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पंचायती राज संस्थाओं के अप्रभावी प्रदर्शन के पाँच कारणों का उल्लेख कीजिए।
परिचय: भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्थापना 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत हुई थी, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना और स्थानीय शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना था। हालांकि, अपनी स्थापना के तीन दशकों के बाद भी, कई क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाएँ अपेRead more
परिचय: भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) की स्थापना 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत हुई थी, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना और स्थानीय शासन में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना था। हालांकि, अपनी स्थापना के तीन दशकों के बाद भी, कई क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाएँ अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में असफल रही हैं। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं।
1. वित्तीय स्वतंत्रता की कमी: पंचायती राज संस्थाओं के अप्रभावी प्रदर्शन का एक प्रमुख कारण उनकी वित्तीय स्वतंत्रता की कमी है। PRIs के पास आय के स्वतंत्र स्रोतों की कमी है और उन्हें राज्य सरकारों से अनुदान और सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अधिकांश पंचायतें अपने बजट का बड़ा हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारों से प्राप्त करती हैं, जिससे उनकी योजना और विकास कार्यों में स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
2. अधिकारों और शक्तियों की सीमितता: हालांकि संविधान के तहत PRIs को व्यापक अधिकार दिए गए हैं, लेकिन व्यवहार में राज्य सरकारें इनके अधिकारों को सीमित करती हैं। कई बार पंचायतों को नीतियों के क्रियान्वयन में अपर्याप्त अधिकार दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में पंचायतों को शिक्षा, स्वास्थ्य और जल प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निर्णय लेने की सीमित स्वतंत्रता होती है, जिससे वे प्रभावी रूप से कार्य नहीं कर पातीं।
3. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी: पंचायती राज संस्थाओं में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी भी उनके अप्रभावी प्रदर्शन का एक बड़ा कारण है। कई पंचायत स्तर पर निर्णय लेने में पारदर्शिता का अभाव होता है, और विकास योजनाओं में धन का दुरुपयोग आम है। उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत कई पंचायतों में भ्रष्टाचार के मामलों की सूचना मिली है, जिससे इस योजना का वास्तविक लाभ लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता।
4. क्षमता और प्रशिक्षण की कमी: PRIs के प्रतिनिधियों की क्षमता और प्रशिक्षण का अभाव भी उनके अप्रभावी प्रदर्शन का एक कारण है। अधिकांश पंचायती प्रतिनिधि आवश्यक प्रशासनिक और तकनीकी ज्ञान से वंचित होते हैं, जिससे वे प्रभावी ढंग से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ रहते हैं। उदाहरण के लिए, कई पंचायतों में डिजिटलीकरण की पहलें धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं क्योंकि प्रतिनिधि और कर्मचारी डिजिटल उपकरणों के उपयोग में प्रशिक्षित नहीं हैं।
5. महिला और वंचित वर्ग की भागीदारी में कमी: हालांकि 73वें संशोधन के तहत महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है, लेकिन वास्तविक भागीदारी अभी भी सीमित है। कई मामलों में, महिला प्रतिनिधियों को उनके परिवार के पुरुष सदस्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिससे उनकी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कई महिला सरपंच “प्रॉक्सी सरपंच” के रूप में कार्य करती हैं, जहां उनके पति या अन्य पुरुष सदस्य उनके नाम पर निर्णय लेते हैं।
निष्कर्ष: पंचायती राज संस्थाओं का अप्रभावी प्रदर्शन कई संरचनात्मक और कार्यात्मक चुनौतियों का परिणाम है। वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, सीमित अधिकार, भ्रष्टाचार, प्रशिक्षण का अभाव, और महिलाओं एवं वंचित वर्गों की प्रभावी भागीदारी की कमी जैसे कारक इनके प्रदर्शन में बाधा डालते हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए आवश्यक है कि PRIs को अधिक स्वायत्तता, बेहतर वित्तीय संसाधन, और प्रतिनिधियों के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान किए जाएं, ताकि वे अपने दायित्वों को प्रभावी ढंग से निभा सकें और जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत कर सकें।
See lessसुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ': शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कRead more
सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’:
शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी: पंचायतें और समितियाँ अक्सर अपर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण से जूझती हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में, पंचायत सदस्य प्रशासनिक क्षमताओं की कमी के कारण ग्रामीण विकास परियोजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं कर पाते। ये सदस्य आमतौर पर राजनीतिक गतिविधियों में अधिक व्यस्त रहते हैं, जिससे प्रशासनिक कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
