भारतीय संघीय ढाँचा संवैधानिक रूप से केन्द्र सरकार की ओर उन्मुख है। व्याख्या कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारत में आर्थिक नियोजन की शुरुआत 1951 में योजना आयोग के गठन से हुई थी। इसके तहत पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश की समग्र आर्थिक वृद्धि, औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित किए गए। यहां हम भारतीय आर्थिक नियोजन की प्रमुख उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे। 1. आर्थिक वृद्धि औरRead more
भारत में आर्थिक नियोजन की शुरुआत 1951 में योजना आयोग के गठन से हुई थी। इसके तहत पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश की समग्र आर्थिक वृद्धि, औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और सामाजिक विकास के लक्ष्य निर्धारित किए गए। यहां हम भारतीय आर्थिक नियोजन की प्रमुख उपलब्धियों का मूल्यांकन करेंगे।
1. आर्थिक वृद्धि और औद्योगिकीकरण
- आर्थिक वृद्धि: भारतीय नियोजन के तहत भारत की अर्थव्यवस्था में निरंतर वृद्धि देखने को मिली है। 1951 में देश की GDP लगभग ₹2.7 लाख करोड़ थी, जो अब बढ़कर ₹300 लाख करोड़ से अधिक हो गई है। विभिन्न योजनाओं ने देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में स्थिर वृद्धि की दिशा में योगदान किया है।
- औद्योगिकीकरण: नियोजन ने भारतीय उद्योगों को विकास की दिशा में प्रेरित किया। विशेष रूप से भारी उद्योगों और बुनियादी ढांचे में वृद्धि हुई, जैसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)। 1950 से 1990 तक के औद्योगिक क्षेत्र में 6% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।
2. कृषि उत्पादन में वृद्धि
- हरित क्रांति: भारतीय कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति ने एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। 1960 के दशक में शुरू हुई यह क्रांति उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक खाद, और सिंचाई के प्रभावी उपयोग के कारण हुई, जिससे खाद्य उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। भारत अब खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर हो गया है, और गेहूं और चावल के उत्पादन में वृद्धि ने देश को खाद्य आयातक से निर्यातक बना दिया।
3. निर्माण और बुनियादी ढांचे का विकास
- सड़कें और परिवहन: भारत में सड़कों, रेलवे और एयरलाइन के नेटवर्क का विस्तार हुआ, जिससे व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला, और पर्यटन में वृद्धि हुई। मेट्रो प्रणाली और उच्च गति वाले मार्गों ने शहरों में कनेक्टिविटी को बेहतर किया।
- विद्युत उत्पादन: योजना आयोग के तहत बिजली उत्पादन क्षेत्र में बड़ी वृद्धि हुई, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं को अधिक सुलभ और सस्ती बिजली मिली।
4. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार
- शिक्षा क्षेत्र: भारतीय नियोजन के तहत शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ। 1951 में साक्षरता दर 18% थी, जो अब लगभग 80% तक पहुंच चुकी है। विभिन्न योजनाओं के तहत प्राथमिक और उच्च शिक्षा में सुधार हुआ और शहरी-ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर बढ़ा।
- स्वास्थ्य सेवा: भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं में भी सुधार हुआ है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया, और भारत में जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई।
5. आधिकारिक वित्तीय क्षेत्र में सुधार
- बैंकिंग और वित्तीय समावेशन: भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत किया गया और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं का विस्तार किया गया। योजनाओं ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया और छोटे कर्जों के लिए आसान पहुँच सुनिश्चित की।
- उधारी और ऋण नीति: कृषि और ग्रामीण विकास के लिए राज्य और केंद्रीय स्तर पर उधारी और ऋण नीतियों में सुधार किया गया, जिससे किसानों और छोटे उद्यमियों को बेहतर वित्तीय सहायता प्राप्त हुई।
6. सामाजिक न्याय और समानता के उपाय
