Home/आधुनिक भारत/1857 से पहले का भारतीय इतिहास
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What are the symptoms of Antiepileptic drugs?
Epilepsy - Epilepsy is a chronic disorder which cause seizures which are episodes of involuntary brain activity that can affect the body in different ways Anti epileptic drugs cause various side effects cause Drowsiness ,Lack of energy agitation, headaches, tremors, hair loss, swollen gums, and rashRead more
Epilepsy – Epilepsy is a chronic disorder which cause seizures which are episodes of involuntary brain activity that can affect the body in different ways
Anti epileptic drugs cause various side effects cause Drowsiness ,Lack of energy agitation, headaches, tremors, hair loss, swollen gums, and rashes .
Nausea, vomiting, double vision, loss of coordination, liver damage, stomach upset, dizziness, unsteadiness, blurry vision, memory and thinking problems, and reduced resistance to colds.
Types: There are many different types of epilepsy and seizures. Seizures can be focal, meaning they start in a particular part of the brain, or generalized, meaning they initially involve all areas of the brain.
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है: 1. सामाजिक स्थिति: राजघराने की महिलाएँ: मुग़ल राजघरानेRead more
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति
मुगलकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति जटिल और बहुपरकारी थी, जो सामाजिक वर्ग, धर्म, और विभिन्न मुग़ल सम्राटों की नीतियों से प्रभावित थी। इस स्थिति को समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है:
1. सामाजिक स्थिति:
2. शिक्षा और सांस्कृतिक भागीदारी:
3. विवाह और पारिवारिक जीवन:
4. कानूनी और सामाजिक अधिकार:
5. हाल की ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन:
निष्कर्ष
मुग़लकालीन समाज में महिलाओं की स्थिति सामाजिक वर्गों के आधार पर भिन्न थी। जबकि राजघराने और उच्चवर्गीय महिलाओं के पास शिक्षा, शक्ति और सांस्कृतिक प्रभाव था, सामान्य महिलाओं की स्थिति अधिक सीमित थी और उनकी भूमिकाएँ मुख्यतः पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित थीं। हाल के शोध और पुनर्मूल्यांकन ने इस स्थिति को अधिक व्यापक रूप से समझने में मदद की है।
See lessइजारा प्रणाली क्या थी?
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को "इजारा" कहा जाता था। इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि करRead more
इजारा प्रणाली एक ऐतिहासिक राजस्व प्रथा थी जिसका उपयोग भारत में मुग़ल काल और उसके बाद के काल में हुआ। इस प्रणाली के अंतर्गत, सरकार ने भूमि कर (राजस्व) का संग्रह एक मध्यस्थ को सौंप दिया। इस मध्यस्थ को “इजारा” कहा जाता था।
इजारा प्रणाली में, सरकार ने एक निश्चित समयावधि के लिए, जैसे कि एक वर्ष, भूमि कर का पूरा अधिकार एक ठेकेदार को दे दिया। ठेकेदार (या इजारा) को अपने ऊपर निर्भर क्षेत्रों से कर इकट्ठा करने और उसे सरकार को जमा करने की जिम्मेदारी दी जाती थी। इसके बदले में, ठेकेदार को कर संग्रहण से प्राप्त राशि में से एक हिस्सा लाभ के रूप में मिलता था।
इस प्रणाली के फायदे और नुकसान दोनों थे:
समय के साथ, इस प्रणाली की आलोचना हुई और अन्य राजस्व प्रणालियों ने इसे प्रतिस्थापित किया, लेकिन इसका प्रभाव और स्वरूप भारतीय प्रशासनिक इतिहास में महत्वपूर्ण था।
See less19वीं सदी के भारतीय पुनरुद्धार आंदोलन ने भारत के विकास में किस प्रकार सहयोग दिया? वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
19वीं सदी का भारतीय पुनरुद्धार आंदोलन भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी प्रक्रिया थी, जिसने समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रभावित किया। इस आंदोलन ने भारतीय समाज को आधुनिकता की ओर अग्रसर किया और सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक बदलावों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस आंदोलन के तहRead more
19वीं सदी का भारतीय पुनरुद्धार आंदोलन भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी प्रक्रिया थी, जिसने समाज के विभिन्न पहलुओं को गहराई से प्रभावित किया। इस आंदोलन ने भारतीय समाज को आधुनिकता की ओर अग्रसर किया और सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक बदलावों की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस आंदोलन के तहत, धार्मिक सुधारक जैसे राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, और स्वामी विवेकानंद ने पुरानी परंपराओं और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने शिक्षा, महिलाओं के अधिकार, और सामाजिक समानता पर जोर दिया। राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की, जो अंधविश्वास और जातिवाद के खिलाफ था और धार्मिक एकता को प्रोत्साहित करता था। विद्यासागर ने महिला शिक्षा को बढ़ावा दिया और विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दी।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की, जिसने वेदों के प्रति निष्ठा को पुनर्जीवित किया और अंधविश्वास और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धर्म को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया और भारतीय युवाओं को आत्म-संवर्धन की प्रेरणा दी।
इन प्रयासों ने भारतीय समाज को आत्म-निरीक्षण, सामाजिक सुधार, और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की दिशा में प्रेरित किया, जिससे भारतीय समाज में एक नई चेतना और प्रगतिशीलता का उदय हुआ। इस प्रकार, 19वीं सदी का पुनरुद्धार आंदोलन भारतीय समाज के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सफल रहा।
See less1765 से 1833 तक ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों के विकास का पता लगाइए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया। 1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्Read more
