भारत में अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों के विभिन्न पक्षों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और विभिन्न स्तरों पर उसके अस्तित्व को कमजोर कर दिया। आर्थिक प्रभाव: रोजगार की हानि: पारंपरिक कारीगरी उद्योग, जैसे कि वस्त्र बुनाई, मिट्टी के बर्तन और धातु कार्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हRead more
औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया और विभिन्न स्तरों पर उसके अस्तित्व को कमजोर कर दिया।
आर्थिक प्रभाव:
- रोजगार की हानि: पारंपरिक कारीगरी उद्योग, जैसे कि वस्त्र बुनाई, मिट्टी के बर्तन और धातु कार्य, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। ब्रिटिश शासन के तहत सस्ते ब्रिटिश माल के प्रवेश से इन उद्योगों को गंभीर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश वस्त्रों की सस्ते दरों ने स्थानीय बुनकर उद्योग को समाप्त कर दिया, जिससे हजारों कारीगर बेरोजगार हो गए।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था का विघटन: कारीगरी उद्योग स्थानीय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग थे। इन उद्योगों के पतन से कच्चे माल की आपूर्ति और व्यापार से जुड़े अन्य व्यवसाय भी प्रभावित हुए। इससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक गतिशीलता और सहारा कमजोर हो गया।
- उद्योगिकरण का अभाव: औपनिवेशिक नीति ने कच्चे माल के निर्यात और तैयार माल के आयात को बढ़ावा दिया, जिससे पारंपरिक उद्योगों की अनदेखी और पतन हुआ। यह औद्योगिक विकास की कमी का कारण बना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया।
सामाजिक प्रभाव:
- गरीबी और पलायन: कारीगरी उद्योगों के पतन से गरीबी में वृद्धि हुई और कई कारीगरों को काम की तलाश में स्थानांतरित होना पड़ा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व और सामाजिक ताना-बाना प्रभावित हुआ।
- संस्कृतिक क्षति: पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन से सांस्कृतिक विरासत और कारीगरी कौशल की हानि हुई, जो पीढ़ियों से हस्तांतरण में था। इससे सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक पहचान पर भी प्रभाव पड़ा।
अतः, औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक कारीगरी उद्योगों के पतन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी, गरीबी, और सांस्कृतिक क्षति हुई।
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अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों ने भारत की आर्थिक संरचना और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। सकारात्मक पहलू: परिवहन अवसंरचना: अंग्रेज़ों ने रेलवे, सड़कों और बंदरगाहों का निर्माण किया, जिससे व्यापार और वाणिज्य में सुधार हुआ। कानूनी और प्रशासनिक सुधार: ब्रिटिश न्यRead more
अठारहवीं शताब्दी के मध्य से स्वतंत्रता तक अंग्रेज़ों की आर्थिक नीतियों ने भारत की आर्थिक संरचना और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
सकारात्मक पहलू:
See lessपरिवहन अवसंरचना: अंग्रेज़ों ने रेलवे, सड़कों और बंदरगाहों का निर्माण किया, जिससे व्यापार और वाणिज्य में सुधार हुआ।
कानूनी और प्रशासनिक सुधार: ब्रिटिश न्यायपालिका और प्रशासनिक सुधारों ने कुछ हद तक कानूनी व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया।
नकारात्मक पहलू:
उपनिवेशवादी शोषण: ब्रिटिश नीतियाँ भारत की संसाधनों की लूट और आर्थिक शोषण पर केंद्रित थीं, जैसे उच्च कर और व्यापारिक एकाधिकार।
वाणिज्यिक प्राथमिकताएँ: भारत की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था ब्रिटिश व्यापारिक हितों के अनुरूप बनाई गई, जिससे भारतीय उद्योग और हस्तशिल्प की दृष्टि से पतन हुआ।
धातु और कृषि संकट: ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय कृषि और स्थानीय उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिससे सूखा और खाद्य संकट बढ़े।
इन नीतियों ने भारत की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया, जिसमें संसाधनों की शोषण, सामाजिक असमानता और आर्थिक पिछड़ेपन की प्रवृत्तियाँ शामिल थीं।