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क्या यू० एन० एफ० सी० सी० सी० के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिए, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आयी है? आर्थिक संवृद्धि के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिए।
परिचय: यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों (CDMs) का अनुसरण करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, विशेषकर जब कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में, इन यांत्रिकत्वों को जारी रखना महत्वपूर्ण हो सकRead more
परिचय: यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों (CDMs) का अनुसरण करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, विशेषकर जब कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में, इन यांत्रिकत्वों को जारी रखना महत्वपूर्ण हो सकता है।
कार्बन क्रेडिट और CDMs का महत्व:
कार्बन क्रेडिट के मूल्य में गिरावट की चुनौतियाँ:
भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से प्रासंगिकता:
सुझाव:
निष्कर्ष: कार्बन क्रेडिट और CDMs का अनुसरण भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, भले ही कार्बन क्रेडिट के मूल्य में गिरावट आई हो। इन यांत्रिकत्वों का सुधार और वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों की खोज भारत को विकास और जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता कर सकती है।
See less'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा ? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे ? (250 words) [UPSC 2017]
जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव 1. भारत पर सामान्य प्रभाव: **1. तापमान वृद्धि: तापमान में वृद्धि: भारत में औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे अधिक ताप लहरें और गर्मियों में तीव्रता बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, 2015 की गर्मी लहर में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 2,000 से अधिक मौतें हुईं। **Read more
जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
1. भारत पर सामान्य प्रभाव:
**1. तापमान वृद्धि:
**2. चरम मौसम घटनाएँ:
**3. कृषि पर प्रभाव:
2. हिमालयी राज्यों पर प्रभाव:
**1. ग्लेशियरों का पिघलना:
**2. बाढ़ का बढ़ता खतरा:
**3. पर्यावरणीय विघटन:
3. समुद्रतटीय राज्यों पर प्रभाव:
**1. समुद्र स्तर की वृद्धि:
**2. नमक का प्रवेश:
**3. साधारण लहर:
निष्कर्ष:
यह बहुत वर्षों पहले की बात नहीं है ज़ब नदियों को जोड़ना एक संकल्पना थी, परन्तु अब यह देश में एक वास्तविकता बनती जा रही है। नदियों को जोड़ने से होने वाले लाभों पर एवं पर्यावरण पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
नदियों को जोड़ने के लाभ और पर्यावरण पर प्रभाव **1. नदियों को जोड़ने के लाभ: **1. जल संसाधन प्रबंधन: जल उपलब्धता में वृद्धि: नदियों को जोड़ने से जल की अधिशेष क्षेत्रों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरण होता है, जिससे पीने का पानी, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की उपलब्धता बढ़ती है। उदाहRead more
नदियों को जोड़ने के लाभ और पर्यावरण पर प्रभाव
**1. नदियों को जोड़ने के लाभ:
**1. जल संसाधन प्रबंधन:
**2. कृषि में सुधार:
**3. बाढ़ नियंत्रण:
**2. पर्यावरण पर संभावित प्रभाव:
**1. पारिस्थितिकीय विघटन:
**2. मृदा कटाव और तलछट:
**3. स्थानीय समुदायों पर प्रभाव:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (250 words) [UPSC 2018]
भारत में जैव विविधता का प्रकार भौगोलिक विविधता: भारत में जैव विविधता अपने विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधताओं के कारण अत्यधिक भिन्न होती है। देश की विविधता में हिमालयी क्षेत्र, गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पश्चिमी घाट, और दकन पठार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय में 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाRead more
भारत में जैव विविधता का प्रकार
भौगोलिक विविधता:
भारत में जैव विविधता अपने विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधताओं के कारण अत्यधिक भिन्न होती है। देश की विविधता में हिमालयी क्षेत्र, गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पश्चिमी घाट, और दकन पठार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय में 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि पश्चिमी घाट में 139 विभिन्न प्रकार के अभयारण्य हैं।
वन्यजीव विविधता:
भारत में वन्यजीवों की विविधता भी उल्लेखनीय है, जिसमें बाघ, सिंह, साल्ट-डॉक्स और गंगा डॉल्फिन शामिल हैं। किराट और रेनफॉरेस्ट जैसे अनूठे पारिस्थितिक तंत्र इन प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
जैव विविधता अधिनियम, 2002 के योगदान
