प्रमुख मुद्दे
- विषम उर्वरक नीति:
- अत्यधिक यूरिया सब्सिडी के कारण पोषक तत्वों में गंभीर असंतुलन।
- वर्तमान NPK अनुपात: 7.7:3.1:1 (आदर्श: 4:2:1)।
- मृदा उत्पादकता में गिरावट:
- नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता।
- कृषि उत्पादकता में कमी का दुष्चक्र।
कृषि में मृदा की भूमिका
- खाद्य सुरक्षा:
- मृदा फसल उत्पादन का प्राथमिक माध्यम।
- 1.4 अरब लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
- 2022-23 में खाद्यान्न उत्पादन: 329.7 मिलियन टन।
- जल प्रतिधारण:
- मृदा जल को नियंत्रित करती है, जिससे फसल की स्थिर वृद्धि होती है।
- सूखे के क्षेत्रों में मल्चिंग और कवर क्रॉपिंग।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- मृदा कार्बन अवशोषण में मदद करती है।
- कृषि मृदा की सेहत जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक।
मृदा स्वास्थ्य संकट के कारण
- असंधारणीय कृषि पद्धतियाँ:
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग।
- पंजाब और हरियाणा में गेहूँ-चावल चक्र का प्रभाव।
- जैविक कार्बन की कमी:
- मृदा ऑर्गैनिक कार्बन (SOC) 1% से घटकर 0.3%।
- पराली दहन के कारण पोषक तत्वों का नुकसान।
- मृदा क्षरण और मरुस्थलीकरण:
- 97.85 मिलियन हेक्टेयर भूमि अवनयन का शिकार।
- असंधारणीय खनन और औद्योगिक गतिविधियों का प्रभाव।
समाधान और रणनीतियाँ
- एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM):
- जैविक खाद और नैनो यूरिया को बढ़ावा देना।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उपयोग।
- कृषि वानिकी का विस्तार:
- वृक्षों के साथ फसलों का एकीकरण।
- MGNREGA के माध्यम से वनरोपण को बढ़ावा देना।
- शून्य-जुताई और संरक्षण कृषि को प्रोत्साहित करना:
- शून्य-जुताई से मृदा क्षरण कम होता है।
- हैप्पी सीडर तकनीक का उपयोग।
- स्थायी सिंचाई उपाय:
- ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को अपनाना।
- वर्षा जल संचयन का प्रयोग।
आगे की राह
- भारत का मृदा स्वास्थ्य संकट दीर्घकालिक कृषि संधारणीयता, खाद्य सुरक्षा, और ग्रामीण आजीविका के लिए खतरा है।
- संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन और जैविक सुधारों की आवश्यकता है।