राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति के तहत प्रस्तावित संस्थागत ढांचे को रेखांकित करते हुए, विश्लेषण कीजिए कि यह भारत में भू- स्थानिक अवसंरचना को कैसे सुदृढ़ करेगा। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा, का उपयोग करके किया जाता है, जिससे यह CO2 उत्सर्जन को काफी हद तक कम करता है। ग्रीन हाइड्रोजन की जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव और भारत के नेट-जीरो ऊर्जा लक्ष्य की दिशा में योगदान निम्नलिखित है: CO2 उत्सर्जन में कमी: ग्रीनRead more
ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा, का उपयोग करके किया जाता है, जिससे यह CO2 उत्सर्जन को काफी हद तक कम करता है। ग्रीन हाइड्रोजन की जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव और भारत के नेट-जीरो ऊर्जा लक्ष्य की दिशा में योगदान निम्नलिखित है:
- CO2 उत्सर्जन में कमी: ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन और उपयोग CO2 उत्सर्जन रहित होता है, जिससे पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों की तुलना में अधिक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है।
- ऊर्जा स्वतंत्रता: ग्रीन हाइड्रोजन भारत को ऊर्जा आयात पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकता है, जिससे देश को स्वदेशी और सतत ऊर्जा स्रोतों की ओर अग्रसर होने में सहायता मिलती है।
- जलवायु लक्ष्य: ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं, परिवहन और बिजली उत्पादन में किया जा सकता है, जो भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होगा।
इस प्रकार, ग्रीन हाइड्रोजन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक प्रभावी रणनीति है और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
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राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NSP) के तहत प्रस्तावित संस्थागत ढांचा भारत में भू-स्थानिक अवसंरचना को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख तत्वों पर आधारित है: भू-स्थानिक डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर: नीति के तहत एक व्यापक डेटा इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थापना की जाएगी, जिसमें भू-स्थानिक डेटा को एकत्रित करने, प्रबंधRead more
राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NSP) के तहत प्रस्तावित संस्थागत ढांचा भारत में भू-स्थानिक अवसंरचना को सुदृढ़ करने के लिए निम्नलिखित प्रमुख तत्वों पर आधारित है:
यह संस्थागत ढांचा भारत में भू-स्थानिक अवसंरचना को सुदृढ़ करने में मदद करेगा क्योंकि यह डेटा के एकत्रण, प्रबंधन, और उपयोग की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा। इससे सरकारी योजनाओं, विकास परियोजनाओं और आपदा प्रबंधन में अधिक सटीकता और प्रभावशीलता बढ़ेगी। इसके अलावा, यह शोध और नवाचार को प्रोत्साहित करेगा, जिससे समग्र रूप से भू-स्थानिक क्षेत्र में प्रगति होगी।
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