मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिए और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन के परिणामी प्रभाव परिचय भारत के वन संसाधन देश की पारिस्थितिकीय संतुलन और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन संसाधनों की स्थिति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गंभीर हैं, जो न केवल वन संपदा को प्रभावित करते हैं, बल्कि व्यापक पारिस्थितिकीय और सामRead more
भारत के वन संसाधनों की स्थिति और जलवायु परिवर्तन के परिणामी प्रभाव
परिचय
भारत के वन संसाधन देश की पारिस्थितिकीय संतुलन और जैव विविधता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन संसाधनों की स्थिति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गंभीर हैं, जो न केवल वन संपदा को प्रभावित करते हैं, बल्कि व्यापक पारिस्थितिकीय और सामाजिक प्रभाव भी डालते हैं।
वन संसाधनों की स्थिति
- वन क्षेत्र की कमी: भारत में वन क्षेत्र का प्रतिशत कुल भौगोलिक क्षेत्र के 21% के आसपास है, जो आदर्श 33% से कम है। सांख्यिकी के अनुसार, भारत के वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, पिछले वर्षों में वन क्षेत्र में मामूली वृद्धि देखने को मिली है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
- वनों की गुणवत्ता: भारत के वनों की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। केंद्रीय वन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे वनों और घने वनों के क्षेत्र में कमी आई है, जबकि बंजर वन क्षेत्र बढ़ा है।
- वनों की कटाई: कृषि विस्तार और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वनों की कटाई लगातार जारी है। उदाहरण के लिए, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वनों की कटाई की समस्या गंभीर है।
जलवायु परिवर्तन के परिणामी प्रभाव
- वन अग्नियाँ: जलवायु परिवर्तन के कारण वन अग्नियों की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ गई है। उत्तरी भारत में हिमालय क्षेत्र में हाल के वर्षों में अधिक अग्नि घटनाएँ देखने को मिली हैं, जिनका मुख्य कारण उच्च तापमान और सूखा है।
- वन जीवन की विविधता: वन पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन के कारण वन जीवन की विविधता प्रभावित हो रही है। पूर्वोत्तर भारत में, विशेषकर मणिपुर और मिजोरम में, वन्य जीवों की प्रजातियाँ अत्यधिक प्रभावित हुई हैं।
- पानी की उपलब्धता: वनों की कमी और जलवायु परिवर्तन से पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है। गंगा और यमुना नदी बेसिन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण जल की कमी देखी जा रही है, जिससे कृषि और मानव जीवन पर प्रभाव पड़ा है।
- पारिस्थितिकीय परिवर्तन: वनों में परिवर्तनों के कारण पारिस्थितिकीय संतुलन प्रभावित हो रहा है, जैसे सेंटरल इंडिया में वनस्पतियों की उपस्थिति में बदलाव और बढ़ती गर्मी की लहरें।
निष्कर्ष
भारत के वन संसाधनों की स्थिति पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गंभीर हैं। वन क्षेत्र में कमी, वन गुणवत्ता में गिरावट, और जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याएँ एक संतुलित पारिस्थितिकीय और जलवायु नीति के कार्यान्वयन की आवश्यकता को दर्शाती हैं। वनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।
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मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारण और तटीय पारिस्थितिकी में उनका महत्त्व
मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारण:
तटीय पारिस्थितिकी में मैंग्रोवों का महत्त्व:
निष्कर्ष: मैंग्रोवों का रिक्तीकरण केवल उनके पर्यावरणीय महत्व को ही नहीं, बल्कि तटीय पारिस्थितिकी की समग्र स्थिरता को भी प्रभावित करता है। इनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए नीति सुधार, स्थानीय समुदायों की जागरूकता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक हैं। आधुनिक संरक्षण परियोजनाएँ और सतत विकास की नीतियाँ इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती हैं।
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