मुख्य मुद्दे
- विरोधाभास: भारत के शहरी विकास में हरित इमारतों की वृद्धि के बावजूद, अधिकांश शहर ‘दो-घंटे के शहर’ बने हुए हैं, जहाँ निवासियों को लंबी यात्रा और प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।
शहरी शासन कार्यढाँचा
- संवैधानिक आधार:
- 74वाँ संविधान संशोधन (1992) द्वारा शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को संवैधानिक दर्जा।
- तीन प्रकार के निकाय: नगर निगम, नगर परिषदें, नगर पंचायतें।
- त्रिस्तरीय संरचना:
- निर्वाचित विंग: महापौर और नगर परिषद।
- कार्यकारी विंग: नगर आयुक्त या CEO।
- विचार-विमर्श निकाय: वार्ड समितियाँ और स्थायी समितियाँ।
प्रमुख मुद्दे
- शहरी असमानता:
- 25% से अधिक शहरी निर्धनता; 81 मिलियन लोग गरीबी रेखा से नीचे।
- मलिन बस्तियों और गेटेड समुदायों का सह-अस्तित्व।
- जलवायु सुभेद्यता:
- बढ़ते तापमान और चरम मौसमी घटनाएँ; 30% तापजन्य तनाव में वृद्धि।
- 34 मिलियन लोग गर्मी के कारण नौकरी गँवा सकते हैं।
- अपर्याप्त प्रशासन:
- ULBs राजनीतिक और वित्तीय रूप से अशक्त; योजनाएँ अक्सर अर्द्ध-सरकारी एजेंसियों को सौंप दी जाती हैं।
- शहरी गतिशीलता:
- कार-केंद्रित और प्रदूषणकारी; यात्री प्रतिदिन औसतन 1.5-2 घंटे ट्रैफिक में बिताते हैं।
- अनौपचारिकता:
- 90% से अधिक रोज़गार अनौपचारिक; झुग्गियों में रहने वाले 236 मिलियन लोग।
अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ
- 15-मिनट सिटी (पेरिस):
- 15 मिनट की दूरी पर सभी आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध।
- पारगमन-उन्मुख विकास (टोक्यो):
- जन परिवहन केंद्रों के आसपास उच्च घनत्व का विकास।
- हरित अवसंरचना (चीन):
- वर्षा जल अवशोषित करने वाली डिजाइन।
सुझाव
- स्थान-आधारित शहरी शासन:
- महानगरीय और छोटे शहरों के लिए अलग-अलग शासन मॉडल।
- मानव-केंद्रित गतिशीलता:
- सार्वजनिक परिवहन, पैदल मार्ग और साइकिल लेन को प्राथमिकता दें।
- वातावरणीय क्षरण की रोकथाम:
- भवन निर्माण संहिता में संशोधन और ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग को प्रोत्साहित करना।
- सामुदायिक भागीदारी:
- नागरिकों की भागीदारी से बजट और योजनाओं का निर्माण।
आगे की राह
- भारत को समावेशी, जलवायु और लोगों के अनुकूल शहरी संरचना की आवश्यकता है। सतत् विकास के लिए SDG 11 से जुड़ना महत्वपूर्ण है, जिससे सभी के लिए संपन्न शहरों का निर्माण हो सके।