राजनीतिक हस्तक्षेप: स्थानीय राजनीति अक्सर इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। हाल ही में, पंजाब में देखा गया कि पंचायत चुनावों में राजनीतिक दलों ने अपने समर्थकों को चुनकर विकास की बजाय राजनीतिक हितों को प्राथमिकता दी। इस तरह के हस्तक्षेप से पंचायतों की स्वतंत्रता और प्रभावशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है।
संसाधनों की कमी: पंचायतों और समितियों को आवश्यक वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में, विकास परियोजनाओं के लिए बजट की कमी ने प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डाली है।
संस्थागत ढांचे की कमी: इन संस्थाओं के पास एक स्पष्ट और मजबूत संगठनों की कमी होती है। इस कमी के कारण, जैसे कि झारखंड में पंचायतों में, निर्णय-निर्माण और कार्यान्वयन की प्रक्रियाएँ प्रभावी ढंग से संचालित नहीं हो पातीं।
सुधार के उपाय:
इन सुधारात्मक उपायों को अपनाकर पंचायतें और समितियाँ अपने वास्तविक उद्देश्य की ओर बढ़ सकती हैं और प्रभावी शासन के उपकरण बन सकती हैं।
See less“स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का भारत के राजनीतिक प्रक्रम के पितृतंत्रात्मक अभिलक्षण पर एक सीमित प्रभाव पड़ा है।" टिप्पणी कीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के बावजूद, इसका पितृतंत्रात्मक राजनीतिक प्रक्रम पर सीमित प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है: 1. आरक्षण की प्रक्रिया और प्रभाव: स्थानीय स्वशासन के लिए महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरRead more
भारत में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के बावजूद, इसका पितृतंत्रात्मक राजनीतिक प्रक्रम पर सीमित प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति की विवेचना निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से की जा सकती है:
1. आरक्षण की प्रक्रिया और प्रभाव:
स्थानीय स्वशासन के लिए महिलाओं के लिए 33% सीटों का आरक्षण संविधान के 73वें और 74वें संशोधनों के तहत किया गया है। इसका उद्देश्य महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करना है। हालांकि, आरक्षण ने महिलाओं की संख्या में वृद्धि की है, लेकिन यह पितृतंत्रात्मक संरचना के प्रभाव को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाया है।
2. पितृतंत्रात्मक बाधाएँ:
अनेक मामलों में, आरक्षित सीटों पर महिलाओं को नामांकित किया जाता है, लेकिन वास्तविक राजनीतिक शक्ति उनके हाथ में नहीं होती। अक्सर, महिलाओं को पितृसत्तात्मक परिवारों द्वारा उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जहां वे खुद चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने की बजाय, परिवार के पुरुष सदस्य की ओर से प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार, महिला आरक्षण के बावजूद, पारंपरिक पितृतंत्रात्मक संरचनाएँ कायम रहती हैं।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
महिलाओं के लिए आरक्षण के बावजूद, भारतीय समाज में गहरी जड़ी हुई पितृसत्तात्मक धारणाएँ और सांस्कृतिक मान्यताएँ महिलाओं की प्रभावी भागीदारी में बाधक बनती हैं। इन सामाजिक बाधाओं के कारण, महिलाओं की वास्तविक स्थिति में सुधार नहीं हो पाता और उनके निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
4. प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी:
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में महिलाओं को सशक्त करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक और कानूनी समर्थन की कमी भी है। प्रशिक्षण, संसाधनों और अधिकारों की कमी महिलाओं की राजनीतिक प्रभावशीलता को सीमित करती है।
इस प्रकार, जबकि महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है, पितृतंत्रात्मक अवशेष और सामाजिक बाधाएँ महिलाओं की राजनीतिक स्थिति पर सीमित प्रभाव डालती हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक सशक्तिकरण और समर्थन की आवश्यकता है।
See lessभारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिए। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिए पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती है? (250 words) [UPSC 2018]
भारत में पंचायत प्रणाली का महत्व पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो स्थानीय स्वशासन और स्थानीय विकास को सशक्त बनाता है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है: 1. स्थानीय स्वशासन: पंचायतें स्थानीय लोगों को निर्णय लेने और सुविधाओं की योजना बनानेRead more
भारत में पंचायत प्रणाली का महत्व
पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो स्थानीय स्वशासन और स्थानीय विकास को सशक्त बनाता है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
1. स्थानीय स्वशासन: पंचायतें स्थानीय लोगों को निर्णय लेने और सुविधाओं की योजना बनाने में शामिल करती हैं, जिससे स्थानीय समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान संभव होता है। यह लोकतंत्र की गहराई को बढ़ाती है और लोगों को सशक्त बनाती है।
