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गांधार मूर्तिकला रोमनिवासियों की उतनी ही ऋणी थी जितनी कि वह यूनानियों की थी। स्पष्ट कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
गांधार मूर्तिकला पर यूनानी और रोमन प्रभाव **1. यूनानी प्रभाव गांधार मूर्तिकला (लगभग 1-5वीं सदी ईस्वी) पर यूनानी कला का गहरा प्रभाव था, जो एलेक्जांडर द ग्रेट और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में हुए आक्रमण और बसावट के कारण उत्पन्न हुआ। यूनानी कला ने वास्तविक मानव आकृतियों और सजीव भावनRead more
गांधार मूर्तिकला पर यूनानी और रोमन प्रभाव
**1. यूनानी प्रभाव
गांधार मूर्तिकला (लगभग 1-5वीं सदी ईस्वी) पर यूनानी कला का गहरा प्रभाव था, जो एलेक्जांडर द ग्रेट और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप में हुए आक्रमण और बसावट के कारण उत्पन्न हुआ। यूनानी कला ने वास्तविक मानव आकृतियों और सजीव भावनाओं के चित्रण में योगदान किया। गांधार मूर्तियों में हेलनिस्टिक परंपरा के तत्व जैसे कि प्राकृतिक वेशभूषा और मानवीय भावनाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं, जैसे कि बुद्ध की मूर्तियों में वास्तविक रूप और बहती हुई चादरें।
**2. रोमन प्रभाव
गांधार कला में रोमन प्रभाव भी देखा जा सकता है, विशेष रूप से व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से। उदाहरण के लिए, गांधार मूर्तियों में रोमन शैली की मेहराबें और वास्तुकला के तत्व शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, स्टुको और राहत कार्य का उपयोग भी रोमन वास्तुकला की सजावट के समान है।
**3. शैली का मिश्रण
गांधार क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ने यूनानी और रोमन संस्कृतियों के बीच एक सांस्कृतिक संलयन को बढ़ावा दिया। यह मिश्रण यूनानी यथार्थवाद और रोमन कलात्मक परंपराओं का संयोजन था, जो एक अद्वितीय शैली का निर्माण करता है। हाल ही के शोधों ने रोमन साम्राज्य की छवियां और यूनानी पौराणिक तत्व गांधार मूर्तियों में पाया है।
**4. पुरातात्त्विक साक्ष्य
टैक्सिला और पेशावर में हाल की पुरातात्त्विक खोजों ने यूनानी और रोमन कला के प्रभाव को प्रमाणित किया है। इन खोजों में रोमन और यूनानी आइकोनोग्राफी और वास्तुकला के तत्व शामिल हैं, जो गांधार मूर्तिकला में सांस्कृतिक आदान-प्रदान को दर्शाते हैं।
इस प्रकार, गांधार मूर्तिकला यूनानी और रोमन कलात्मक परंपराओं का एक अद्वितीय मिश्रण है, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक महत्व को उजागर करता है।
See lessबौद्ध आस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण हाथियों को बौद्ध मूर्तिकल में भी व्यापक रूप से दर्शाया गया है। चर्चा कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
बौद्ध आस्था में हाथियों का महत्वपूर्ण स्थान है, और ये बौद्ध मूर्तिकल में व्यापक रूप से दर्शाए जाते हैं। बौद्ध धर्म में हाथियों को पवित्र और शुभ माना जाता है। ये जानवर बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और उनके शिक्षाओं से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) के जन्म से पूर्व, उनकी माँ मRead more
बौद्ध आस्था में हाथियों का महत्वपूर्ण स्थान है, और ये बौद्ध मूर्तिकल में व्यापक रूप से दर्शाए जाते हैं। बौद्ध धर्म में हाथियों को पवित्र और शुभ माना जाता है। ये जानवर बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं और उनके शिक्षाओं से जुड़े हुए हैं।
उदाहरण के लिए, सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) के जन्म से पूर्व, उनकी माँ महामाया ने एक स्वप्न देखा था जिसमें एक सफेद हाथी उनके गर्भ में प्रवेश करता है, जो बुद्ध के आने की भविष्यवाणी का प्रतीक माना जाता है। बौद्ध कला और मूर्तिकल में हाथियों को अक्सर बुद्ध के जीवन के प्रमुख घटनाओं में दर्शाया जाता है, जैसे कि उनके जन्म और ज्ञान प्राप्ति के समय।
इसके अतिरिक्त, हाथी बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक प्रतीक के रूप में भी काम करते हैं, जो धैर्य, शक्ति और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार, बौद्ध मूर्तिकल में हाथियों की उपस्थिति बौद्ध धर्म के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाती है।
See lessपाल साम्राज्य को बौद्ध कला के विशिष्ट रूप के लिए जाना जाता है। इस संदर्भ में, कला के क्षेत्र में पाल वंश के योगदानों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें) 10
पाल साम्राज्य (750-1174 ई.) बौद्ध कला के विशिष्ट रूप के लिए प्रसिद्ध है। इस काल में, बौद्ध कला में अनूठी विशेषताएँ देखी गईं। पाल साम्राज्य के शासकों ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया और इस समय की कला, विशेषकर स्तूप और विहारों की संरचना, अत्यंत समृद्ध हुई। पाल कला का सबसे प्रमुख योगदान था “मंडल” और “Read more
पाल साम्राज्य (750-1174 ई.) बौद्ध कला के विशिष्ट रूप के लिए प्रसिद्ध है। इस काल में, बौद्ध कला में अनूठी विशेषताएँ देखी गईं। पाल साम्राज्य के शासकों ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया और इस समय की कला, विशेषकर स्तूप और विहारों की संरचना, अत्यंत समृद्ध हुई। पाल कला का सबसे प्रमुख योगदान था “मंडल” और “प्रतीकात्मक चित्रण” के प्रयोग में।
पाल वंश के दौरान, “पैगोडा” जैसी स्थापत्य कला का विकास हुआ। प्रमुख स्थल जैसे कि नालंदा और ओडंतपुरी में उत्कृष्ट बौद्ध मठ और मंदिरों का निर्माण हुआ। बौद्ध sculptures में “खगोलिय और ब्रह्मा” के चित्रण और जटिल आभूषणों की निर्मिति ने इस काल की कला को विशेष पहचान दिलाई।
पाल कला ने न केवल बौद्ध धर्म को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय कला की वैश्विक पहचान को भी बढ़ावा दिया।
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