ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में भागीदारी की प्रोन्नति करने में स्वावलंबन समूहों (एस.एच.जी.) के प्रवेश को सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। परीक्षण कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ **1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि: उपाय: एनजीओ को पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना चाहिए। उदाहरण: "ग्रामीन विकास के लिए एनजीओ के पास सीमित फंड होते हैं,Read more
भारत में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका को मज़बूत करने के उपाय और मुख्य बाध्यताएँ
**1. वित्तीय संसाधनों और समर्थन में वृद्धि:
- उपाय: एनजीओ को पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना चाहिए। उदाहरण: “ग्रामीन विकास के लिए एनजीओ के पास सीमित फंड होते हैं, जिससे पर्यावरणीय परियोजनाओं की गति धीमी हो जाती है।”
- बाध्यता: असंगठित फंडिंग और आय के अस्थिर स्रोत एनजीओ की परियोजनाओं की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
**2. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
- उपाय: एनजीओ को परियोजना प्रबंधन, अनुसंधान और समुदाय संघटन में प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। उदाहरण: “पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण में कार्यरत एनजीओ जैसे ‘ग्रीनपीस’ ने तकनीकी प्रशिक्षण द्वारा अपने प्रभाव को बढ़ाया है।”
- बाध्यता: तकनीकी कौशल की कमी और प्रशिक्षण के लिए संसाधनों की कमी एनजीओ की क्षमता को सीमित करती है।
**3. नीति और नियामक समर्थन:
- उपाय: नियमों को सरल बनाना और समर्थनकारी नीतियाँ बनाना एनजीओ की कार्यक्षमता को बेहतर बना सकता है। उदाहरण: “एनजीओ ‘सचेत’ ने वनों की रक्षा के लिए सरकारी समर्थन प्राप्त करने में कठिनाइयाँ झेली हैं।”
- बाध्यता: प्रशासनिक जटिलताएँ और ब्यूरोक्रेटिक बाधाएँ एनजीओ की प्रभावशीलता को बाधित करती हैं।
**4. सहयोग और नेटवर्किंग:
- उपाय: एनजीओ, सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। उदाहरण: “सभी साझेदारों के साथ काम करने से ‘विकास’ ने अपने परियोजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाया है।”
- बाध्यता: असंगठित प्रयास और साझेदारी की कमी परियोजनाओं के समन्वय को प्रभावित करती है।
**5. जन जागरूकता और प्रचार:
- उपाय: सार्वजनिक अभियान और शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाना चाहिए। उदाहरण: “एनजीओ ‘एन्वायर्नमेंटलिस्ट’ ने पर्यावरणीय शिक्षा के लिए सफल अभियानों का संचालन किया है।”
- बाध्यता: सार्वजनिक संलग्नता की कमी और सीमित पहुंच एनजीओ के प्रभाव को सीमित करती है।
निष्कर्ष: भारत में एनजीओ की पर्यावरणीय विकास कार्यों में प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए वित्तीय, क्षमता निर्माण, नियामक, सहयोग, और जागरूकता के क्षेत्रों में सुधार आवश्यक हैं। इन बाध्यताओं को पार करके, एनजीओ पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
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स्वावलंबन समूह (एस.एच.जी.) ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण प्रभावित हो सकती है। पहली बाधा सांस्कृतिक परंपराओं की होती है। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक मान्यताएँ और जातिगत भेदभाव एस.एच.जी. के कार्यों में हस्तक्षेप करRead more
स्वावलंबन समूह (एस.एच.जी.) ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी प्रभावशीलता सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण प्रभावित हो सकती है।
पहली बाधा सांस्कृतिक परंपराओं की होती है। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक मान्यताएँ और जातिगत भेदभाव एस.एच.जी. के कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं के नेतृत्व वाले समूहों को कभी-कभी पुरुष प्रधान समाज द्वारा संदेह की नजर से देखा जाता है, जो उनके प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
दूसरी बाधा सामाजिक संरचनाओं की है। कुछ गांवों में मजबूत जातिगत या समुदायिक विभाजन होता है, जो एस.एच.जी. के भीतर सहयोग और एकता को प्रभावित कर सकता है। विभिन्न जातियों या वर्गों के बीच मतभेद और असमानताएँ समूह की प्रभावशीलता को बाधित कर सकती हैं।
तीसरी बाधा शिक्षा और जागरूकता की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में, लोगों को एस.एच.जी. के लाभ और उनके कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी की कमी हो सकती है, जिससे उनकी भागीदारी और समर्थन में कमी आ सकती है।
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, सामाजिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ कार्यक्रमों का निर्माण करना आवश्यक है, जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों में एस.एच.जी. की भूमिका को बेहतर ढंग से निभाया जा सके।
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