1765 से 1833 तक, ब्रिटिश राज के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के संबंधों का विकास एक महत्वपूर्ण अध्याय था। इस अवधि में कंपनी ने भारत में अपनी धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक शक्ति को मजबूत किया।
1765 में कंपनी को बिहार, उड़ीसा, और बंगाल के सम्राट की दरबारी आदेश से व्यवस्था करने का अधिकार मिला। इससे कंपनी की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
1784 में पास हुए पिट्स अधिनियम के बाद कंपनी का शासनिक अधिकार कम हो गया और ब्रिटिश सरकार की निगरानी में आ गई।
कंपनी के साथ संबंध अधिक दक्षिण भारत में मजबूत थे। इस अवधि में कंपनी ने व्यापार, कृषि, और राजनीति में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
1833 में गोलीय कानून के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे शासन को खत्म कर दिया और भारत पर सीधा नियंत्रण स्थापित किया।
See lessभारत में 19वीं शताब्दी में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों के योगदान का संक्षिप्त विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया। राजा राममोहन राय: उन्होंने समाज में सुधार के लिए स्वदेशी शिक्षा, विदेशी वस्त्र त्याग, विधवा पुनर्विवाह आदि के मुद्दों परRead more
19वीं शताब्दी भारत में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में समाज सुधारकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस समय के समाज सुधारकों ने विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम किया।
इन समाज सुधारकों के प्रयासों से भारतीय समाज में कई सामाजिक कुरीतियाँ समाप्त हुईं और नई सोच और अद्यतन मूल्यों की दिशा में गम्भीर प्रयास किए गए।
See lessऔपनिवेशिक भारत की अठारहवीं शताब्दी के मध्य से क्यों अकाल पड़ने में अचानक वृद्धि देखने को मिलती है ? कारण बताएँ। (150 words)[UPSC 2022]
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक भारत में अकाल की घटनाओं में अचानक वृद्धि के पीछे कई प्रमुख कारण हैं: आर्थिक नीतियां: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की आर्थिक नीतियों ने भारतीय कृषि पर नकारात्मक प्रभाव डाला। उच्च करों और अनिवार्य कृषि उत्पादन की नीतियों ने किसानों की स्थिति को कमजोर किया और अकाल कीRead more
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से औपनिवेशिक भारत में अकाल की घटनाओं में अचानक वृद्धि के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
इन कारणों से अठारहवीं शताब्दी के मध्य से भारत में अकाल की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
See lessउन कारणों को सूचीबद्ध कीजिए, जिन्होंने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की शुरुआत को प्रेरित किया। साथ ही, इसके परिणामों की विवेचना कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे: स्थिर राजस्व प्रणाली की आवश्यकता: ईस्ट इंडिया कंपनी को एक स्थिर और पूर्वानुमानित राजस्व प्रणाली की आवश्यकता थी ताकि वह प्रशासनिक और सैन्य खर्चों को स्थिर रूप से पूरा कर सके। स्थायित्व और स्थिरता: भूमि रRead more
स्थायी बंदोबस्त प्रणाली (Permanent Settlement) की शुरुआत को प्रेरित करने वाले कारण निम्नलिखित थे:
परिणाम:
इन कारणों और परिणामों ने स्थायी बंदोबस्त प्रणाली की प्रभावशीलता और दीर्घकालिक स्थिरता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
See lessसुस्पष्ट कीजिए कि मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से किस प्रकार ग्रसित था । (150 words) [UPSC 2017]
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई। विखंडित राज्यतंत्र: क्षेत्रीय शक्तियों का उदय: "Read more
मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत: विखंडित राज्यतंत्र
परिचय: मध्य-अठारहवीं शताब्दी के भारत में राजनीतिक परिदृश्य विखंडित और अस्थिर था। इस समय भारत में विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों और क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ, जिससे एक केंद्रीकृत शासन की कमी महसूस की गई।
विखंडित राज्यतंत्र:
निष्कर्ष: मध्य-अठारहवीं शताब्दी का भारत विखंडित राज्यतंत्र की छाया से ग्रसित था, जिसमें क्षेत्रीय शक्तियाँ और छोटे-छोटे राज्य एक केंद्रीकृत शासन के अभाव में अपनी स्वायत्तता और शक्ति को बनाए रखने के लिए संघर्षरत थे। यह अस्थिरता और विभाजन बाद में एक एकीकृत भारतीय राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण बाधाओं में से एक बनी।
See lessउन्नीसवीं शताब्दी के 'भारतीय पुनर्जागरण' और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के मध्य सहलग्नताओं का परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोजRead more
उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान
परिचय: उन्नीसवीं शताब्दी के भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक तत्वों ने मिलकर एक नई राष्ट्रीय पहचान को आकार दिया। यह युग भारतीय समाज की एक नई दिशा और पहचान की खोज का दौर था, जिसमें भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच कई सहलग्नताएँ देखी गईं।
भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भारतीय समाज को नई दृष्टि और विचारधारा की ओर अग्रसर किया। इसके प्रमुख तत्वों में शामिल हैं:
राष्ट्रीय पहचान का उद्भव: भारतीय पुनर्जागरण ने राष्ट्रीय पहचान के उद्भव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
हाल की घटनाएँ: आज के समय में, भारतीय पुनर्जागरण के तत्वों का पुनरावलोकन हो रहा है, जैसे कि पुनर्जागरण नेताओं के योगदान की पुनर्समीक्षा और उनके विचारों का आधुनिक समाज पर प्रभाव। स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की नयी पीढ़ी को पहचान और राष्ट्रीयता की नई परिभाषा भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं।
निष्कर्ष: उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रीय पहचान के उद्भव के बीच सहलग्नताएँ दर्शाती हैं कि कैसे सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन ने राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा दिया। यह युग एक सशक्त भारतीय पहचान की नींव रखता है, जो आज भी भारतीय समाज की सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं को प्रेरित करती है।
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