नदियों को आपस में जोड़ना सूखा, बाढ़ और बाधित जल-परिवहन जैसी बहु-आयामी अन्तर्सम्बन्धित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान दे सकता है। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (250 words) [UPSC 2020]
भारत में जल अपवाह प्रतिरूपों का वर्णन भारत का जल अपवाह तंत्र विभिन्न भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण विविध प्रतिरूपों में बंटा हुआ है। ये प्रतिरूप नदियों और जलग्रहण क्षेत्रों के अनुसार वर्गीकृत होते हैं और देश की जलवायु, कृषि और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। निम्नलिखित में भारतRead more
भारत में जल अपवाह प्रतिरूपों का वर्णन
भारत का जल अपवाह तंत्र विभिन्न भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के कारण विविध प्रतिरूपों में बंटा हुआ है। ये प्रतिरूप नदियों और जलग्रहण क्षेत्रों के अनुसार वर्गीकृत होते हैं और देश की जलवायु, कृषि और पारिस्थितिकी पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। निम्नलिखित में भारत के प्रमुख जल अपवाह प्रतिरूपों का विस्तृत वर्णन किया गया है:
1. हिमालयी जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: हिमालयी जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों को शामिल करता है जो हिमालय की ऊंची पहाड़ियों से उत्पन्न होती हैं। ये नदियाँ मुख्यतः ग्लेशियरी पिघलन और स्नोमल्ट से भरती हैं और उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में बहती हैं।
उदाहरण:
- गंगा बेसिन: गंगा नदी, जो गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है, उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से होकर बहती है और बंगाल की खाड़ी में मिलती है। हाल में गंगा नदी की स्वच्छता को लेकर ‘नमामि गंगे’ योजना जैसी पहलें की गई हैं।
- ब्रह्मपुत्र बेसिन: ब्रह्मपुत्र नदी, तिब्बत के पठार से उत्पन्न होकर असम और बांग्लादेश से बहती है। इस नदी के बाढ़ के कारण हाल के वर्षों में असम में कई बड़े बाढ़ की घटनाएँ हुई हैं।
2. पेनिन्सुलर जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: पेनिन्सुलर जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों का समूह है जो पश्चिमी घाटों से उत्पन्न होती हैं और पूर्व या पश्चिम की ओर बहती हैं। ये नदियाँ आमतौर पर छोटी और मौसमी होती हैं।
उदाहरण:
- गोदावरी बेसिन: गोदावरी नदी, पश्चिमी घाटों से उत्पन्न होकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह क्षेत्र का सबसे बड़ा जलग्रहण क्षेत्र है और हाल में नदी लिंकिंग परियोजना के तहत जल संसाधन प्रबंधन के प्रयास किए जा रहे हैं।
- कृष्णा बेसिन: कृष्णा नदी भी पश्चिमी घाटों से निकलती है और पूर्व की ओर बहती है। इसके जल विभाजन को लेकर हाल में महाराष्ट्र, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश के बीच विवाद हुए हैं।
3. रेगिस्तानी जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: रेगिस्तानी जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों और नालों को संदर्भित करता है जो शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में बहती हैं और अक्सर लवणीय झीलों या सूखे बिस्तरों में समाप्त होती हैं।
उदाहरण:
- लूनी नदी: यह नदी अरावली रेंज से निकलती है और राजस्थान से बहकर कच्छ के रन में समाप्त हो जाती है। इस नदी का प्रवाह मौसमी होता है और इसके पानी का उपयोग स्थानीय कृषि के लिए किया जाता है।
4. तटीय जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: तटीय जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों का समूह है जो सीधे समुद्र में बह जाती हैं और अक्सर डेल्टा और एस्टुरी बनाती हैं।
उदाहरण:
- महानदी बेसिन: महानदी नदी छत्तीसगढ़ से निकलकर ओडिशा में बहती है और बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इस क्षेत्र में डेल्टा के निर्माण और हाल में डेम परियोजनाओं के प्रभाव पर ध्यान दिया गया है।
- कावेरी बेसिन: कावेरी नदी पश्चिमी घाटों से निकलकर तमिलनाडु में बहती है और बंगाल की खाड़ी में मिलती है। कावेरी नदी को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच जल विवाद प्रमुख मुद्दा रहा है।
5. आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप:
परिभाषा: आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप उन नदियों और जल प्रणालियों को संदर्भित करता है जो समुद्र तक नहीं पहुंचती बल्कि आंतरिक झीलों, दलदलों या रेगिस्तानों में समाप्त होती हैं।
उदाहरण:
- लदाख की नदियाँ: जैसे इंदुस और इसके सहायक नदियाँ, जो लदाख की आंतरिक क्षेत्रों में बहती हैं और अक्सर लवणीय क्षेत्रों में समाप्त हो जाती हैं। हाल में ग्लेशियरों के पिघलने से संबंधित पर्यावरणीय चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
निष्कर्ष
भारत का जल अपवाह तंत्र एक जटिल और विविध प्रणाली है जिसमें हिमालयी, पेनिन्सुलर, रेगिस्तानी, तटीय, और आंतरिक जल अपवाह प्रतिरूप शामिल हैं। ये प्रतिरूप देश की जलवायु, कृषि, और पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हाल के वर्षों में जल प्रबंधन, प्रदूषण और जलविवाद जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए हैं, और इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रभावी योजनाएँ और नीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है।
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नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान? परिचय नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालRead more
नदियों को आपस में जोड़ना: सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन समस्याओं का समाधान?
परिचय
नदियों को आपस में जोड़ना (River Linking) एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका उद्देश्य भारत की जल-संवृद्धि और प्रबंधन को बेहतर बनाना है। यह योजना सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित करने के लिए प्रस्तावित की गई है। हालांकि, इसके लाभ और समस्याएं दोनों ही महत्वपूर्ण हैं और इनका आलोचनात्मक परीक्षण आवश्यक है।
लाभ
आलोचना
निष्कर्ष
नदियों को आपस में जोड़ना एक दीर्घकालिक समाधान हो सकता है जो सूखा, बाढ़ और जल-परिवहन की समस्याओं को संबोधित कर सकता है। हालांकि, इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का समग्र आकलन करना और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। उचित नियोजन और कार्यान्वयन के माध्यम से ही इसके लाभों को अधिकतम किया जा सकता है।
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