तटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए, विश्लेषण कीजिए। (150 ...
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना 1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity): परिभाषा: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता से तात्पर्य उस अधिकतम सीमा से है, जिस तक एक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय सेवाओं का स्थिर और स्वस्थ तरीके से उपयोग करRead more
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना
1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity):
- परिभाषा: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता से तात्पर्य उस अधिकतम सीमा से है, जिस तक एक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय सेवाओं का स्थिर और स्वस्थ तरीके से उपयोग कर सकता है, बिना किसी वहनीय क्षति के। इसका मतलब है कि पारिस्थितिक तंत्र अपनी प्राकृतिक प्रक्रियाओं और स्वास्थ्य को सही बनाए रखते हुए, मानव गतिविधियों को सहनीय सीमा तक समायोजित कर सकता है।
2. सस्टेनेबल डेवेलपमेंट में वहन क्षमता का महत्व:
- संसाधन प्रबंधन: किसी भी क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास के लिए, उसके संसाधनों की वहन क्षमता को समझना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए भी उनका अवसर और विवर्तन न हो।
- पर्यावरणीय प्रभाव: विकास योजनाओं के दौरान यदि वहन क्षमता का ध्यान नहीं रखा जाता, तो इससे पर्यावरणीय दबाव, मृदा क्षति, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता में ह्रास हो सकता है। उदाहरण के लिए, हिमालय क्षेत्र में अनियंत्रित पर्यटन और वृक्षारोपण ने स्थानीय पारिस्थितिकी को प्रभावित किया है।
3. हाल के उदाहरण:
- हिमालय क्षेत्र में, हाइको-होटल और पर्यटन ने पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता को पार किया, जिसके परिणामस्वरूप मृदा अपरदन और जलवायु परिवर्तन देखा गया है।
- गंगा नदी के आसपास बेतरतीब औद्योगिकीकरण और जल प्रदूषण ने वहन क्षमता को चुनौती दी है, जिससे जल गुणवत्ता और पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
4. विकास योजनाओं में वहन क्षमता को ध्यान में रखना:
- विकास नीति: दीर्घकालिक विकास योजनाओं में वहन क्षमता का समावेश सतत और समर्थनीय विकास को सुनिश्चित करता है। इससे नियमित पर्यावरणीय मूल्यांकन और स्थिर संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- उदाहरण: आंध्र प्रदेश ने फिशरिज़ और तटीय विकास के लिए वहन क्षमता के अध्ययन पर ध्यान दिया, जिससे तटीय पारिस्थितिक तंत्र का संतुलित विकास सुनिश्चित हुआ।
निष्कर्ष: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना को समझना और उसे विकास योजनाओं में शामिल करना, पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल विकास को सतत बनाता है, बल्कि पर्यावरणीय दबाव को भी कम करता है।
See less
तटीय बालू खनन के प्रभाव 1. पर्यावरणीय क्षति: बालू कटाव और आवास हानि: तटीय बालू खनन के कारण बालू कटाव और कोस्टल हैबिटेट की हानि होती है। केरल के कोल्लम में बालू खनन से तटीय क्षति और पर्यावरणीय असंतुलन देखा गया है। 2. मरीन जीवन पर प्रभाव: मरीन पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: बालू खनन से मरीन पारिस्थितिकीRead more
तटीय बालू खनन के प्रभाव
1. पर्यावरणीय क्षति:
2. मरीन जीवन पर प्रभाव:
3. जल गुणवत्ता में गिरावट:
4. वैध और अवैध खनन:
5. सुधारात्मक उपाय:
इन प्रभावों से सभी तटीय क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और स्थायी प्रबंधन की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
See less