छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
आदि शंकराचार्य (788-820 ई.) ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्पष्ट किया, जो तात्त्विक एकता और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है। उनके विचारों ने हिंदू धर्म की विविधता को एकसूत्र में पिरोते हुए वैदिक परंपरा को फिर से प्रतिष्ठितRead more
आदि शंकराचार्य (788-820 ई.) ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्पष्ट किया, जो तात्त्विक एकता और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है। उनके विचारों ने हिंदू धर्म की विविधता को एकसूत्र में पिरोते हुए वैदिक परंपरा को फिर से प्रतिष्ठित किया।
शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की—श्रीशैला, द्वारका, जगन्नाथपुरी, और बदरीनाथ—जो वेदांत के विभिन्न पहलुओं को प्रसारित करने में सहायक सिद्ध हुए। उन्होंने भारतीय समाज में धार्मिक और दार्शनिक अनुशासन को पुनर्जीवित किया, और विभिन्न दार्शनिक तर्कों के माध्यम से अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रमाणित किया।
उनकी कार्यशैली और लेखन—जैसे कि ब्रह्मसूत्र भाष्यम, उपनिषद भाष्यम, और भगवद गीता भाष्यम—ने वैदिक ज्ञान को संजोने और समझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार, शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को एक नई दिशा और स्थायित्व
See less
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे: सामाजिक असंतोष: उस समय की जाति व्यवस्था और ब्राह्मणों की प्रधानता से उत्पन्न सामाजिक असंतोष ने नए धार्मिक और दार्शनिक आंदोलनों को प्रेरित किया। बौद्ध और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था औRead more
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे:
इन कारकों ने बौद्ध और जैन धर्म को महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलनों के रूप में स्थापित किया और भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला।
See less