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा और मूल्यांकन हो, ताकि त्रुटियों और कमजोरियों को समय पर संबोधित किया जा सके।
सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: भारत में लैंगिक भेदभाव की गहरी सामाजिक जड़ें हैं। सिर्फ सरकारी योजनाओं से इस मुद्दे को पूरी तरह से हल करना मुश्किल है। सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव लाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है, जिसमें सामुदायिक भागीदारी और शिक्षा शामिल है।
उपचारात्मक उपाय: योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए, इसे मजबूत निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली के तहत संचालित किया जाना चाहिए। स्थानीय अधिकारियों और समुदायों को शामिल करना और उनकी क्षमता निर्माण करना आवश्यक है। इसके साथ ही, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए व्यापक जन जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। इससे योजनाओं के प्रभाव को अधिकतम किया जा सकता है और वास्तविक परिवर्तन सुनिश्चित किया जा सकता है।
See lessनई शिक्षा नीति समानता और समावेशन के सिद्धांतों को किस प्रकार से दर्शाती है? (150 शब्दों में उत्तर दें)
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 समानता और समावेशन के सिद्धांतों को विभिन्न तरीकों से दर्शाती है। सबसे पहले, यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में सबको समान अवसर प्रदान करने पर जोर देती है, विशेष रूप से गरीब और कमजोर वर्गों के छात्रों के लिए। इसके तहत, स्कूलों में समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सुविधाएं और सRead more
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 समानता और समावेशन के सिद्धांतों को विभिन्न तरीकों से दर्शाती है। सबसे पहले, यह नीति शिक्षा के क्षेत्र में सबको समान अवसर प्रदान करने पर जोर देती है, विशेष रूप से गरीब और कमजोर वर्गों के छात्रों के लिए। इसके तहत, स्कूलों में समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं।
नीति में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक, विशेष रूप से SC/ST, OBC, और दिव्यांग छात्रों के लिए आरक्षित सीटों और विशेष कार्यक्रमों की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त, NEP 2020 ने बहुभाषावाद को बढ़ावा देते हुए स्थानीय भाषाओं में शिक्षा की सिफारिश की है, ताकि भाषा और सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान बढ़े और हर छात्र की शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इस प्रकार, NEP समानता और समावेशन को प्राथमिकता देती है, जिससे सभी छात्रों को समग्र और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
See less.किसी भी देश में अनुसंधान परिवेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक वहां के डॉक्टरेट्स की गुणवत्ता और उनकी संख्या है। इस संदर्भ में, भारत में विद्यमान मुद्दों पर चर्चा कीजिए। हाल ही में, विश्वविद्यालय अनुदान जायोग (UGC) द्वारा अधिसूचित पीएचडी डिग्री से संबंधित नए नियम किस हद तक इन मुद्दों के समाधान में मदद करेंगे? (150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में डॉक्टरेट्स की गुणवत्ता और संख्या अनुसंधान परिवेश के महत्वपूर्ण संकेतक हैं। हाल के वर्षों में, भारत में डॉक्टरेट की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन गुणवत्ता और अनुसंधान क्षमता में अभाव भी महसूस हो रहा है। इसकी मुख्य वजह अनुसंधान योग्य जागरूकता, अभियंत्रण, और अध्यापन के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीयRead more
भारत में डॉक्टरेट्स की गुणवत्ता और संख्या अनुसंधान परिवेश के महत्वपूर्ण संकेतक हैं। हाल के वर्षों में, भारत में डॉक्टरेट की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन गुणवत्ता और अनुसंधान क्षमता में अभाव भी महसूस हो रहा है। इसकी मुख्य वजह अनुसंधान योग्य जागरूकता, अभियंत्रण, और अध्यापन के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपकरणों और संसाधनों की कमी है।
UGC द्वारा अधिसूचित पीएचडी डिग्री से संबंधित नए नियम इन मुद्दों के समाधान में मदद कर सकते हैं। ये नियम गुणवत्ता मानकों को मजबूत करने, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों के साथ समन्वय बढ़ाने, और डॉक्टरेट्स के शोध क्षमता को बढ़ाने में मदद कर सकते ह। इससे भारतीय अनुसंधान परिवेश को गुणवत्तापूर्ण और उत्कृष्ट डॉक्टरेट्स की संख्या में सुधार हो सकता है।
See lessविमुक्त जनजातियां भारत में सर्वाधिक सुभेद्य और वंचित समूहों में से हैं। उनके समक्ष विद्यमान विभिन्न समस्याओं पर चर्चा कीजिए। साथ ही, उनके उत्थान के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को सूचीबद्ध कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
विमुक्त जनजातियाँ भारत में सबसे सुभेद्य और वंचित समूहों में से एक हैं। उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भूमि-संबंधी मुद्दे, और सामाजिक उत्पीड़न। सरकार ने विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों को बढ़ाना, सRead more
विमुक्त जनजातियाँ भारत में सबसे सुभेद्य और वंचित समूहों में से एक हैं। उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, भूमि-संबंधी मुद्दे, और सामाजिक उत्पीड़न।
सरकार ने विमुक्त जनजातियों के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसरों को बढ़ाना, स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाना, आर्थिक संवर्धन को बढ़ावा देना, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करना, और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देना शामिल है।
इन कदमों का सामाजिक और आर्थिक रूप से सर्वोत्तम उपयोग करना आवश्यक है ताकि विमुक्त जनजातियों को समर्थन और उत्थान मिल सके।
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