2. विकास की गति में सुधार: पंचायतें स्थानीय विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सहायक होती हैं। ये परियोजनाएँ सामुदायिक आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं, जिससे विकास की गति और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
3. समुदाय की भागीदारी: पंचायतों के माध्यम से समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इससे स्थानीय मुद्दों और समस्याओं को समझा और सुलझाया जा सकता है, और विकास योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है।
विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के वैकल्पिक स्रोत:
1. स्थानीय संसाधनों का उपयोग: पंचायतें स्थानीय संसाधनों जैसे खनिज, वन उत्पाद, और जल संसाधनों का उपयोग कर सकती हैं। ये संसाधन स्थानीय राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकते हैं।
2. सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को अपनाकर, पंचायतें निजी कंपनियों और उद्यमियों के साथ सहयोग कर सकती हैं। इससे विकास परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं।
3. स्थानीय कर और शुल्क: पंचायतें स्थानीय करों और सेवा शुल्क को लागू कर सकती हैं। जैसे व्यापार लाइसेंस शुल्क, जल उपयोग शुल्क, और पार्किंग शुल्क से स्थानीय राजस्व बढ़ाया जा सकता है।
4. वित्तीय सहायता और अनुदान: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता और अनुदान के अलावा, पंचायतें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, एनजीओ, और फाउंडेशनों से भी वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकती हैं।
5. सामुदायिक योगदान: स्वयंसेवी सेवाओं और सामुदायिक योगदान को बढ़ावा देकर, पंचायतें विकास परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटा सकती हैं।
उपसंहार: पंचायत प्रणाली भारत में स्थानीय विकास और स्वशासन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके प्रभावी संचालन और वित्तीय स्थिरता के लिए, पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा स्थानीय संसाधनों, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, स्थानीय कर और शुल्क, तथा अन्य वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग कर सकती हैं।
See less"भारत में स्थानीय स्वशासन पद्धति, शासन का प्रभावी साधन साबित नहीं हुई है।" इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए तथा स्थिति में सुधार के लिए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: 1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनिRead more
स्थानीय स्वशासन पद्धति की प्रभावशीलता: समालोचनात्मक परीक्षण
स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj और नगर निगम) भारत में शासन का प्रभावी साधन बनने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है:
1. वित्तीय संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को अक्सर अपर्याप्त बजट और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे वे बुनियादी सेवाएँ और विकास योजनाएँ प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाते।
2. शक्तियों का संकुचन: स्थानीय निकायों को आवश्यक शक्ति और स्वायत्तता नहीं दी गई है। राज्य सरकारें कई बार स्थानीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाती हैं।
3. प्रशासनिक अक्षमता: स्थानीय निकायों में प्रशासनिक क्षमता और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी होती है, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
स्थिति में सुधार के सुझाव:
1. वित्तीय स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता और संसाधन प्रदान किए जाएं, जैसे कि केंद्रीय और राज्य वित्तीय सहायता।
2. शक्तियों का विकेंद्रीकरण: स्थानीय निकायों को अधिक शक्ति और निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाए।
3. क्षमता निर्माण: प्रशासनिक और तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान कर स्थानीय निकायों की क्षमता और कार्यकुशलता को बढ़ाया जाए।
इन सुधारों से स्थानीय स्वशासन पद्धति को अधिक प्रभावी और नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाया जा सकता है।
See lessभारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता एवं संपोषिता 'प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष' की अपनी रचनात्मक प्रावस्था से 'प्रकार्यात्मकता' की समकालिक अवस्था की ओर स्थानान्तरित हुई हाल के समय में प्रकार्यात्मकता की दृष्टि से स्थानीय निकायों द्वारा सामना की जा रही अहम् चुनौतियों को आलोकित कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता और संपोषिता को सुनिश्चित करने के लिए 'प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष' की रचनात्मक व्यवस्था से 'प्रकार्यात्मकता' की ओर स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निकायों को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्य चुनौतियाँ: आर्थिकRead more
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता और संपोषिता को सुनिश्चित करने के लिए ‘प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष’ की रचनात्मक व्यवस्था से ‘प्रकार्यात्मकता’ की ओर स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निकायों को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य चुनौतियाँ:
