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अक्सर कहा जाता है कि निर्धनता भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त करती है। परन्तु, ऐसे भी उदाहरणों की कोई कमी नहीं है जहाँ सम्पन्न एवं शक्तिशाली लोग बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं। लोगों में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधारभूत कारण क्या हैं? उदाहरणों के द्वारा अपने उत्तर को सम्पुष्ट कीजिए।(150 words) [UPSC 2014]
भ्रष्टाचार के आधारभूत कारण यह सत्य है कि निर्धनता भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त कर सकती है, लेकिन भ्रष्टाचार केवल निर्धनों तक सीमित नहीं है। सम्पन्न और शक्तिशाली लोग भी बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं: 1. लालच और अधिक संपत्ति की इच्छा लालच और संपत्ति को अनंतRead more
भ्रष्टाचार के आधारभूत कारण
यह सत्य है कि निर्धनता भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त कर सकती है, लेकिन भ्रष्टाचार केवल निर्धनों तक सीमित नहीं है। सम्पन्न और शक्तिशाली लोग भी बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. लालच और अधिक संपत्ति की इच्छा
लालच और संपत्ति को अनंत मात्रा में बढ़ाने की चाहत, सम्पन्न और शक्तिशाली लोगों को भ्रष्टाचार की ओर धकेलती है। उदाहरण के लिए, पीएनबी बैंक घोटाला (2018) में नीरव मोदी, एक प्रसिद्ध व्यापारी होते हुए भी, बड़ी मात्रा में धोखाधड़ी में लिप्त पाया गया।
2. सत्ता का दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी
शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग और जवाबदेही की कमी भी भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण है। 2022 में सामने आए दिल्ली शराब नीति घोटाले में राजनेताओं और अधिकारियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग देखने को मिला, जिससे बड़ी मात्रा में भ्रष्टाचार हुआ।
3. कमजोर कानूनी और प्रशासनिक ढांचा
कमजोर कानूनी ढांचे और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की कमी, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। सत्यम घोटाला (2009) एक उदाहरण है जहाँ कंपनी के शीर्ष अधिकारियों ने कानूनी प्रक्रियाओं की कमी का फायदा उठाकर बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी की।
4. सांस्कृतिक स्वीकृति और समाज में भ्रष्टाचार का सामान्यीकरण
कुछ समाजों में, भ्रष्टाचार सांस्कृतिक रूप से स्वीकृत हो जाता है, जिससे यह एक सामान्य व्यवहार बन जाता है। 2023 के तमिलनाडु खनन घोटाले में, सामाजिक और राजनीतिक प्रतिष्ठानों द्वारा भ्रष्टाचार को सामान्य मान लिया गया था।
5. व्यक्तिगत और राजनीतिक हित
व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए लोग अक्सर भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं। 2023 में हुए पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले में, राजनीतिक हित साधने के लिए भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ।
निष्कर्ष
भ्रष्टाचार के पीछे केवल निर्धनता ही नहीं, बल्कि लालच, सत्ता का दुरुपयोग, कमजोर कानूनी ढांचा, सांस्कृतिक स्वीकृति, और व्यक्तिगत व राजनीतिक हित भी प्रमुख कारण हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी और व्यापक हैं, जो समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करती हैं।
See lessलोक-सेवकों पर भारी नैतिक उत्तरदायित्व होता है, क्योंकि वे सत्ता के पदों पर आसीन होते हैं, लोक-निधियों की विशाल राशियों पर कार्रवाई करते हैं, और उनके निर्णयों का समाज और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। ऐसे उत्तरदायित्व को निभाने के लिए, अपनी नैतिक सक्षमता पुष्ट करने हेतु आपने क्या कदम उठाए हैं?(150 words) [UPSC 2014]
