दिव्यांगता के संदर्भ में सरकारी पदाधिकारियों और नागरिकों की गहन संवेदनशीलता के बिना दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 केवल विधिक दस्तावेज़ बनकर रह जाता है। टिप्पणी कीजिए । (150 words)[UPSC 2022]
स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ 1. वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता: स्वयं सहायता समूह (SHGs) अक्सर वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझते हैं। बैंकों की उच्च ऋण शर्तें और सख्त आवधिक शर्तें SHGs की वृद्धि में बाधक होती हैं। उदाहरण के लिए, रविवार का घेरा नामक अध्ययन ने दिखाया कि गांवों में बैंकों की अनिच्छा नRead more
स्वयं सहायता समूहों की चुनौतियाँ
1. वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता:
- स्वयं सहायता समूह (SHGs) अक्सर वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझते हैं। बैंकों की उच्च ऋण शर्तें और सख्त आवधिक शर्तें SHGs की वृद्धि में बाधक होती हैं। उदाहरण के लिए, रविवार का घेरा नामक अध्ययन ने दिखाया कि गांवों में बैंकों की अनिच्छा ने SHGs को प्रभावित किया।
2. क्षमता निर्माण की कमी:
- SHGs के सदस्य अक्सर प्रबंधन कौशल, वित्तीय लेखा और नेतृत्व में प्रशिक्षित नहीं होते। बिहार में एक अध्ययन ने आवश्यक प्रशिक्षण की कमी को उजागर किया, जिससे SHGs की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
3. बाजार संपर्क की कमी:
- SHGs को अपने उत्पादों की मार्केटिंग और मूल्य श्रृंखला तक पहुँच में कठिनाइयाँ आती हैं। उत्पादों की विपणन और वितरण के लिए उपयुक्त चैनलों की कमी उनके आय संभावनाओं को सीमित करती है।
4. राजनीतिक और प्रशासनिक समर्थन की कमी:
- राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक समर्थन की कमी SHGs की पहलों को कमजोर कर सकती है। ब्यूरोक्रेटिक जटिलताएँ और समन्वय की कमी नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को बाधित कर सकती हैं।
स्वयं सहायता समूहों को प्रभावकारी और लाभकारी बनाने के साधन
1. वित्तीय पहुँच में सुधार:
- बैंकों के साथ साधारण प्रक्रियाएँ और सूक्ष्म वित्त विकल्प प्रदान करना। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGS) जैसे कार्यक्रम SHGs के लिए वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकते हैं।
2. क्षमता निर्माण कार्यक्रम:
- प्रबंधन, वित्तीय शिक्षा और नेतृत्व पर व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना। “स्किल डेवलपमेंट मिशन” जैसी पहल SHGs के सदस्यों की क्षमताओं को बढ़ा सकती हैं।
3. बाजार संपर्क मजबूत करना:
- मार्केटिंग समर्थन प्रणालियाँ विकसित करना और निजी कंपनियों के साथ साझेदारियाँ बनाना। “प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP)” SHGs को बाजार पहुंच में मदद कर सकता है।
4. सरकारी समर्थन में वृद्धि:
- सरकारी विभागों के बीच बेहतर समन्वय और SHGs पहलों को राजनीतिक समर्थन प्रदान करना। नियमित निगरानी और मूल्यांकन से समस्याओं को समय पर समाधान मिल सकता है।
हालिया उदाहरण:
- “दीदी का खाद्य अभियान” ने SHGs को फूड प्रोसेसिंग में समर्थन प्रदान किया, जिससे उनकी बाजार उपस्थिति और आय संभावनाओं में सुधार हुआ।
निष्कर्ष
स्वयं सहायता समूहों के सामने वित्तीय, प्रबंधन, बाजार संपर्क और समर्थन संबंधी चुनौतियों को सुलझाने के लिए विभिन्न उपाय आवश्यक हैं। इन उपायों के कार्यान्वयन से SHGs को अधिक प्रभावकारी और लाभकारी बनाया जा सकता है, जिससे ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन में योगदान मिलेगा।
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दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक महत्वपूर्ण विधिक ढांचा है जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। हालांकि, इस अधिनियम की प्रभावशीलता गहराई से संवेदनशीलता और समझ पर निर्भर करती है। सरकारी पदाधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों को सही तरीके सेRead more
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक महत्वपूर्ण विधिक ढांचा है जो दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। हालांकि, इस अधिनियम की प्रभावशीलता गहराई से संवेदनशीलता और समझ पर निर्भर करती है।
सरकारी पदाधिकारियों को अधिनियम के प्रावधानों को सही तरीके से लागू करने के लिए उचित प्रशिक्षण और जागरूकता की आवश्यकता है। इसके बिना, नीतियां केवल कागज तक सीमित रह जाती हैं और उनका वास्तविक प्रभाव सीमित होता है।
सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा के अभाव में, समाज में पूर्वाग्रह और भेदभाव की स्थिति बनी रहती है। नागरिकों की समझ और संवेदनशीलता का अभाव अधिनियम की प्रभावशीलता को कम कर सकता है। इसलिए, अधिनियम के उद्देश्यों को साकार करने के लिए गहरी संवेदनशीलता और समग्र शिक्षा आवश्यक है।
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