आर्थिक संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को स्थिर और पर्याप्त कोष की कमी का सामना करना पड़ता है। निधियों की अपर्याप्तता और वित्तीय प्रबंधन की कमी के कारण वे आवश्यक बुनियादी ढांचे और सेवाओं को प्रभावी ढंग से संचालित नहीं कर पाते हैं।
प्रबंधन और प्रशिक्षण:कर्मचारी स्थानीय निकायों में कर्मचारी की कमी और प्रशिक्षण की कमी से कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या और क्षमता की कमी के कारण काम की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
सक्षम अधिकार और स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अपनी योजनाओं और कार्यों को स्वतंत्र रूप से लागू करने में कठिनाई होती है, क्योंकि कई बार राज्य और केंद्र सरकार की नीतियाँ और निर्देश स्थानीय निकायों की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं।
सामाजिक समावेशिता: स्थानीय निकायों को समुदायों की विविधता को समावेशी तरीके से संबोधित करने में कठिनाई होती है। विभिन्न जातियों, धर्मों, और सामाजिक वर्गों के बीच समान वितरण और प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता है।
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता: भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी स्थानीय निकायों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। संसाधनों का दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता से विकास योजनाओं की सफलता बाधित होती है।
इन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए, स्थानीय निकायों को वित्तीय प्रबंधन में सुधार, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और विकास, और अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए प्रयास करना होगा। इसके साथ ही, नागरिक भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा देने से स्थानीय प्रशासन की क्षमता और प्रभावशीलता में सुधार किया जा सकता है।
See lessनगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर उनकी निर्भरता बढ़ गई है। इस प्रवृत्ति से जुड़े हुए मुद्दे क्या हैं? भारत में नगर निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए किन उपायों की मावश्यकता है? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
नगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे कई मुद्दे उत्पन्न हुए हैं: वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी: नगर निगमों की राजस्व-सृजन क्षमताएँ सीमित होती हैं, जिससे उन्हें राज्यों और केंद्र से अनुदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे स्थानीय विकास परRead more
नगर निगमों की सीमित राजस्व सूजन क्षमता के कारण राज्यों के करों और अनुदानों पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे कई मुद्दे उत्पन्न हुए हैं:
वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी: नगर निगमों की राजस्व-सृजन क्षमताएँ सीमित होती हैं, जिससे उन्हें राज्यों और केंद्र से अनुदानों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे स्थानीय विकास परियोजनाओं और सेवाओं की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वेतन और पेंशन का दबाव: नगर निगमों को कर्मचारियों के वेतन और पेंशन के लिए सीमित संसाधनों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी संचालन क्षमता प्रभावित होती है।
विकास कार्यों की कमी: अनुदानों पर निर्भरता से नगर निगमों को स्थायी और प्रभावी विकास योजनाओं को लागू करने में कठिनाई होती है, जो स्थानीय बुनियादी ढांचे के विकास को प्रभावित करता है।
प्रशासनिक दक्षता की कमी: लगातार वित्तीय सहायता की आवश्यकता से प्रशासनिक दक्षता और स्वायत्तता में कमी आती है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ धीमी और जटिल हो जाती हैं।
नगर निगमों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
स्थानीय कराधान सुधार: नगर निगमों को नए स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करने के लिए स्वायत्तता दी जानी चाहिए। जैसे, स्थानीय करों की दरों को बढ़ाना और नई कर नीतियों को अपनाना।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: कर संग्रहण और वित्तीय प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाना चाहिए, जैसे कि ई-गवर्नेंस और डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ।
स्थायी वित्तीय योजना: नगर निगमों को लंबी अवधि की वित्तीय योजनाएँ तैयार करने और संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करने की आवश्यकता है।
वित्तीय सुधार आयोग: राज्यों द्वारा वित्तीय सुधार आयोगों का गठन किया जा सकता है जो नगर निगमों के वित्तीय प्रबंधन को सुधारने के लिए सुझाव दे सकें।
केंद्र और राज्य सहायता: केंद्र और राज्य सरकारों को नगर निगमों के लिए अनुदान और सहायता की प्रक्रिया को पारदर्शी और दक्ष बनाना चाहिए, ताकि फंड की आवंटन की प्रक्रिया में सुधार हो सके।
इन उपायों से नगर निगमों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता और संसाधनों की स्थिरता मिलेगी, जिससे स्थानीय सेवाओं और विकास कार्यों में सुधार संभव होगा।
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