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पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) पर एक निबंध लिखिये।
परिचय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभाRead more
परिचय
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
EIA की प्रक्रिया
EIA के लाभ और महत्व
EIA के चुनौतीपूर्ण पहलू
हाल के उदाहरण और केस स्टडीज
निष्कर्ष
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह संभावित प्रभावों की पहचान और निवारण की प्रक्रिया प्रदान करता है, जो पर्यावरणीय क्षति को रोकने, सतत विकास को प्रोत्साहित करने, और जन स्वास्थ्य की रक्षा करने में सहायक है। हालाँकि इसके सामने चुनौतियाँ हैं, EIA की प्रभावशीलता को बढ़ाने और पिछले अनुभवों से सीखे गए पाठों को लागू करने से सतत प्रगति प्राप्त करना संभव होगा।
See lessऊर्जा ऑडिट क्या होता है? इसकी आवश्यकता क्यों है?
ऊर्जा ऑडिट क्या होता है? इसकी आवश्यकता क्यों है? ऊर्जा ऑडिट का परिचय ऊर्जा ऑडिट एक प्रणालीबद्ध प्रक्रिया है जिसमें किसी संगठन या सुविधा की ऊर्जा उपयोग और खपत का विस्तृत मूल्यांकन किया जाता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा दक्षता में सुधार, लागत कम करना, और पर्यावरणीय प्रभाव को घटाना होता है। ऊर्जा ऑडिट से यहRead more
ऊर्जा ऑडिट क्या होता है? इसकी आवश्यकता क्यों है?
ऊर्जा ऑडिट का परिचय
ऊर्जा ऑडिट एक प्रणालीबद्ध प्रक्रिया है जिसमें किसी संगठन या सुविधा की ऊर्जा उपयोग और खपत का विस्तृत मूल्यांकन किया जाता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा दक्षता में सुधार, लागत कम करना, और पर्यावरणीय प्रभाव को घटाना होता है। ऊर्जा ऑडिट से यह पता चलता है कि ऊर्जा का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है, कहाँ अपव्यय हो रहा है, और कौन से क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है।
ऊर्जा ऑडिट की प्रक्रिया
ऊर्जा ऑडिट की आवश्यकता
हाल के उदाहरण और केस स्टडीज
निष्कर्ष
ऊर्जा ऑडिट ऊर्जा दक्षता में सुधार, लागत कम करने, और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह संगठनों को ऊर्जा उपयोग को अनुकूलित करने, विनियमों का पालन करने, और दीर्घकालिक बचत प्राप्त करने में मदद करता है। बढ़ती स्थिरता और ऊर्जा संरक्षण पर ध्यान देने के साथ, नियमित ऊर्जा ऑडिट संगठनों के संचालन की दक्षता और पर्यावरणीय प्रदर्शन को बढ़ाने के लिए अनिवार्य है।
See lessपर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रमों (प्रोग्राम्स) पर टिप्पणी कीजिये।
पर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रमों (प्रोग्राम्स) पर टिप्पणी परिचय पर्यावरणीय शिक्षा (Environmental Education) का उद्देश्य लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों, उनके प्रभाव, और सतत विकास के तरीकों के बारे में जानकारी और समझ प्रदान करना है। यह शिक्षा लोगों को पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभानेRead more
पर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रमों (प्रोग्राम्स) पर टिप्पणी
परिचय
पर्यावरणीय शिक्षा (Environmental Education) का उद्देश्य लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों, उनके प्रभाव, और सतत विकास के तरीकों के बारे में जानकारी और समझ प्रदान करना है। यह शिक्षा लोगों को पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। पर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रम विभिन्न स्तरों पर संचालित होते हैं, जिसमें स्कूल, कॉलेज, और सामुदायिक कार्यक्रम शामिल हैं।
