ऐलीलोपैथी क्या है? सिंचित कृषि क्षेत्रों की प्रमुख फसल पद्धतियों में इसकी भूमिका का वर्णन कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट 1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथRead more
सूक्ष्म सिंचाई और भारत का जल संकट
1. जल उपयोग में सुधार: सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियाँ, जैसे कि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई, सटीक जल आपूर्ति प्रदान करती हैं, जिससे जल की बर्बादी और वाष्पीकरण कम होता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से गन्ना की खेती में 30% जल की कमी आई है, साथ ही उपज में भी वृद्धि हुई है।
2. कृषि उत्पादकता में वृद्धि: सूक्ष्म सिंचाई फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाती है। कर्नाटक में, टमाटर की फसलों में ड्रिप सिंचाई के कारण उपज में सुधार और फसल की गुणवत्ता में वृद्धि देखी गई है।
3. जल संरक्षण: यह भूजल स्तर को बनाए रखने और सतही जल संसाधनों पर दबाव कम करने में सहायक है। तमिलनाडु में सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों ने भूजल स्तर को सहेजने में मदद की है, खासकर सूखे की स्थिति में।
4. आर्थिक लाभ: यह संचालन लागत को कम करती है और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन संभव बनाती है। गुजरात में, किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों के उपयोग से लागत में कमी और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की रिपोर्ट की है।
प्रभाव की सीमा: जबकि सूक्ष्म सिंचाई के लाभ स्पष्ट हैं, उच्च प्रारंभिक लागत और रखरखाव की जटिलता जैसे मुद्दे इसकी विस्तृत अपनाने में बाधक हो सकते हैं। सरकार की सब्सिडी और तकनीकी उन्नति इसे विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कुल मिलाकर, सूक्ष्म सिंचाई भारत के जल संकट के समाधान में प्रभावशाली उपाय प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से जब इसे समर्थन नीतियों और व्यापक अपनाने के साथ जोड़ा जाए।
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ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका 1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा: ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालRead more
ऐलीलोपैथी और सिंचित कृषि में इसकी भूमिका
1. ऐलीलोपैथी की परिभाषा:
ऐलीलोपैथी (Allelopathy) एक परिस्थितिकीय प्रक्रिया है जिसमें एक पौधा रसायनिक पदार्थ छोड़ता है जो अन्य पौधों की वृद्धि को प्रभावित करता है। ये रसायन जमीन में या वातावरण में वितरित होते हैं और सभी प्रकार की जैविक गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं।
2. सिंचित कृषि क्षेत्रों में ऐलीलोपैथी की भूमिका:
a. खरपतवार नियंत्रण:
ऐलीलोपैथी एक प्राकृतिक खरपतवार नियंत्रण विधि के रूप में कार्य कर सकती है। मिट्टी में ऐलीलोपैथिक यौगिक अन्य खरपतवारों की वृद्धि को रोकते हैं, जैसे कि अरेगॉन में फेनक्वेल पौधों द्वारा विवर की वृद्धि को नियंत्रित किया गया।
b. फसल उत्पादन में सुधार:
कुछ फसलें ऐलीलोपैथिक प्रभाव का उपयोग फसल की वृद्धि को बढ़ाने के लिए करती हैं। उदाहरण के लिए, टमाटर और मक्का जैसे पौधों के रूट exudates नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जिससे फसल की उपज में सुधार होता है।
c. मिट्टी की उर्वरता:
ऐलीलोपैथी मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकती है। दलहनी फसलों जैसे ग्वार और मूँग द्वारा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जाती है, जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त पोषक तत्व प्रदान करती है।
d. उदाहरण:
पंजाब और हरियाणा में सरसों का प्रयोग ऐलीलोपैथी के माध्यम से धान की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने में किया गया।
निष्कर्ष:
ऐलीलोपैथी सिंचित कृषि में एक प्राकृतिक और प्रभावी विधि है जो खरपतवार नियंत्रण, फसल उत्पादन में सुधार, और मिट्टी की उर्वरता में योगदान करती है। इसका सही उपयोग कृषि उत्पादन को सतत और पर्यावरण मित्रवत बनाने में सहायक हो सकता है।
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