“200 वर्षों के ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के मेरुदण्ड की क्षतिग्रस्त कर दिया था।” व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और विभिन्न स्तरों पर उसके अस्तित्व को कमजोर कर दिया। आर्थिक प्रभाव: रोजगार की हानि: पारंपरिक कारीगरी उद्योग, जैसे कि वस्त्र बुनाई, मिट्टी के बर्तन और धातु कार्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हRead more
औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और विभिन्न स्तरों पर उसके अस्तित्व को कमजोर कर दिया।
आर्थिक प्रभाव:
- रोजगार की हानि: पारंपरिक कारीगरी उद्योग, जैसे कि वस्त्र बुनाई, मिट्टी के बर्तन और धातु कार्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ब्रिटिश शासन के तहत सस्ते ब्रिटिश माल के प्रवेश से इन उद्योगों को गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश वस्त्रों की सस्ते दरों ने स्थानीय बुनकर उद्योग को समाप्त कर दिया, जिससे हजारों कारीगर बेरोजगार हो गए।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था का विघटन: कारीगरी उद्योग स्थानीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग थे। इन उद्योगों के पतन से कच्चे माल की आपूर्ति और व्यापार से जुड़े अन्य व्यवसाय भी प्रभावित हुए। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक गतिशीलता और सहारा कमजोर हो गया।
- उद्योगिकरण का अभाव: औपनिवेशिक नीति ने कच्चे माल के निर्यात और तैयार माल के आयात को बढ़ावा दिया, जिससे पारंपरिक उद्योगों की अनदेखी और पतन हुआ। यह औद्योगिक विकास की कमी का कारण बना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया।
सामाजिक प्रभाव:
- गरीबी और पलायन: कारीगरी उद्योगों के पतन से गरीबी में वृद्धि हुई और कई कारीगरों को काम की तलाश में स्थानांतरित होना पड़ा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व और सामाजिक ताना-बाना प्रभावित हुआ।
- संस्कृतिक क्षति: पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन से सांस्कृतिक विरासत और कारीगरी कौशल की हानि हुई, जो पीढ़ियों से हस्तांतरण में था। इससे सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक पहचान पर भी प्रभाव पड़ा।
अतः, औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी, गरीबी, और सांस्कृतिक क्षति हुई।
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ब्रिटिश शासन और भारतीय अर्थव्यवस्था: प्रस्तावना: ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित करने के लिए अपनी नीतियों को लागू किया। व्याख्या: ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को उसके स्वाभाविक मार्ग से हटाकर नए मार्गों पर ले जाने का प्रयास किया गया। इसका एक उRead more
ब्रिटिश शासन और भारतीय अर्थव्यवस्था:
प्रस्तावना:
ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पुनर्गठित करने के लिए अपनी नीतियों को लागू किया।
व्याख्या:
ब्रिटिश शासन के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को उसके स्वाभाविक मार्ग से हटाकर नए मार्गों पर ले जाने का प्रयास किया गया। इसका एक उदाहरण है ब्रिटिश शासन की नीतियां जैसे व्यापारिकीकरण, उद्यमिता को बढ़ावा देना, और भारतीय उत्पादन को विदेशी बाजारों के साथ मिलान।
क्षतिग्रस्त कारण:
इस प्रक्रिया ने भारतीय अर्थव्यवस्था के मेरुदण्ड को अध:रूप में क्षतिग्रस्त किया। यहाँ तक कि भारतीय उद्यमिता को भी नुकसान पहुंचा, क्योंकि उन्हें विदेशी उत्पादों के साथ मुकाबला करना पड़ा।
नए मार्ग:
इसके विपरीत, अब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिकीकृत किया है और उद्यमिता को बढ़ावा दिया है। वर्तमान में, भारत आत्मनिर्भर भारत के दिशानिर्देश में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
समाप्ति:
See lessइस प्रक्रिया में, ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्गठित करने का प्रयास किया, जिससे उसने उसके मेरुदण्ड को क्षतिग्रस्त कर दिया। यह एक महत्वपूर्ण शिक्षाग्रंथ है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के साथ एक प्रेरणा स्रोत भी है।