“सूचना का अधिकार अधिनियम में किये गये हालिया संशोधन सूचना आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर गम्भीर प्रभाव डालेंगे”। विवेचना कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
भारत में मानवाधिकार आयोगों ने मानव अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन उनकी ताकतवर और प्रभावशाली व्यक्तियों या संस्थाओं के खिलाफ अधिकार जताने में कई सीमाएँ रही हैं। संरचनात्मक सीमाएँ: स्वायत्तता की कमी: आयोगों की स्वायत्तता पर प्रश्न उठते हैं। वे केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नRead more
भारत में मानवाधिकार आयोगों ने मानव अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन उनकी ताकतवर और प्रभावशाली व्यक्तियों या संस्थाओं के खिलाफ अधिकार जताने में कई सीमाएँ रही हैं।
संरचनात्मक सीमाएँ:
स्वायत्तता की कमी: आयोगों की स्वायत्तता पर प्रश्न उठते हैं। वे केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त होते हैं और उनके वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन भी सरकारी नियंत्रण में रहता है, जिससे आयोगों की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
सीमित शक्तियाँ: मानवाधिकार आयोगों को केवल अनुशंसा करने का अधिकार होता है। वे कार्यवाही शुरू करने या न्यायिक आदेश जारी करने में असमर्थ होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा सकते।
व्यावहारिक सीमाएँ:
रिपोर्टिंग और प्रभावशीलता: आयोगों द्वारा की गई अनुशंसाएँ अक्सर कार्रवाई में परिवर्तित नहीं होतीं। इसके पीछे कमीश्न की सिफारिशों पर कार्रवाई की कमी और पारदर्शिता की कमी होती है।
संसाधनों की कमी: आयोगों के पास सीमित संसाधन होते हैं, जिससे वे बड़े और जटिल मामलों की जांच और समाधान में असमर्थ हो सकते हैं।
सुधारात्मक उपाय:
स्वायत्तता बढ़ाना: आयोगों की स्वायत्तता को बढ़ाने के लिए कानूनी और प्रशासनिक सुधार किए जाने चाहिए। उन्हें स्वतंत्र वित्तीय प्रबंधन और नियुक्तियों में सरकार की दखलंदाजी से मुक्त होना चाहिए।
प्रशासनिक शक्ति: आयोगों को न्यायिक शक्तियाँ और कठोर प्रवर्तन क्षमताएँ प्रदान की जानी चाहिए, जिससे वे प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ ठोस कदम उठा सकें और प्रभावी अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकें।
संसाधनों की वृद्धि: आयोगों के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधन सुनिश्चित किए जाने चाहिए, ताकि वे जटिल और व्यापक मामलों की जांच और समाधान कर सकें।
पारदर्शिता और जवाबदेही: आयोगों के कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए नियमित निगरानी और समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि उनकी सिफारिशों को लागू किया जा सके।
इन सुधारात्मक उपायों से मानवाधिकार आयोगों की प्रभावशीलता बढ़ाई जा सकती है और वे ताकतवर और प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ प्रभावी कदम उठा सकते हैं।
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सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) के तहत नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, जो शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। हाल ही में किए गए संशोधनों में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार को सौंपा गया है। इन संशोधनों से सूचनाRead more
सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) के तहत नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, जो शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। हाल ही में किए गए संशोधनों में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार को सौंपा गया है।
इन संशोधनों से सूचना आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। पहले, मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन की शर्तें निर्धारित थीं, जिससे उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती थी। लेकिन अब केंद्र सरकार को इन मामलों में निर्णय लेने का अधिकार मिल गया है, जिससे आयोग पर सरकार के अप्रत्यक्ष दबाव की आशंका बढ़ जाती है।
यह संशोधन सूचना आयोग की निष्पक्षता और प्रभावशीलता को कमजोर कर सकता है, क्योंकि सरकार के प्रति उत्तरदायी होने के बजाय आयोग सरकार के दबाव में आ सकता है। इससे आरटीआई अधिनियम के मूल उद्देश्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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