लोक-सेवकों का नैतिक उत्तरदायित्व लोक-सेवकों पर भारी नैतिक उत्तरदायित्व होता है क्योंकि वे समाज के लिए निर्णय लेते हैं जो व्यापक और दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं। वे लोक-निधियों का प्रबंधन करते हैं और सत्ता के पदों पर आसीन होते हैं, जिससे उनकी हर कार्रवाई का समाज और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए,Read more
लोक-सेवकों का नैतिक उत्तरदायित्व
लोक-सेवकों पर भारी नैतिक उत्तरदायित्व होता है क्योंकि वे समाज के लिए निर्णय लेते हैं जो व्यापक और दीर्घकालिक प्रभाव डालते हैं। वे लोक-निधियों का प्रबंधन करते हैं और सत्ता के पदों पर आसीन होते हैं, जिससे उनकी हर कार्रवाई का समाज और पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए, नैतिक सक्षमता सुनिश्चित करना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
नैतिक सक्षमता पुष्ट करने के लिए उठाए गए कदम
इन कदमों से लोक-सेवक अपने नैतिक उत्तरदायित्व को प्रभावी ढंग से निभा सकते हैं, जिससे समाज और पर्यावरण को लाभ होता है।
See lessलोक-जीवन में 'सत्यनिष्ठा' से आप क्या अर्थ ग्रहण करते हैं? आधुनिक काल में इसके अनुसार चलने में क्या कठिनाइयाँ हैं? इन कठिनाइयों पर किस प्रकार विजय प्राप्त कर सकते हैं?(150 words) [UPSC 2014]
लोक-जीवन में 'सत्यनिष्ठा' का अर्थ सत्यनिष्ठा का अर्थ है सच्चाई, ईमानदारी, और सच्चे आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता। यह समाज में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा मूल्यों और नैतिकताओं का पालन करने की प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए, भारत के लोकपाल और लोकायुक्त जैसे संस्थान सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचारRead more
लोक-जीवन में ‘सत्यनिष्ठा’ का अर्थ
सत्यनिष्ठा का अर्थ है सच्चाई, ईमानदारी, और सच्चे आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता। यह समाज में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा मूल्यों और नैतिकताओं का पालन करने की प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए, भारत के लोकपाल और लोकायुक्त जैसे संस्थान सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार से निपटने के लिए स्थापित किए गए हैं।
आधुनिक काल में सत्यनिष्ठा की कठिनाइयाँ
इन कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने के उपाय
इन उपायों को अपनाकर, सत्यनिष्ठा को प्रोत्साहित किया जा सकता है और समाज में ईमानदारी और नैतिकता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
See lessआज हम देखते हैं कि आचार संहिताओं के निर्धारण, सतर्कता सेलों/आयोगों की स्थापना, आर० टी० आइ०, सक्रिय मीडिया और विधिक यांत्रिकत्वों के प्रबलन जैसे विभिन्न उपायों के बावजूद भ्रष्टाचारपूर्ण कर्म नियंत्रण के अधीन नहीं आ रहे हैं।
भ्रष्टाचार नियंत्रण के उपायों का मूल्यांकन 1. आचार संहिताएँ और सतर्कता आयोग प्रभावशीलता: आचार संहिताएँ और सतर्कता आयोग भ्रष्टाचार की निगरानी बढ़ाते हैं। औचित्य: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसे निकायों ने कई भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा किया है। उदाहरण के लिए, विवेकानंद वाजपेयी का मामला। चुनौतियाँRead more
भ्रष्टाचार नियंत्रण के उपायों का मूल्यांकन
1. आचार संहिताएँ और सतर्कता आयोग
प्रभावशीलता:
औचित्य:
चुनौतियाँ:
