हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में असुविधाओं और सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत (फैडरलिज्म) को स्वीकार किया गया है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करता है। हालांकि, भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत के बावजूद, यह केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है, जो प्रबल परिसंघवाद (फे़डरलिज़्म) की संकल्पना के विपरीत है। भारतीय संविधानRead more
भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत (फैडरलिज्म) को स्वीकार किया गया है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करता है। हालांकि, भारतीय संविधान में परिसंघीय सिद्धांत के बावजूद, यह केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है, जो प्रबल परिसंघवाद (फे़डरलिज़्म) की संकल्पना के विपरीत है।
भारतीय संविधान का केंद्रीयकृत स्वरूप कई पहलुओं से स्पष्ट है। पहले, संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है, जिसमें केंद्र के पास कुछ महत्वपूर्ण शक्तियाँ अधिक हैं, जैसे रक्षा, विदेश नीति, और परमाणु ऊर्जा। यह शक्ति असंतुलन केंद्रीय सरकार को व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
दूसरे, संविधान के अनुच्छेद 356 और 357 के तहत, केंद्र सरकार को राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार प्राप्त है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ता है।
तीसरे, संविधान के अनुच्छेद 249 और 350B जैसे प्रावधानों के माध्यम से, केंद्र सरकार को राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति प्राप्त होती है, जैसे कि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर केंद्रीय विधायी नियंत्रण लागू किया जा सकता है।
ये तत्व भारत के परिसंघीय ढांचे को एक सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ दिखाते हैं, जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विपरीत है, जिसमें राज्यों को अधिक स्वायत्तता और अधिकार दिए जाते हैं। हालांकि, इस संतुलन को बनाए रखते हुए, भारतीय संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक विशिष्ट शक्ति वितरण की व्यवस्था करता है, जो देश की विविधता और अखंडता को सुनिश्चित करता है।
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सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है। असुविधाएँ: अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाRead more
सहकारी परिसंघवाद, जिसमें संघीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग को महत्व दिया जाता है, वर्तमान संरचना की कुछ प्रमुख असुविधाओं को संबोधित करता है।
असुविधाएँ:
अधिकरण की विखंडनता: शक्तियों का विभाजन विभिन्न स्तरों पर अस्थिरता और प्रभावशीलता की कमी को जन्म दे सकता है, जिससे नीतियों के कार्यान्वयन में कठिनाइयाँ आती हैं।
समन्वय की समस्याएँ: संघीय और राज्य एजेंसियों के बीच असंगठित प्रयास, राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभावी समाधान करने में देरी और असंगति पैदा कर सकते हैं।
संसाधन असमानता: राज्यों के बीच असमान संसाधन वितरण, क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ावा दे सकता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
स्वार्थों का टकराव: विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच प्राथमिकताओं में टकराव, प्रभावी शासन को बाधित कर सकता है।
सहकारी परिसंघवाद के समाधान:
सुधारित समन्वय: यह संघीय और राज्य सरकारों के बीच संयुक्त पहलों और समझौतों को बढ़ावा देता है, जिससे राष्ट्रीय मुद्दों जैसे कि स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, और शिक्षा पर समन्वित प्रयास किए जा सकते हैं।
See lessसंसाधन साझेदारी: सहयोग की भावना से संसाधनों और विशेषज्ञता का साझा उपयोग संभव होता है, असमानता को कम करता है और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करता है।
एकीकृत रणनीति: यह नीति निर्माण में राज्य और संघीय उद्देश्यों को जोड़ता है, जिससे नीतिगत टकराव कम होते हैं और नीति की समग्रता में सुधार होता है।
लचीला शासन: यह राज्यों को संघीय कार्यक्रमों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति देता है, जिससे शासन की प्रतिक्रिया और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
इस प्रकार, सहकारी परिसंघवाद संरचनात्मक असुविधाओं को कम कर, बेहतर समन्वय, संसाधन समानता और नीति में सामंजस्य को बढ़ावा देता है।