प्रश्न का उत्तर अधिकतम 50 शब्दों/5 से 6 पंक्तियाँ में दीजिए। यह प्रश्न 05 अंक का है। [MPPSC 2023] भोजपुर के शिव मंदिर की वास्तुशिल्पीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
तुर्रा कलंगी एक प्रसिद्ध लोकनाट्य है जो मध्य प्रदेश के लोक सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह लोकनाट्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कथाओं को जीवंत रखने का भी कार्य करता है। 1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ उत्पत्ति: तुर्रा कलंगी की उत्पत्ति मध्य प्रदRead more
तुर्रा कलंगी एक प्रसिद्ध लोकनाट्य है जो मध्य प्रदेश के लोक सांस्कृतिक परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह लोकनाट्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कथाओं को जीवंत रखने का भी कार्य करता है।
1. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
- उत्पत्ति: तुर्रा कलंगी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में हुई थी। यह नाट्य कला क्षेत्र की लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और कई पीढ़ियों से प्रचलित रही है।
- सांस्कृतिक महत्व: यह लोकनाट्य विभिन्न त्योहारों, मेलों और स्थानीय उत्सवों के दौरान प्रस्तुत किया जाता है। यह क्षेत्रीय परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को प्रस्तुत करने का एक माध्यम है।
2. कथा और विषय
- कथानक: तुर्रा कलंगी की कहानियाँ आमतौर पर ऐतिहासिक, पौराणिक या स्थानीय किंवदंतियों पर आधारित होती हैं। इसमें वीरता, रोमांस, संघर्ष, और सामाजिक मुद्दों पर आधारित कथाएँ शामिल होती हैं।
- विषय: नाट्य का उद्देश्य सामाजिक या नैतिक शिक्षा प्रदान करना होता है, जैसे कि न्याय, प्रेम, साहस और धर्म की बातें करना।
3. प्रदर्शन शैली
- अभिनय और पात्र: इस लोकनाट्य में विभिन्न पात्रों को निभाने के लिए कलाकारों की एक टोली होती है। पात्रों की भूमिकाओं को अक्सर अतिरंजित भाव-भंगिमाओं के साथ दर्शाया जाता है ताकि भावनाओं का प्रभाव बढ़ सके।
- संवाद और संगीत: संवाद गीतात्मक और लयबद्ध होते हैं, और प्रदर्शन के दौरान पारंपरिक संगीत और गीतों का उपयोग किया जाता है। लोक संगीत उपकरण जैसे ढोलक, हारमोनियम और अन्य स्थानीय वाद्ययंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वस्त्र और मेकअप: कलाकार रंगीन और पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं, जो पात्रों के व्यक्तित्व को बढ़ाते हैं। मेकअप का भी प्रयोग पात्रों की विशेषताओं और भावनाओं को उजागर करने के लिए किया जाता है।
4. मंच और सेट
- सरल सेट: मंच और सेट सामान्यत: साधारण होते हैं, जिसमें सीमित प्रॉप्स और एक बुनियादी पृष्ठभूमि होती है। यह नाट्य प्रदर्शन के तत्वों को मुख्य रूप से दर्शाता है।
- आउटडोर प्रदर्शन: तुर्रा कलंगी आमतौर पर खुले स्थानों या गांव के चौपालों पर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे स्थानीय जनता आसानी से शामिल हो सकती है।
5. दर्शक सहभागिता
- सक्रिय भागीदारी: प्रदर्शन के दौरान कलाकार दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करते हैं, जिसमें दर्शक भी भाग ले सकते हैं। यह सहभागिता नाट्य की जीवंतता को बढ़ाती है।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदाय नाट्य में भाग ले सकती है, या संगीत और नृत्य में योगदान दे सकती है।
6. शैक्षिक और मनोरंजन मूल्य
- नैतिक शिक्षा: तुर्रा कलंगी के माध्यम से सामाजिक और नैतिक शिक्षा दी जाती है, जो मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षाप्रद होती है।
- संस्कृति का संरक्षण: यह लोकनाट्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने और नई पीढ़ियों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
7. समकालीन महत्व
- संस्कृतिक पुनरुद्धार: हाल के वर्षों में, लोक कला और तुर्रा कलंगी जैसे नाट्य रूपों में नए सिरे से रुचि देखी गई है, जिससे इन परंपराओं के संरक्षण की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
- पर्यटन और जागरूकता: यह नाट्य एक सांस्कृतिक आकर्षण के रूप में भी उभर रहा है, जो क्षेत्रीय पर्यटन और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है।
सारांश में, तुर्रा कलंगी एक जीवंत और रंगीन लोकनाट्य है जो मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक परंपराओं और ऐतिहासिक कथाओं को जीवंत करता है। इसके प्रदर्शन, संगीत और कथा शैली इसे क्षेत्रीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं।
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भोजपुर का शिव मंदिर, जो मध्य प्रदेश के भोजपुर गांव में स्थित है, अपनी वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। 11वीं शदी में परमार राजा भोज के शासनकाल के दौरान निर्मित इस मंदिर की वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 1. मोनोलिथिक संरचना (एकल पत्थर से निर्मित) मुख्य शिवलिंग: मंदिर अपनी विशाRead more
भोजपुर का शिव मंदिर, जो मध्य प्रदेश के भोजपुर गांव में स्थित है, अपनी वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। 11वीं शदी में परमार राजा भोज के शासनकाल के दौरान निर्मित इस मंदिर की वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. मोनोलिथिक संरचना (एकल पत्थर से निर्मित)
2. शिखर (मंदिर का टॉवर)
3. गर्भगृह और मंडप
4. स्तंभ और खंभे
5. वास्तुशिल्पीय महत्वाकांक्षाएँ
6. धार्मिक महत्व
इस प्रकार, भोजपुर का शिव मंदिर 11वीं शदी की वास्तुकला और इंजीनियरिंग की उच्च उपलब्धियों का एक प्रमुख उदाहरण है, जो उस समय की धार्मिक और कलात्मक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है
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