2. आरटीआई (सूचना का अधिकार)
प्रभावशीलता:
औचित्य:
चुनौतियाँ:
3. सक्रिय मीडिया
प्रभावशीलता:
औचित्य:
चुनौतियाँ:
4. विधिक यांत्रिकत्व
प्रभावशीलता:
औचित्य:
चुनौतियाँ:
सुझाई गई रणनीतियाँ
1. whistleblower सुरक्षा को मजबूत करना
रणनीति:
औचित्य:
2. डिजिटल पारदर्शिता को अपनाना
रणनीति:
औचित्य:
3. न्यायिक सुधार
रणनीति:
औचित्य:
4. सार्वजनिक शिक्षा और भागीदारी
रणनीति:
औचित्य:
निष्कर्ष: हालांकि मौजूदा उपायों ने कुछ प्रभाव डाला है, लेकिन whistleblower सुरक्षा, डिजिटल पारदर्शिता, और न्यायिक सुधार जैसे रणनीतियाँ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान कर सकती हैं।
See lessवर्धित राष्ट्रीय संपत्ति के लाभों का न्यायोचित वितरण नहीं हो सका है । इसने “बहुमत के नुकसान पर केवल छोटी अल्पसंख्या के लिए ही आधुनिकता और वैभव के एन्क्लेव” बनाए हैं। इसका औचित्य सिद्ध कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
वर्धित राष्ट्रीय संपत्ति और इसका असमान वितरण वर्धित राष्ट्रीय संपत्ति ने न्यायोचित वितरण के बजाय “छोटी अल्पसंख्या के लिए आधुनिकता और वैभव के एन्क्लेव” निर्मित किए हैं, जिसका औचित्य कुछ प्रमुख बिंदुओं से सिद्ध किया जा सकता है। धन का संकेन्द्रण: देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बावजूद, संपत्ति का अधिRead more
वर्धित राष्ट्रीय संपत्ति और इसका असमान वितरण
वर्धित राष्ट्रीय संपत्ति ने न्यायोचित वितरण के बजाय “छोटी अल्पसंख्या के लिए आधुनिकता और वैभव के एन्क्लेव” निर्मित किए हैं, जिसका औचित्य कुछ प्रमुख बिंदुओं से सिद्ध किया जा सकता है।
धन का संकेन्द्रण: देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बावजूद, संपत्ति का अधिकांश भाग अल्पसंख्यक वर्ग के हाथों में सिमटकर रह गया है। उदाहरण के लिए, भारत में उच्च-तकनीकी क्षेत्रों जैसे बंगलुरू और गुड़गांव में अत्यधिक समृद्धि देखी जाती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में गरीबी और अविकसितता बनी रहती है।
आधुनिकता के एन्क्लेव: मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स या दिल्ली के कनॉट प्लेस जैसे क्षेत्र आधुनिक सुविधाओं और वैभव का प्रतीक हैं, लेकिन ये क्षेत्र विकसित नहीं और अविकसित इलाकों से घिरे हुए हैं। इन क्षेत्रों के चारों ओर आय असमानता और आधारभूत सेवाओं की कमी देखी जाती है।
बहुमत पर प्रभाव: अधिकांश जनसंख्या, विशेषकर ग्रामीण और वंचित समुदाय, आर्थिक विकास से बहुत कम लाभान्वित होते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी बनी रहती है, जो संपत्ति के असमान वितरण को दर्शाता है।
इस प्रकार, वर्धित राष्ट्रीय संपत्ति ने छोटी अल्पसंख्या के लिए आधुनिकता और वैभव के एन्क्लेव बनाए हैं, जबकि बहुमत को इससे न्यूनतम लाभ प्राप्त हुआ है।
See lessवर्तमान प्रशासनिक संरचना में गुणात्मक सेवा प्रदान करने के लिये क्या कार्य-संस्कृति में बदलाव आवश्यक है? तर्क सहित उत्तर दीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
वर्तमान प्रशासनिक संरचना में कार्य-संस्कृति में बदलाव की आवश्यकता **1. कुशलता में वृद्धि: एक आधुनिक कार्य-संस्कृति कुशलता को बढ़ावा देती है, जिससे प्रक्रियाओं की सरलता और तकनीकी एकीकरण होता है। उदाहरण के तौर पर, डिजिटल इंडिया पहल ने ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों के माध्यम से कागज के काम को कम किया है और पRead more
वर्तमान प्रशासनिक संरचना में कार्य-संस्कृति में बदलाव की आवश्यकता
