प्रश्न का उत्तर अधिकतम 15 से 20 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 03 अंक का है। [MPPSC 2023] स्वतन्त्रता के पश्चात भारत में कितने प्रकार की दलीय व्यवस्था देखी गयी है?
हाल के समय में नये राज्यों के निर्माण का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 1. प्रशासनिक दक्षता में सुधार: नये राज्यों के गठन से प्रशासनिक दक्षता में सुधार होता है। छोटे राज्यों में स्थानीय प्रशासन अधिक प्रभावी ढंग से नीतियों को लागू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, तेलंगाना (2014 में गठन) ने आईटी और औद्योगिRead more
हाल के समय में नये राज्यों के निर्माण का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
1. प्रशासनिक दक्षता में सुधार: नये राज्यों के गठन से प्रशासनिक दक्षता में सुधार होता है। छोटे राज्यों में स्थानीय प्रशासन अधिक प्रभावी ढंग से नीतियों को लागू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, तेलंगाना (2014 में गठन) ने आईटी और औद्योगिक विकास में तेजी से प्रगति की है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है।
2. क्षेत्रीय विकास नीतियों का अनुसरण: नये राज्यों के गठन से क्षेत्रीय विकास योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। झारखंड (2000 में गठन) ने खनन उद्योग और आदिवासी कल्याण पर विशेष ध्यान दिया, जिससे क्षेत्र में लक्षित निवेश और योजनाओं की शुरुआत हुई।
3. स्थानीय मुद्दों पर फोकस: छोटे राज्यों में स्थानीय समस्याओं और क्षेत्रीय विषमताओं पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है। उत्तराखंड ने पर्यटन और पर्यावरणीय संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया है, जो इसके अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।
4. आर्थिक चुनौतियाँ और लागत: नए राज्यों के गठन के साथ आर्थिक चुनौतियाँ और लागत भी आती हैं। छत्तीसगढ़ (2000 में गठन) ने उच्च लोकल प्रशासनिक खर्च और राजस्व वितरण के साथ प्रारंभिक समस्याओं का सामना किया।
5. क्षेत्रीय विषमताएँ और संघर्ष: नए राज्यों के गठन से कभी-कभी क्षेत्रीय विषमताएँ और राज्य के अंदर संघर्ष भी उत्पन्न होते हैं। गोरखालैंड का प्रस्तावित राज्य पश्चिम बंगाल में राजनीतिक और सामाजिक तनाव का कारण बना है।
हाल के उदाहरण: तेलंगाना और जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन (2019) ने नये राज्यों के लाभ और चुनौतियों को दर्शाया है। तेलंगाना की आईटी सेक्टर में वृद्धि ने इसके आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, जबकि जम्मू-कश्मीर ने पुनर्गठन के बाद आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं का सामना किया है।
निष्कर्ष: नये राज्यों के गठन से प्रशासनिक दक्षता और क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिलता है, लेकिन इसके साथ महत्वपूर्ण लागत और चुनौतियाँ भी आती हैं। आर्थिक लाभ को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी शासन, संतुलित विकास नीतियाँ, और क्षेत्रीय समस्याओं का ध्यान रखना आवश्यक है।
See less
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में दलीय व्यवस्था ने विभिन्न चरणों में परिवर्तन देखा है। यहाँ पर प्रमुख दलीय व्यवस्थाओं की सूची दी गई है: 1. एक-पार्टी प्रधिनिधि प्रणाली (One-Party Dominance System) विवरण: स्वतंत्रता के बाद पहले कुछ दशकों तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक प्रमुख भूमिका निभाई। इस अवधRead more
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में दलीय व्यवस्था ने विभिन्न चरणों में परिवर्तन देखा है। यहाँ पर प्रमुख दलीय व्यवस्थाओं की सूची दी गई है:
1. एक-पार्टी प्रधिनिधि प्रणाली (One-Party Dominance System)
विवरण: स्वतंत्रता के बाद पहले कुछ दशकों तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने एक प्रमुख भूमिका निभाई। इस अवधि में कांग्रेस का एकाधिकार सा बन गया था और पार्टी की वर्चस्वता के चलते अन्य राजनीतिक दलों की भूमिका सीमित रही।
उदाहरण:
2. बहु-पार्टी प्रणाली (Multi-Party System)
विवरण: 1970 के दशक से भारत में बहु-पार्टी प्रणाली का उदय हुआ। इस समय विभिन्न क्षेत्रीय दलों ने महत्व प्राप्त किया और भारतीय राजनीति में विविधता आ गई।
उदाहरण:
3. कोलिशन राजनीति और विभाजन (Coalition Politics and Fragmentation)
विवरण: 1990 के दशक से लेकर वर्तमान तक भारत में कोलिशन राजनीति का एक नया दौर शुरू हुआ। इस अवधि में कई दलों के बीच गठबंधन की आवश्यकता पड़ी, और केंद्रीय राजनीति में विभिन्न गठबंधन सरकारें बनीं।
उदाहरण:
4. द्विदलीय प्रणाली की ओर प्रवृत्ति (Trend Towards Bipartisan System)
विवरण: हाल के वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर एक द्विदलीय प्रणाली की प्रवृत्ति देखी गई है, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) प्रमुख दल बन गए हैं, हालांकि क्षेत्रीय दलों का प्रभाव राज्य स्तर पर बना हुआ है।
उदाहरण:
इन विभिन्न दलीय व्यवस्थाओं ने भारतीय राजनीति की जटिलता और विविधता को दर्शाया है और देश की राजनीतिक स्थिति की गहराई को समझने में मदद की है।
See less