- आरक्षण और कल्याणकारी योजनाएं: भारतीय नियोजन ने सामाजिक और जातीय समानता सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण और सामाजिक कल्याण योजनाओं की शुरुआत की। पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत विकास की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
- महिलाओं का सशक्तिकरण: महिला शिक्षा, महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर, और महिला स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योजनाएं लागू की गईं, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
हालाँकि भारतीय आर्थिक नियोजन की कई सकारात्मक उपलब्धियाँ हैं, लेकिन इस प्रणाली की कुछ सीमाएँ और चुनौतियाँ भी हैं:
- अर्थव्यवस्था में असमानता: नियोजन के बावजूद, भारत में गरीबी और असमानता की समस्या पूरी तरह से हल नहीं हो पाई। कई राज्यों में अभी भी गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ी हुई है।
- भ्रष्टाचार और योजनाओं का सही क्रियान्वयन: कई योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हुआ और भ्रष्टाचार के कारण उनका पूरा लाभ नहीं मिल सका। उदाहरण स्वरूप, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) का उद्देश्य तो ग्रामीण रोजगार बढ़ाना था, लेकिन कई स्थानों पर इसका भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन हुआ।
- अन्य आर्थिक सुधारों की कमी: भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधारों की कमी भी महसूस की गई है। निजीकरण और उदारीकरण की दिशा में सही दिशा में कदम नहीं उठाए गए थे, जिससे कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा और नवाचार में कमी आई।
निष्कर्ष
भारतीय आर्थिक नियोजन ने कई सकारात्मक उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जैसे औद्योगिकीकरण, कृषि सुधार, और बुनियादी ढांचे में सुधार। हालांकि, असमानता, भ्रष्टाचार, और संरचनात्मक सुधारों की कमी जैसी चुनौतियों का समाधान अभी भी बाकी है। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए आगे के नियोजन में नीतियों के और अधिक समावेशी और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
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भारतीय संघीय ढाँचा और केन्द्र सरकार का प्रभुत्व भारत का संघीय ढाँचा (Federal Structure) संविधान में निर्धारित किया गया है, जिसमें केन्द्र सरकार का प्राथमिक और मजबूत स्थान है। यह ढाँचा भारतीय संविधान में दोनों सरकारों—केंद्र और राज्य—के बीच शक्ति का बंटवारा करता है। हालांकि, भारतीय संघीय ढाँचा कानूनीRead more
भारतीय संघीय ढाँचा और केन्द्र सरकार का प्रभुत्व
भारत का संघीय ढाँचा (Federal Structure) संविधान में निर्धारित किया गया है, जिसमें केन्द्र सरकार का प्राथमिक और मजबूत स्थान है। यह ढाँचा भारतीय संविधान में दोनों सरकारों—केंद्र और राज्य—के बीच शक्ति का बंटवारा करता है। हालांकि, भारतीय संघीय ढाँचा कानूनी रूप से संघीय है, लेकिन इसकी संरचना और कार्यप्रणाली मुख्य रूप से केंद्र सरकार के पक्ष में है। इसे “केंद्र की ओर उन्मुख संघीयता” कहा जाता है।
केन्द्र सरकार की प्रमुख भूमिका
भारत का संघीय ढाँचा केंद्र सरकार की ओर उन्मुख होने के कई कारण हैं:
उदाहरण
आलोचना
भारतीय संघीय ढाँचे में केन्द्र की ओर उन्मुखता के बावजूद, राज्य सरकारें अपनी स्थिति को चुनौती देती रही हैं। कई राज्य सरकारें यह मानती हैं कि उन्हें अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए, खासकर राज्य की आंतरिक नीतियों में हस्तक्षेप को लेकर।
निष्कर्ष
भारतीय संघीय ढाँचा संविधान में केंद्र के प्रभुत्व को दर्शाता है, जो राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से भी स्पष्ट है। केंद्र सरकार के पास राज्यों पर प्रभाव डालने के लिए कई शक्तियाँ हैं, जो इसे केंद्रीयकृत संघीय ढाँचा बनाती हैं। हालांकि, राज्यों को अपनी स्वायत्तता की आवश्यकता महसूस होती है, और समय-समय पर केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार की आवश्यकता होती है।
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