**1. कुशलता में वृद्धि: एक आधुनिक कार्य-संस्कृति कुशलता को बढ़ावा देती है, जिससे प्रक्रियाओं की सरलता और तकनीकी एकीकरण होता है। उदाहरण के तौर पर, डिजिटल इंडिया पहल ने ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों के माध्यम से कागज के काम को कम किया है और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को तेज किया है, जिससे सेवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
**2. कर्मचारी सशक्तिकरण: एक सहकारी और सशक्तिकरण की दिशा में बदलाव से कर्मचारी संतोष और उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। मिशन कर्मयोगी कार्यक्रम, जो सिविल सेवकों के पेशेवर विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, इस बात का उदाहरण है कि कैसे कर्मचारियों को सशक्त बनाने से सेवा की गुणवत्ता और उत्तरदायिता बढ़ सकती है।
**3. ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण: एक ग्राहक-केंद्रित कार्य-संस्कृति सुनिश्चित करती है कि नागरिकों की जरूरतें और फीडबैक प्राथमिकता पर हों। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना (PM-GAY) ने नागरिकों की फीडबैक और सहभागी शासन पर ध्यान केंद्रित करके बेहतर कार्यान्वयन और सेवा प्रदान की है।
**4. अनुकूलन और नवाचार: आधुनिक कार्य-संस्कृति अनुकूलन और नवाचार को प्रोत्साहित करती है, जो बदलती सार्वजनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग, जैसे कि सरकारी सेवाओं में AI आधारित चैटबॉट्स, तकनीक का लाभ उठाने का एक उदाहरण है जो सेवा की दक्षता को सुधारता है।
निष्कर्ष: प्रशासनिक संरचना में कार्य-संस्कृति का बदलाव गुणात्मक सेवा प्रदान करने के लिए आवश्यक है। कुशलता, कर्मचारी सशक्तिकरण, ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण, और नवाचार को अपनाना अधिक उत्तरदायी और प्रभावी शासन की दिशा में आवश्यक कदम हैं। जैसे-जैसे सार्वजनिक अपेक्षाएँ बदलती हैं, कार्य-संस्कृति को इन मांगों को पूरा करने के लिए बदलना होगा।
See lessवे कौन सी परिस्थितियाँ है जो अधिकारी की सत्यनिष्ठा के बारे में संदेह उत्पन्न करती है ? (125 Words) [UPPSC 2022]
अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ 1. भ्रष्टाचार में संलिप्तता: जब अधिकारी आर्थिक भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी में शामिल होते हैं, तो उनकी सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न होता है। हाल ही में, दिल्ली पुलिस रिश्वतखोरी मामला ने कई अधिकारियों की ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं। 2. हितों काRead more
अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ
1. भ्रष्टाचार में संलिप्तता: जब अधिकारी आर्थिक भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी में शामिल होते हैं, तो उनकी सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न होता है। हाल ही में, दिल्ली पुलिस रिश्वतखोरी मामला ने कई अधिकारियों की ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं।
2. हितों का टकराव: जब अधिकारियों के व्यक्तिगत या वित्तीय हित उनके आधिकारिक कर्तव्यों के साथ टकराते हैं, तो उनकी निष्पक्षता पर संदेह होता है। पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाला में शामिल अधिकारियों की यह स्थिति इसी प्रकार की थी।
3. पारदर्शिता की कमी: आय की असामान्य वृद्धि या संपत्ति का खुलासा न करना संदेह उत्पन्न करता है। नीरव मोदी मामले में कई अधिकारियों की संपत्तियों और लेनदेन ने ऐसा संदेह पैदा किया।
4. संदिग्ध संबंध: यदि अधिकारी के संदिग्ध व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ संबंध होते हैं, तो उनकी निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं। हाल के कॉर्पोरेट धोखाधड़ी मामलों में अधिकारियों के संदिग्ध संबंधों ने संदेह पैदा किया है।
