खाद्य प्रसंस्करण और सम्बंधित उद्योगों को प्रोत्साहन देने के सम्बन्ध में भारत सरकार की नीतियों का मूल्यांकन कीजिये । (125 Words) [UPPSC 2023]
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव **1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव: **1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव: सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडीRead more
सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
**1. सहायिकाओं का सस्यन प्रतिरूप पर प्रभाव:
**1. विशिष्ट फसलों की ओर झुकाव:
- सहायिकाओं की प्राथमिकता: खाद्य और उर्वरक सब्सिडी के कारण कुछ फसलों जैसे धान और गेहूँ को प्राथमिकता दी जाती है। उदाहरण के लिए, धान के लिए सब्सिडी ने पंजाब और हरियाणा में धान की खेती को प्रोत्साहित किया, जिससे अन्य फसलों की खेती कम हो गई।
**2. संसाधन विषमताएँ:
- असामान्य संसाधन उपयोग: जब सहायता केवल कुछ फसलों पर केंद्रित होती है, तो अन्य फसलों की संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित होती है। जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग धान की खेती के लिए किया जाता है, जिससे जलवायु संकट पैदा हो रहा है।
**3. आर्थिक प्रभाव:
- आय में अस्थिरता: सब्सिडी केवल चुनिंदा फसलों को प्रोत्साहित करती है, जिससे अन्य फसलों की उपज और किसानों की आय में अस्थिरता आ सकती है। चीनी उद्योग पर सब्सिडी ने कुछ क्षेत्रों में आर्थिक असंतुलन पैदा किया है।
**2. सस्य विविधता पर प्रभाव:
**1. सस्य विविधता में कमी:
- सिर्फ सब्सिडी प्राप्त फसलें: सब्सिडी के कारण फसल विविधता कम हो जाती है। धान और गेहूँ पर अत्यधिक ध्यान देने से दलहनों और तिलहनों की खेती में कमी आई है।
**2. पर्यावरणीय समस्याएँ:
- मृदा और जलवायु पर असर: एक ही फसल की अत्यधिक खेती से मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती है और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। पंजाब में जलस्तर में गिरावट इसका उदाहरण है।
**3. आर्थिक अस्थिरता:
- जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता: कम फसल विविधता से किसानों को जलवायु परिवर्तन और कीटों के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है। पारंपरिक फसलों की असफलता के कारण किसानों की आय में गिरावट आई है।
**3. लघु और सीमांत कृषकों के लिए महत्त्वपूर्ण तत्व:
**1. फसल बीमा:
- जोखिम प्रबंधन: फसल बीमा प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के कारण होने वाली फसलों की क्षति से किसानों को सुरक्षा प्रदान करता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) ने हाल ही में बाढ़ और सूखे से प्रभावित किसानों को आर्थिक राहत दी है।
**2. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):
- आय स्थिरता: MSP सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनकी फसल के लिए एक न्यूनतम मूल्य मिले, जिससे वे बाजार की अस्थिरता से बच सकें। पल्स और तिलहन पर MSP में वृद्धि ने इन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया है और किसानों की आय को स्थिर किया है।
**3. खाद्य प्रसंस्करण:
- मूल्य संवर्धन और बाजार पहुंच: खाद्य प्रसंस्करण से कच्चे उत्पादों को मूल्यवर्धन मिलती है और किसानों को बाजार में बेहतर पहुंच मिलती है। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (PMKSY) ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना को बढ़ावा दिया है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य और बाजार मिल रहा है।
हालिया उदाहरण:
- गुजरात खाद्य प्रसंस्करण मॉडल: गुजरात में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से किसानों को उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिला है और बाजार पहुंच में सुधार हुआ है।
निष्कर्ष:
- सरकारी सहायता फसल उत्पादन और विविधता को प्रभावित करती है, विशेष रूप से जब ये सहायता सीमित फसलों पर केंद्रित होती है। फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उपाय लघु और सीमांत किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता, जोखिम प्रबंधन और बेहतर बाजार पहुंच सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन उपायों को सशक्त कर और उन्हें व्यापक रूप से लागू करके किसानों की आर्थिक स्थिति और कृषि प्रणाली को मजबूत किया जा सकता है।
खाद्य प्रसंस्करण नीतियों का मूल्यांकन भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियों का कार्यान्वयन किया है: 1. राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति: इस नीति का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण के GDP में योगदान बढ़ाना और निवेश को प्रोत्साहित करना है। 2. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधRead more
खाद्य प्रसंस्करण नीतियों का मूल्यांकन
भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियों का कार्यान्वयन किया है:
1. राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण नीति: इस नीति का उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण के GDP में योगदान बढ़ाना और निवेश को प्रोत्साहित करना है।
2. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN): यह योजना किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिससे वे उच्च गुणवत्ता वाले कच्चे माल का उत्पादन कर सकें। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि इससे किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
3. उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना: इस योजना का लक्ष्य प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में उत्पादन को प्रोत्साहित करना है। कंपनियों जैसे हिंदुस्तान यूनिलीवर और बृहन्य इंडस्ट्रीज ने बड़े पैमाने पर निवेश किया है।
4. आत्मनिर्भर भारत अभियान: यह खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है, जिससे खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों में निवेश में वृद्धि हुई है।
इन पहलों से क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हुआ है, जिससे रोजगार का सृजन और खाद्य अपव्यय में कमी आई है।
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