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स्वतंत्रोत्तर भारत में सहकारी समितियों के उद्भव और कृषि के विकास में उनके योगदान पर चर्चा कीजिए। (उत्तर 150 शब्दों में दें)
स्वतंत्रोत्तर भारत में सहकारी समितियों का उद्भव कृषि विकास के लिए महत्वपूर्ण था। 1950 के दशक में, सहकारी समितियों की स्थापना का उद्देश्य छोटे किसानों को संगठित करना और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था। इन समितियों ने किसानों को संसाधनों की साझा उपयोगिता, जैसे कि बीज, उर्वरक और ऋण, की सुविधाएं प्रRead more
स्वतंत्रोत्तर भारत में सहकारी समितियों का उद्भव कृषि विकास के लिए महत्वपूर्ण था। 1950 के दशक में, सहकारी समितियों की स्थापना का उद्देश्य छोटे किसानों को संगठित करना और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था। इन समितियों ने किसानों को संसाधनों की साझा उपयोगिता, जैसे कि बीज, उर्वरक और ऋण, की सुविधाएं प्रदान कीं।
सहकारी समितियाँ किसानों को सामूहिक रूप से उत्पादित फसलों की मार्केटिंग और बिक्री में भी मदद करती हैं, जिससे उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त होता है। इससे कृषि उत्पादन में सुधार हुआ और ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन मिला।
इन समितियों ने कृषि में तकनीकी सुधार, जैसे कि आधुनिक बीज और कृषि विधियों को अपनाने में भी भूमिका निभाई। इस प्रकार, सहकारी समितियाँ कृषि क्षेत्र में स्थिरता और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र साबित हुईं।
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