संरक्षण और प्रबंधन:
जैव विविधता अधिनियम, 2002 का उद्देश्य बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) और राज्य जैव विविधता प्राधिकरण (SBA) की स्थापना की गई है, जो जैव विविधता संरक्षण की दिशा में नीतिगत और प्रशासनिक समर्थन प्रदान करते हैं।
पेटेंट और बौद्धिक संपदा संरक्षण:
अधिनियम पारंपरिक ज्ञान और आयुर्वेदिक पौधों की रक्षा करता है। इससे भारत ने हाल ही में तुलसी, अश्वगंधा जैसी पारंपरिक जड़ी-बूटियों के पेटेंट को सुरक्षित किया है। यह पेटेंट अधिकार भारतीय समुदायों को उनके ज्ञान और संसाधनों पर नियंत्रण प्रदान करते हैं और विदेशी कंपनियों द्वारा इनका दुरुपयोग रोकते हैं।
स्वदेशी समुदायों के अधिकार:
जैव विविधता अधिनियम ने स्वदेशी समुदायों के सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की है। इसके माध्यम से, ये समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों के उचित उपयोग और लाभांश के अधिकार प्राप्त करते हैं।
संरक्षण प्रयासों में योगदान:
अधिनियम ने विविध प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण में नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण स्वरूप, साइबर ट्री और सपारी जैसे महत्वपूर्ण वनस्पतियों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका को बढ़ाया गया है।
निष्कर्ष
See lessजैव विविधता अधिनियम, 2002 ने भारत की जैव विविधता को संरक्षित करने और प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह पारंपरिक ज्ञान की रक्षा, स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा, और विविध प्रजातियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। इससे जैव विविधता की रक्षा और उसके सतत उपयोग को बढ़ावा मिला है।
आईभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
आईभूमि (Wetland) क्या है? आईभूमि वे क्षेत्र हैं जहाँ पानी पर्यावरण और संबंधित पौधों एवं जानवरों की जीवनशैली को नियंत्रित करता है। इनमें दलदल, स्वंप, बोग और बाढ़ की ज़मीनें शामिल हैं। आईभूमियाँ जल निस्पंदन, बाढ़ नियंत्रण और जैव विविधता का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 'बुद्धिमत्तापूर्Read more
आईभूमि (Wetland) क्या है?
‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ की रामसर संकल्पना:
भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरण:
इन स्थलों के माध्यम से ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ की रामसर संकल्पना का प्रभावी कार्यान्वयन किया जा रहा है, जो आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
See lessनिरंतर उत्पन्न किए जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (150 words) [UPSC 2018]
फेंके गए ठोस कचरे का निस्तारण करने में बाधाएँ: **1. अपर्याप्त अवसंरचना: प्रबंधन सुविधाओं की कमी: कई क्षेत्रों में कचरा संग्रहण, पृथक्करण और निस्तारण के लिए आवश्यक अवसंरचना का अभाव है। उदाहरण के लिए, दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में अपर्याप्त कचरा प्रबंधन प्रणाली के कारण कचरे का सही तरीके से निस्तारण नहRead more
फेंके गए ठोस कचरे का निस्तारण करने में बाधाएँ:
**1. अपर्याप्त अवसंरचना:
**2. कचरे का मिश्रण:
**3. बढ़ती कचरा उत्पादन:
जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से हटाने के उपाय:
**1. सही उपचार विधियाँ:
**2. कानूनी ढांचा:
**3. जन जागरूकता और भागीदारी:
इन बाधाओं को दूर करने और प्रभावी प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने से ठोस और जहरीले कचरे के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
See lessपर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना की परिभाषा दीजिए। स्पष्ट कीजिए कि किसी प्रदेश के दीर्घोपयोगी विकास (सस्टेनेबल डेवेलपमेंट) की योजना बनाते समय इस संकल्पना को समझना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है। (250 words) [UPSC 2019]
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना 1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity): परिभाषा: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता से तात्पर्य उस अधिकतम सीमा से है, जिस तक एक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय सेवाओं का स्थिर और स्वस्थ तरीके से उपयोग करRead more
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना
1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity):
2. सस्टेनेबल डेवेलपमेंट में वहन क्षमता का महत्व:
3. हाल के उदाहरण:
4. विकास योजनाओं में वहन क्षमता को ध्यान में रखना:
निष्कर्ष: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना को समझना और उसे विकास योजनाओं में शामिल करना, पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल विकास को सतत बनाता है, बल्कि पर्यावरणीय दबाव को भी कम करता है।
See lessतटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए, विश्लेषण कीजिए। (150 words) [UPSC 2019]
तटीय बालू खनन के प्रभाव 1. पर्यावरणीय क्षति: बालू कटाव और आवास हानि: तटीय बालू खनन के कारण बालू कटाव और कोस्टल हैबिटेट की हानि होती है। केरल के कोल्लम में बालू खनन से तटीय क्षति और पर्यावरणीय असंतुलन देखा गया है। 2. मरीन जीवन पर प्रभाव: मरीन पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: बालू खनन से मरीन पारिस्थितिकीRead more
तटीय बालू खनन के प्रभाव
1. पर्यावरणीय क्षति:
2. मरीन जीवन पर प्रभाव:
3. जल गुणवत्ता में गिरावट:
4. वैध और अवैध खनन:
5. सुधारात्मक उपाय:
इन प्रभावों से सभी तटीय क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और स्थायी प्रबंधन की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
See lessपर्यावरण प्रभाव आकलन (ई० आइ० ए०) अधिसूचना, 2020 प्रारूप मौजूदा ई० आइ० ए० अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (150 words) [UPSC 2020]
ई.आई.ए. अधिसूचना 2020 और 2006 के बीच भिन्नताएँ 1. सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया: ई.आई.ए. 2020: परियोजनाओं की श्रेणी के आधार पर सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया को सरल बनाता है, कुछ मामलों में केवल ऑनलाइन टिप्पणियाँ आवश्यक होती हैं। उदाहरण: बड़े पैमाने पर औद्योगिक परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक सुनवाई कीRead more
ई.आई.ए. अधिसूचना 2020 और 2006 के बीच भिन्नताएँ
1. सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया:
2. परियोजना वर्गीकरण:
3. पूर्व-स्वीकृति की अनुमति:
4. अनुपालन निगरानी:
ये बदलाव ई.आई.ए. के तहत परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया को सरल बनाते हैं और प्रक्रियात्मक बाधाओं को कम करते हैं।
See lessसंयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं ? (250 words) [UPSC 2021]
COP26 के प्रमुख परिणाम 1. वैश्विक कार्बन तटस्थता लक्ष्य: COP26 में 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का एक वैश्विक लक्ष्य अपनाया गया। यह लक्ष्य 1.5°C तक वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को समर्थन देता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचा जा सके। 2. कोयले का चरणबद्ध समापRead more
COP26 के प्रमुख परिणाम
1. वैश्विक कार्बन तटस्थता लक्ष्य: COP26 में 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का एक वैश्विक लक्ष्य अपनाया गया। यह लक्ष्य 1.5°C तक वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को समर्थन देता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचा जा सके।
2. कोयले का चरणबद्ध समापन: सम्मेलन में असंबद्ध कोयला बिजली उत्पादन और अप्रभावी फॉसिल ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने पर सहमति बनी। हालांकि, अंतिम समझौते में ‘फेज-आउट’ की बजाय ‘फेज-डाउन’ शब्द का उपयोग किया गया, जो कोयला निर्भर देशों की चिंताओं को दर्शाता है।
3. जलवायु वित्त: विकसित देशों ने 2025 तक प्रति वर्ष $100 बिलियन जलवायु वित्त प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। यह विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिए समर्थन प्रदान करने के उद्देश्य से है।
4. ग्लासगो जलवायु पैक्ट: ग्लासगो जलवायु पैक्ट को अपनाया गया, जिसमें राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (NDCs) को मजबूत करने और जलवायु प्रभावों के प्रति वैश्विक प्रयासों को बढ़ाने की प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ
1. नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य: भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई, जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
2. नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार: भारत ने 2030 तक 500 GW की गैर-फॉसिल ईंधन ऊर्जा क्षमता बढ़ाने और अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
3. ग्रीन बॉन्ड्स: भारत ने जलवायु परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए ग्रीन बॉन्ड्स जारी करने की योजना का ऐलान किया, जो सतत विकास के लिए जलवायु वित्त को जुटाने की दिशा में एक कदम है।
4. अनुकूलन प्रयासों को सशक्त बनाना: भारत ने जलवायु अनुकूलन प्रयासों को मजबूत करने और वल्नरेबल समुदायों को समर्थन देने की वचनबद्धता जताई।
हालिया उदाहरण: भारत ने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा पार्कों की स्थापना और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया है, जो उसकी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है।
COP26 ने वैश्विक जलवायु रणनीति में महत्वपूर्ण प्रगति की, जिसमें भारत की वचनबद्धताएँ दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की ओर महत्वपूर्ण योगदान हैं।
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