निष्कर्ष: इन परिस्थितियों से अधिकारी की सत्यनिष्ठा पर संदेह उत्पन्न होता है, जिससे ईमानदारी और जवाबदेही की महत्वपूर्णता उजागर होती है।
See lessसमाज में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आपके अनुसार क्या कदम उठाने चाहिए? व्याख्या कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
समाज में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदम **1. कानूनी ढांचे को मजबूत करना (Strengthening Legal Framework): कठोर कानून और प्रवर्तन: भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कानून लागू करें और उनका सख्ती से पालन करवाएँ। भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण बRead more
समाज में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदम
**1. कानूनी ढांचे को मजबूत करना (Strengthening Legal Framework):
**2. पारदर्शिता को बढ़ावा देना (Promoting Transparency):
**3. सूचना देने वालों को प्रोत्साहित करना (Encouraging Whistleblowers):
**4. नैतिक मानकों को बढ़ावा देना (Promoting Ethical Standards):
**5. प्रौद्योगिकी का उपयोग (Leveraging Technology):
**6. संस्थानिक अखंडता को मजबूत करना (Strengthening Institutional Integrity):
इन कदमों को अपनाकर समाज में भ्रष्टाचार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है और सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास बनाए रखा जा सकता है।
See lessविधि एवं आचारनीति मानव आचरण को नियन्त्रित करने वाले दो उपकरण माने जाते हैं ताकि आचरण को सभ्य सामाजिक अस्तित्व के लिए सहायक बनाया जा सके ।
विधि और आचारनीति: सभ्य सामाजिक अस्तित्व के लिए मानव आचरण को नियंत्रित करने के उपकरण 1. विधि (Law): व्याख्या: विधि एक औपचारिक तंत्र है जो मानव व्यवहार को नियमों और कानूनी प्रावधानों के माध्यम से नियंत्रित करता है। यह स्पष्ट दिशा-निर्देश और दंड प्रदान करता है जिससे सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखा जा सके।Read more
विधि और आचारनीति: सभ्य सामाजिक अस्तित्व के लिए मानव आचरण को नियंत्रित करने के उपकरण
1. विधि (Law):
2. आचारनीति (Ethics):
3. सहयोगात्मक स्वभाव:
4. हाल की प्रगति:
निष्कर्ष: विधि और आचारनीति दोनों मानव आचरण को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक उपकरण हैं। विधि कानूनी ढांचा और प्रवर्तन प्रदान करती है, जबकि आचारनीति व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों को मार्गदर्शित करती है। मिलकर, ये दोनों एक न्यायपूर्ण, व्यवस्थित और नैतिक समाज को सुनिश्चित करने में सहायक होते हैं।
See lessशासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' शब्दों से आप क्या समझते हैं ? (150 words) [UPSC 2016]
शासन, सुशासन और नैतिक शासन 1. शासन: परिभाषा: शासन उस प्रक्रिया, संरचना और संस्थानों का समूह है जिसके माध्यम से सत्ता और निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ संचालित होती हैं। यह शासन के विभिन्न स्तरों पर काम करता है, जैसे कि सरकार, प्रशासन, और न्यायपालिका। उदाहरण: भारतीय संसद का कार्य शासन की एक प्रक्रिया है,Read more
शासन, सुशासन और नैतिक शासन
1. शासन:
2. सुशासन:
3. नैतिक शासन:
निष्कर्ष: शासन प्रबंधन की प्रक्रिया को दर्शाता है, सुशासन प्रभावी और पारदर्शी प्रशासन को सुनिश्चित करता है, और नैतिक शासन नैतिकता और ईमानदारी पर बल देता है।
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