हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा ? (150 words)[UPSC 2020]
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु औरRead more
हिमालय के अपवाह तन्त्र की विवेचना
हिमालय पर्वत श्रेणी, जो कि एशिया के सबसे प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, का अपवाह तन्त्र (drainage system) अत्यंत जटिल और विविध है। इस तन्त्र में कई प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं, जो विभिन्न भागों से उत्पन्न होती हैं और दक्षिणी एशिया के जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं। यहाँ हिमालय के अपवाह तन्त्र का विस्तार से विवेचन किया गया है:
1. गंगा (गंगा) बेसिन:
परिभाषा: गंगा बेसिन में गंगा नदी और उसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की उत्तरी ढलानों से निकलती हैं और भारत के उत्तरी हिस्से से बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित होती हैं।
उदाहरण:
- गंगा: गंगा नदी की उत्पत्ति उत्तराखंड के गंगोत्री ग्लेशियर से होती है। यह नदी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होती हुई बंगाल की खाड़ी में मिलती है। हाल में गंगा नदी की स्वच्छता और प्रदूषण को लेकर कई पहलों की गई हैं, जैसे ‘नमामि गंगे’ योजना।
- यमुना: यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर से होता है और यह दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से होती हुई गंगा में मिलती है। हाल के वर्षों में यमुना नदी के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं।
2. सिंधु (इंडस) बेसिन:
परिभाषा: सिंधु बेसिन में सिंधु नदी और इसकी प्रमुख उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पश्चिमी ढलानों से निकलती हैं और पाकिस्तान के थार रेगिस्तान की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
- सिंधु नदी: सिंधु नदी तिब्बत के पठार से उत्पन्न होती है और पाकिस्तान के बड़े हिस्से से बहती है। यह नदी पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के विवाद में यह एक प्रमुख तत्व रही है।
- झेलम, चेनाब, रावी: ये उपनदियाँ भी सिंधु नदी की सहायक नदियाँ हैं और ये हिमालय की पश्चिमी ढलानों से निकलती हैं। इन नदियों की जलवायु और भूगोल पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।
3. ब्रह्मपुत्र बेसिन:
परिभाषा: ब्रह्मपुत्र बेसिन में ब्रह्मपुत्र नदी और इसकी उपनदियाँ शामिल हैं, जो हिमालय की पूर्वी ढलानों से निकलती हैं और बांग्लादेश की ओर बहती हैं।
उदाहरण:
- ब्रह्मपुत्र: ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत में यारलुंग त्संगपो नदी से होता है। यह नदी असम और बांग्लादेश से होकर बहती है और बांग्लादेश की सुंदरवन डेल्टा में समाहित होती है। ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के कारण विभिन्न स्थानों पर जान-माल का नुकसान होता है, और इसके प्रबंधन के लिए योजनाएँ बनाई जा रही हैं।
- तेस्ता: यह नदी पूर्वी हिमालय से निकलती है और सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। भारत और बांग्लादेश के बीच जलविभाजन को लेकर हाल के वर्षों में कई विवाद हुए हैं।
4. पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र:
परिभाषा: पश्चिमी हिमालय के अपवाह तन्त्र में नदियाँ शामिल हैं जो पश्चिम की ओर बहती हैं और अरब सागर की ओर जा मिलती हैं।
उदाहरण:
- सतलज, ब्यास, रावी: ये नदियाँ पश्चिमी हिमालय से उत्पन्न होती हैं और पंजाब और हिमाचल प्रदेश से बहकर पाकिस्तान में मिलती हैं। इन नदियों का जलविभाजन भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
5. ग्लेशियरी और स्नोमल्ट प्रभाव:
परिभाषा: हिमालय में कई नदियाँ ग्लेशियरी पिघलन और स्नोमल्ट से भरी जाती हैं, जो उनके बहाव और मौसमी बदलावों को प्रभावित करती हैं।
उदाहरण:
- गंगोत्री ग्लेशियर: गंगा नदी का उद्गम स्थान, जो मौसम और वार्षिक जलवृद्धि को प्रभावित करता है। हाल में ग्लेशियरों की पिघलन दर बढ़ रही है, जिससे गंगा के प्रवाह पर असर पड़ रहा है।
- सियाचिन ग्लेशियर: यह ग्लेशियर नुब्रा नदी को पानी प्रदान करता है और इसका पिघलना सिंधु बेसिन के पानी की आपूर्ति को प्रभावित करता है।
निष्कर्ष
हिमालय का अपवाह तन्त्र एक जटिल और विविध प्रणाली है जिसमें विभिन्न प्रमुख नदियाँ और जलग्रहण क्षेत्र शामिल हैं। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जलविवाद जैसे मुद्दे इस तन्त्र को प्रभावित कर रहे हैं, और इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी प्रबंधन और संरक्षण की आवश्यकता है।
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हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर दूरगामी प्रभाव **1. नदियों के प्रवाह में बदलाव: हिमालय के हिमनदों के पिघलने से गंगा, यमुन और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में बदलाव होगा। शुरू में, पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, लेकिन समय के साथ हिमनदों के घटने से जRead more
हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल-संसाधनों पर दूरगामी प्रभाव
**1. नदियों के प्रवाह में बदलाव: हिमालय के हिमनदों के पिघलने से गंगा, यमुन और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों के प्रवाह में बदलाव होगा। शुरू में, पिघलने से नदियों में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, लेकिन समय के साथ हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति में कमी हो सकती है। उदाहरण के लिए, गंगा का प्रवाह ग्लेशियरों के पिघलने के कारण अस्थिर हो सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में पानी की कमी हो सकती है।
**2. बाढ़ का जोखिम: तेजी से पिघलने से ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) का जोखिम बढ़ता है। हाल ही में उत्ताराखंड में ग्लेशियर पिघलने और भूस्खलनों के कारण बाढ़ आई थी, जो इस खतरनाक परिदृश्य को दर्शाती है।
**3. जल की कमी: हिमनदों के घटने से जल आपूर्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में जो ग्लेशियर-आधारित नदियों पर निर्भर हैं। इन क्षेत्रों में कृषि और पेयजल की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
**4. पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन: ग्लेशियरों के पिघलने से पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें ठंडे पानी पर निर्भर जीवों और वनस्पतियों की स्थिति प्रभावित हो सकती है। नदी के तापमान और प्रवाह में बदलाव से जल जीवों की विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
इस प्रकार, हिमालय के हिमनदों के पिघलने से भारत के जल-संसाधनों पर गंभीर और दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें जल प्रवाह की अस्थिरता, बाढ़ का खतरा, जल की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव शामिल हैं।
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