मुख्य उद्देश्य और तत्व
निष्कर्ष
पर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रम न केवल लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक करते हैं बल्कि उन्हें सक्रिय रूप से इन मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रेरित भी करते हैं। हाल के उदाहरण, जैसे स्वच्छ भारत मिशन, ग्रीन स्कूल पहल, और प्लास्टिक मुक्त अभियान, यह दर्शाते हैं कि कैसे ये कार्यक्रम सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर रहे हैं। इन पहलों के माध्यम से, हम पर्यावरणीय शिक्षा को एक महत्वपूर्ण सामाजिक और शैक्षिक आवश्यकता के रूप में पहचान सकते हैं, जो न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी लाभकारी है।
See lessहरित पट्टियों के मुख्य उपयोग लिखिये।
हरित पट्टियों के मुख्य उपयोग 1. शहरी नियोजन और पर्यावरण संरक्षण हरित पट्टियाँ शहरी नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बफर के रूप में कार्य करती हैं। इसके प्रमुख उपयोग हैं: शहरी विस्तार को नियंत्रित करना: हरित पट्टियाँ शहरों के विस्तार को रोकने मेंRead more
हरित पट्टियों के मुख्य उपयोग
1. शहरी नियोजन और पर्यावरण संरक्षण
हरित पट्टियाँ शहरी नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बफर के रूप में कार्य करती हैं। इसके प्रमुख उपयोग हैं:
2. जैव विविधता संरक्षण
हरित पट्टियाँ जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं:
3. जलवायु नियमन
हरित पट्टियाँ जलवायु नियमन में योगदान करती हैं:
4. मनोरंजन और सार्वजनिक स्वास्थ्य
हरित पट्टियाँ मनोरंजन और सार्वजनिक स्वास्थ्य में योगदान करती हैं:
5. कृषि संरक्षण
हरित पट्टियाँ कृषि भूमि के संरक्षण में सहायक होती हैं:
हरित पट्टियाँ शहरी नियोजन, पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु नियमन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और कृषि संरक्षण में कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती हैं।
See lessयूट्रोफिकेशन (सुपोषण) से आप क्या समझते हैं?
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। मुख्य बिंदुRead more
यूट्रोफिकेशन एक प्रक्रिया है जिसमें जलाशयों या जल निकायों में अत्यधिक पोषक तत्वों का संचय हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप शैवाल और अन्य जलपरी किस्मों की अत्यधिक वृद्धि होती है। यह प्रक्रिया जल की गुणवत्ता, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और कुल पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
मुख्य बिंदु:
निष्कर्ष
यूट्रोफिकेशन, जल में अत्यधिक पोषक तत्वों के संचित होने से उत्पन्न होती है, जिससे शैवाल और जलपरी की अत्यधिक वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी, जैव विविधता की हानि, और जल की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है। हाल के उदाहरण, जैसे लेक एरी, चिलिका लेक, और डेड सी, इस मुद्दे की वैश्विक प्रासंगिकता को उजागर करते हैं। यूट्रोफिकेशन से निपटने के लिए प्रभावी प्रबंधन रणनीतियाँ, जैसे पोषक तत्व नियंत्रण, बेहतर सीवेज उपचार, और पुनर्स्थापना परियोजनाएँ, आवश्यक हैं ताकि जल पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
See lessभारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम कब लागू किया गया ?
