“चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिए, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।” इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर ...
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है: 1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जाRead more
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद और भारत के राष्ट्रीय हित
अमरीका-ईरान नाभिकीय समझौता विवाद (JCPOA) भारत के राष्ट्रीय हितों को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है:
1. ऊर्जा सुरक्षा: भारत, जो एक प्रमुख ऊर्जा आयातक है, ईरान से तेल और गैस के आपूर्तिकर्ता पर निर्भर है। ईरान पर प्रतिबंधों की स्थिति में ऊर्जा कीमतें बढ़ सकती हैं, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर असर डाल सकती है।
2. व्यापार और निवेश: ईरान के साथ वाणिज्यिक संबंधों और निवेश में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इससे भारतीय कंपनियों की व्यापारिक गतिविधियाँ प्रभावित हो सकती हैं, विशेषकर उद्योगों और बुनियादी ढांचे में।
3. क्षेत्रीय स्थिरता: ईरान और अमरीका के बीच तनाव क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा और भूराजनीतिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर पड़ोसी देशों में।
भारत को अपनाने योग्य रवैया:
1. संतुलित दृष्टिकोण: भारत को संतुलित और तटस्थ दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो न केवल अमेरिका और ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखे, बल्कि भारत की आर्थिक और सुरक्षा आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे।
2. ऊर्जा विविधता: भारत को ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करना चाहिए, ताकि किसी एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता कम हो और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
3. कूटनीतिक सक्रियता: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहकर, कूटनीतिक संवाद को बढ़ावा देना चाहिए और वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने में योगदान देना चाहिए।
इस प्रकार, भारत को एक सवेंदनशील और समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाते हुए अपनी आर्थिक और सुरक्षा प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेना चाहिए।
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चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थRead more
चीन अपने आर्थिक संबंधों और व्यापार अधिशेष का उपयोग एशिया में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय संतुलन में बदलाव आ रहा है। चीन की आर्थिक शक्ति उसे विशाल रक्षा बजट और सैन्य आधुनिकीकरण की क्षमता देती है, जिससे वह दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, और भारतीय महासागर में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर रहा है।
भारत के लिए, यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि चीन का बढ़ता सैन्य प्रभाव उसकी सुरक्षा और रणनीतिक हितों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और चीन की “String of Pearls” रणनीति भारत को घेरने का प्रयास मानी जाती है।
इसके जवाब में, भारत को अपनी सैन्य तैयारियों को बढ़ाना होगा, पड़ोसी देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी करनी होगी, और अपने आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को भी और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए ताकि क्षेत्र में संतुलन कायम रखा जा सके।
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