सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में, विशेषकर जराचिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचन कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं। वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ: स्थानीय जRead more
नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं। इन संगठनों की भूमिका और क्षमताएँ पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में उभर सकती हैं, विशेषकर जब सरकारी संस्थाएँ कुछ क्षेत्रों में अक्षम या अनुपस्थित होती हैं।
वैकल्पिक प्रतिमान के लाभ:
स्थानीय जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता:
उदाहरण: NGOs जैसे डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और सेवा इंटरनेशनल स्थानीय समुदायों की विशिष्ट स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को समझते हैं और उनका समाधान करते हैं।
लचीलापन और नवाचार:
उदाहरण: गूगल.org और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे संगठन नई प्रौद्योगिकी और नवाचारों का उपयोग करके शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर रहे हैं।
जवाबदेही और पारदर्शिता:
NGOs अक्सर स्थानीय स्तर पर काम करते हैं और उनकी पारदर्शिता और जवाबदेही की उम्मीदें अधिक होती हैं। यह उन्हें नागरिकों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाता है।
चुनौतियाँ:
संसाधनों की कमी और स्थिरता:
NGOs को अक्सर वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिरता और दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रश्न उठते हैं।
उदाहरण: कई NGOs को नियमित फंडिंग की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके प्रोजेक्ट्स प्रभावित होते हैं।
समानता और पहुंच:
NGOs द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ कभी-कभी सीमित भौगोलिक क्षेत्रों या विशेष जनसंख्या समूहों तक ही सीमित होती हैं, जिससे समाज के सभी वर्गों तक पहुँच सुनिश्चित करना कठिन होता है।
उदाहरण: ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले NGO प्रोजेक्ट्स को शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
नियामक चुनौतियाँ और संघर्ष:
NGOs को अक्सर नियामक और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर जब उनकी गतिविधियाँ सरकार की नीतियों से मेल नहीं खाती हैं।
उदाहरण: कई देशों में NGOs को विदेशी फंडिंग को लेकर सख्त नियामक नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।
प्रशासनिक बाधाएँ और समन्वय:
सरकारी और NGO प्रयासों के बीच समन्वय की कमी से प्रभावशीलता में कमी आ सकती है। विभिन्न संगठनों के प्रयासों का समन्वय और एकीकरण अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है।
उदाहरण: आपातकालीन स्थितियों में, कई NGOs और सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी से सहायता की पहुँच में देरी हो सकती है।
निष्कर्ष:
नागरिक समाज और NGOs लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं, जो पारंपरिक सरकारी सेवाओं के पूरक के रूप में कार्य कर सकते हैं। हालांकि, इन प्रतिमानों की सफलता के लिए उन्हें संसाधनों, समानता, और समन्वय जैसी चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है। सही तरीके से कार्यान्वित किए जाने पर, ये संगठन समाज में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और लोक सेवा के क्षेत्र में नवाचार और संवेदनशीलता को बढ़ावा दे सकते हैं।
सामाजिक विकास के लिए जराचिकित्सा (geriatrics) और मातृ स्वास्थ्य देखभाल (maternal health care) की दिशा में सुदृढ़ नीतियों की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। जराचिकित्सा: वृद्ध जनसंख्या का बढ़ना: भारत में वृद्ध जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है, जैसे वृद्धावस्थाRead more
सामाजिक विकास के लिए जराचिकित्सा (geriatrics) और मातृ स्वास्थ्य देखभाल (maternal health care) की दिशा में सुदृढ़ नीतियों की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जराचिकित्सा:
See lessवृद्ध जनसंख्या का बढ़ना: भारत में वृद्ध जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिसके लिए विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है, जैसे वृद्धावस्था संबंधी रोगों की जांच और उपचार।
सामाजिक सुरक्षा: वृद्ध व्यक्तियों को स्वास्थ्य देखभाल, मानसिक समर्थन और सामाजिक सुरक्षा की नीतियाँ सुनिश्चित करनी होंगी, ताकि उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार हो सके।
मातृ स्वास्थ्य देखभाल:
स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच: गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए समुचित स्वास्थ्य सेवाएं, जैसे नियमित जांच, टीकाकरण, और प्रसव पूर्व देखभाल, की आवश्यकता है।
आहार और पोषण: मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए पोषण संबंधी नीतियों को सुदृढ़ करना आवश्यक है, जिससे गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को आवश्यक पोषण मिल सके।
इन क्षेत्रों में सुधार से सामाजिक विकास को गति मिलेगी, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा, और समाज के कमजोर वर्गों की भलाई सुनिश्चित होगी।