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environmental Protection Act, EPA) भारत में 19 दिसंबर 1986 को लागू किया गया। यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण और सुधार के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है और यह भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मुख्य बिंदु: उद्देश्य और लक्ष्यRead more
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (Environmental Protection Act, EPA) भारत में 19 दिसंबर 1986 को लागू किया गया। यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण और सुधार के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है और यह भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मुख्य बिंदु:
निष्कर्ष
19 दिसंबर 1986 को लागू किया गया पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारत के पर्यावरणीय कानूनों की आधारशिला है। यह पर्यावरण की रक्षा और सुधार, प्रदूषण नियंत्रण, और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है। हाल के उदाहरण, जैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश और अद्यतन नियम, यह दर्शाते हैं कि EPA समकालीन पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान करने और पर्यावरणीय मानकों की अनुपालना सुनिश्चित करने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
See less"आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या" पर टिप्पणी लिखिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्योRead more
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या
परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी संतुलन खोजना आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा न मिले।
आर्थिक विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन: आर्थिक विकास पारंपरिक रूप से औद्योगिकीकरण पर आधारित होता है, जो ऊर्जा-गहन है और अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, चीन और भारत जैसे देशों ने तेजी से आर्थिक विकास देखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है।
चुनौतियाँ:
हाल का उदाहरण: भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार, 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, देश का 2025 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है, जो निरंतर आर्थिक विकास की मांग करता है और संतुलन की इस चुनौती को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष: संतुलन प्राप्त करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, स्थायी प्रथाओं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे नवाचार समाधान आवश्यक हैं। चुनौती केवल आर्थिक रूप से विकसित होने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि यह विकास स्थायी और समावेशी हो, बिना पर्यावरण के साथ समझौता किए।
See lessजैव-विविधता को परिभाषित कीजिये। ट्रॉपिकल (उष्ण जलवायु) देश जैव-विविधता समृद्ध क्यों होते है? समझाइये। (125 Words) [UPPSC 2019]
जैव-विविधता की परिभाषा जैव-विविधता (Biodiversity) से तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की विविधता से है, जिसमें प्रजातियों, जीनों, पारिस्थितिक तंत्रों और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की विविधता शामिल होती है। यह प्रजातियों के बीच और प्रजातियों के भीतर विविधता को दर्शाती है, साथ ही पारिस्थितिक तंत्रों की भिन्नता कोRead more
जैव-विविधता की परिभाषा
जैव-विविधता (Biodiversity) से तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की विविधता से है, जिसमें प्रजातियों, जीनों, पारिस्थितिक तंत्रों और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं की विविधता शामिल होती है। यह प्रजातियों के बीच और प्रजातियों के भीतर विविधता को दर्शाती है, साथ ही पारिस्थितिक तंत्रों की भिन्नता को भी सम्मिलित करती है।
उष्णकटिबंधीय देशों में जैव-विविधता की समृद्धि
1. अनुकूल जलवायु:
2. अत्यधिक वर्षा:
3. जटिल पारिस्थितिक तंत्र:
निष्कर्ष: उष्णकटिबंधीय देश अपने अनुकूल जलवायु, उच्च वर्षा, और जटिल पारिस्थितिक तंत्र के कारण जैव-विविधता में समृद्ध होते हैं, जो वैश्विक पारिस्थितिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
See lessवन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
वन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियाँ: आलोचनात्मक मूल्यांकन **1. विवादित भूमि उपयोग: वनों की कटाई और शहरीकरण: शहरी विस्तार और कृषि भूमि के लिए वन क्षेत्र की कटाई, जैसे कि उत्तरी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी क्षेत्रों में वन कटाई, वन्य जीवों की निवास स्थली को संकुचित कर देती है। **2. अवैध शिकार औRead more
वन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियाँ: आलोचनात्मक मूल्यांकन
**1. विवादित भूमि उपयोग:
**2. अवैध शिकार और व्यापार:
**3. पर्यावरणीय परिवर्तन:
**4. मानव-वन्य जीव संघर्ष:
निष्कर्ष: वन्य जीवों के संरक्षण के लिए, भूमि उपयोग नीतियों में बदलाव, अवैध शिकार की रोकथाम, जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय, और मानव-वन्य जीव संघर्ष के समाधान आवश्यक हैं।
See lessसरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकाधिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किए जा रहे हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर अवस्थित कोयला अनित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है। कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रोंRead more
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है।
कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हैं, जिसमें वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल प्रदूषण, भूमि अवनति, और स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन इन प्रभावों की पहचान और उन्हें कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ताकि विकास परियोजनाएँ पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप हों और सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
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