आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2015]
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु औरRead more
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना
हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं। यहाँ हिमालय के अपवाह तन्त्र का विस्तार से विवेचन किया गया है:
1. गंगा (गंगा) बेसिन:
परिभाषा: गंगा बेसिन में गंगा नदी और उसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की उत्तरी ढलानों से निकलती हैं और भारत के उत्तरी हिस्से से बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती हैं।
उदाहरण:
- गंगा: गंगा नदी की उत्पत्ति उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर से होती है। यह नदी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती है। हाल में गंगा नदी की स्वच्छता और प्रदूषण को लेकर कई पहलों की गई हैं, जैसे ‘नमामि गंगे’ योजना।
- यमुना: यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर से होता है और यह दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से होती हुई गंगा में मिलती है। हाल के वर्षों में यमुना नदी के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं।
2. सिंधु (इंडस) बेसिन:
परिभाषा: सिंधु बेसिन में सिंधु नदी और इसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पश्चिमी ढलानों से निकलती हैं और पाकिस्तान के थार रेगिस्तान की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
- सिंधु नदी: सिंधु नदी तिब्बत के पठार से उत्पन्न होती है और पाकिस्तान के बड़े हिस्से से बहती है। यह नदी पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के विवाद में यह एक प्रमुख तत्व रही है।
- झेलम, चेनाब, रावी: ये उपनदियाँ भी सिंधु नदी की सहायक नदियाँ हैं और ये हिमालय की पश्चिमी ढलानों से निकलती हैं। इन नदियों की जलवायु और भूगोल पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।
3. ब्रह्मपुत्र बेसिन:
परिभाषा: ब्रह्मपुत्र बेसिन में ब्रह्मपुत्र नदी और इसकी उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पूर्वी ढलानों से निकलती हैं और बांग्लादेश की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
- ब्रह्मपुत्र: ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में यारलुंग त्संगपो नदी से होता है। यह नदी असम और बांग्लादेश से होकर बहती है और बांग्लादेश की सुंदरवन डेल्टा में समाहित होती है। ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के कारण विभिन्न स्थानों पर जान-माल का नुकसान होता है, और इसके प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
- तेस्ता: यह नदी पूर्वी हिमालय से निकलती है और सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। भारत और बांग्लादेश के बीच जलविभाजन को लेकर हाल के वर्षों में कई विवाद हुए हैं।
4. पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र:
परिभाषा: पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र में नदियाँ शामिल हैं जो पश्चिम की ओर बहती हैं और अरब सागर की ओर जा मिलती हैं।
उदाहरण:
- सतलज, ब्यास, रावी: ये नदियाँ पश्चिमी हिमालय से उत्पन्न होती हैं और पंजाब और हिमाचल प्रदेश से बहकर पाकिस्तान में मिलती हैं। इन नदियों का जलविभाजन भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
5. ग्लेशियरी और स्नोमल्ट प्रभाव:
परिभाषा: हिमालय में कई नदियाँ ग्लेशियरी पिघलन और स्नोमल्ट से भरी जाती हैं, जो उनके बहाव और मौसमी बदलावों को प्रभावित करती हैं।
उदाहरण:
- गंगोत्री ग्लेशियर: गंगा नदी का उद्गम स्थान, जो मौसम और वार्षिक जलवृद्धि को प्रभावित करता है। हाल में ग्लेशियरों की पिघलन दर बढ़ रही है, जिससे गंगा के प्रवाह पर असर पड़ रहा है।
- सियाचिन ग्लेशियर: यह ग्लेशियर नुब्रा नदी को पानी प्रदान करता है और इसका पिघलना सिंधु बेसिन के पानी की आपूर्ति को प्रभावित करता है।
निष्कर्ष
हिमालय का अपवाह तन्त्र एक जटिल और विविध प्रणाली है जिसमें विभिन्न प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जलविवाद जैसे मुद्दे इस तन्त्र को प्रभावित कर रहे हैं, और इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी प्रबंधन और संरक्षण की आवश्यकता है।
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भारतीय मानसून के आचरण में मानवीकारी दृश्यभूमियों (Anthropogenic Landscapes) के कारण बदलाव एक महत्वपूर्ण विषय है। मानवीकरण के प्रभाव, जैसे भूमि उपयोग परिवर्तन, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन, भारतीय मानसून के पैटर्न और उसके आचरण को प्रभावित कर सकते हैं। सहमत होने के तर्क: भूमि उपयोग परिवर्तन: वृक्षारोपणRead more
भारतीय मानसून के आचरण में मानवीकारी दृश्यभूमियों (Anthropogenic Landscapes) के कारण बदलाव एक महत्वपूर्ण विषय है। मानवीकरण के प्रभाव, जैसे भूमि उपयोग परिवर्तन, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन, भारतीय मानसून के पैटर्न और उसके आचरण को प्रभावित कर सकते हैं।
सहमत होने के तर्क:
भूमि उपयोग परिवर्तन:
वृक्षारोपण और वनकटाई: वनों की कटाई और वृक्षारोपण में बदलाव से वाष्पीकरण और जलवायु में परिवर्तन हो सकता है, जिससे मानसून की तीव्रता और वितरण प्रभावित हो सकता है।
शहरीकरण: शहरों की विस्तार और ठोस सतहों का निर्माण (जैसे कंक्रीट और एशफाल्ट) स्थानीय तापमान को बढ़ाता है, जिससे स्थानीय मानसूनी पैटर्न में बदलाव हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन:
ग्लोबल वार्मिंग: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तापमान में वृद्धि और वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि भारतीय मानसून की परिकल्पना और तीव्रता को प्रभावित कर रही है।
अनियमित मानसून: जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की नियमितता में अस्थिरता आ सकती है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
जल प्रबंधन और कृषि:
जल संचयन परियोजनाएँ: बांधों, जलाशयों, और अन्य जल प्रबंधन परियोजनाओं का निर्माण मानसून के प्रवाह और वितरण को प्रभावित कर सकता है।
कृषि प्रथाएँ: फसलों की खेती और सिंचाई की प्रथाएँ मानसून के आचरण को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे कि जलवायु परिवर्तन के कारण फसल के मौसम में बदलाव।
निष्कर्ष:
मानवीकीय गतिविधियाँ भारतीय मानसून के आचरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकती हैं। भूमि उपयोग परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, और जल प्रबंधन के उपाय मानसून के पैटर्न, तीव्रता, और वितरण को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए, भारतीय मानसून के आचरण को समझने और प्रबंधित करने के लिए मानवीकीय प्रभावों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार, मानवीकारी दृश्यभूमियों के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन के तर्क को मान्यता देना उचित है, और इसका अध्ययन और प्रबंधन आवश्यक है।
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