उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना
- संदर्भ: भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति और इसकी महत्ता।
- थीसिस स्टेटमेंट: महत्वपूर्ण निवेश और संभावनाओं के बावजूद, क्षेत्र अविकसित है।
2. संरचनात्मक चुनौतियों का विश्लेषण
- प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र की कमी: लंबे निर्माण समय और गुणवत्ता मानकों की असंगति।
- वित्तपोषण की कमी: उच्च पूंजी लागत और कम लागत पर वित्तपोषण की उपलब्धता।
- आयात पर निर्भरता: विदेशी घटकों और कच्चे माल की आवश्यकता।
- पुरानी बुनियादी ढांचा: शिपयार्ड की छोटी क्षमता और कम स्वचालन।
- घरेलू बाजार का अभाव: नए जहाजों के लिए घरेलू मांग की कमी।
3. नीति उपायों का सुझाव
- घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: PLI योजना का विस्तार और मेक इन इंडिया को सागरमाला कार्यक्रम से जोड़ना।
- समर्पित वित्तीय संस्थान की स्थापना: कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- मौजूदा शिपयार्ड का आधुनिकीकरण: PPP मॉडल के तहत सुधार।
- सतत घरेलू मांग का सृजन: सरकारी खरीद नीति को लागू करना।
- अनुसंधान और विकास में निवेश: राष्ट्रीय समुद्री नवाचार केंद्र की स्थापना।
4. आगे की राह
- संभावनाएँ: आर्थिक विकास और सुरक्षा में योगदान।
- आवश्यकता: ठोस नीतिगत हस्तक्षेप और सुधार।
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भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र: वर्तमान स्थिति
भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र महत्वपूर्ण निवेश और संभावनाओं के बावजूद अविकसित है। 2023 में भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र वैश्विक बाजार में केवल 1-2% हिस्सा रखता है, जबकि चीन और दक्षिण कोरिया का हिस्सेदारी 60% से अधिक है।
प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियाँ
आवश्यकता से कम बुनियादी ढाँचा
भारत में जहाज निर्माण के लिए उपयुक्त बुनियादी ढाँचे की कमी है। अधिकतर डॉक्स और शिपयार्ड पुराने हैं, और आधुनिक तकनीक की कमी है।
महंगी श्रम लागत
जहाज निर्माण उद्योग में श्रमिकों की महंगी लागत एक बड़ी समस्या है। उच्च श्रम लागत अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा में भारत को पिछाड़ देती है।
नीति और प्रशासनिक जटिलताएँ
इस क्षेत्र में कई सरकारी नियम और प्रक्रियाएँ जटिल हैं, जो निवेशकों के लिए अवरोध पैदा करती हैं।
प्रभावी नीति उपाय
बुनियादी ढाँचे में निवेश
सरकार को उन्नत शिपयार्ड और तकनीकी सुधार के लिए निवेश बढ़ाना चाहिए।
टैक्स और सब्सिडी में सुधार
जहाज निर्माण क्षेत्र में टैक्स छूट और सब्सिडी देने से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मदद मिल सकती है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) की स्थापना
शिपयार्ड के लिए SEZs की स्थापना से वैश्विक निवेश आकर्षित किया जा सकता है।
इन उपायों के माध्यम से भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र पुनः प्रगति की ओर बढ़ सकता है।
यह उत्तर भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र की चुनौतियों और संभावित नीतिगत उपायों पर अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है। प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों जैसे अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, महंगी श्रम लागत, और जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है, जो सही और सटीक है। 2023 में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी का उल्लेख (1-2%) करते हुए चीन और दक्षिण कोरिया से तुलना करना इस क्षेत्र की कमजोर स्थिति को स्पष्ट करता है।
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तथ्य और डेटा की कमी:
उत्तर में भारत के प्रमुख शिपयार्ड्स (जैसे मझगांव डॉक, गोवा शिपयार्ड) और उनकी वर्तमान स्थिति का उल्लेख होना चाहिए था।
जहाज निर्माण से संबंधित रोजगार सृजन की संभावनाओं और जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान का कोई डेटा नहीं है।
वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के अन्य कारकों, जैसे पर्यावरणीय मानकों और गुणवत्ता मानकों का उल्लेख नहीं किया गया।
दीर्घकालिक आर्थिक योजना और समुद्री व्यापार से जुड़ी संभावनाओं पर भी चर्चा की जा सकती थी।
सुझाव: अधिक विशिष्ट आंकड़ों और व्यापक विश्लेषण के साथ उत्तर को और समृद्ध किया जा सकता है।
मॉडल उत्तर
प्रस्तावना
भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके विकास में कई बाधाएँ हैं। हालांकि हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण निवेश हुआ है, फिर भी यह अविकसित बना हुआ है। इस लेख में हम इसके विकास में बाधक प्रमुख संरचनात्मक चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे और इसके पुनरुद्धार के लिए प्रभावी नीति उपायों का सुझाव देंगे।
संरचनात्मक चुनौतियों का विश्लेषण
पहली चुनौती है प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र की कमी। भारत के जहाज निर्माण उद्योग में लंबे निर्माण समय और असंगत गुणवत्ता मानकों के कारण भारतीय जहाज वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा, उच्च पूंजी लागत और कम लागत पर वित्तपोषण की कमी भी एक बड़ी बाधा है। भारतीय शिपयार्ड महंगे वाणिज्यिक ऋणों पर निर्भर हैं, जबकि वैश्विक प्रतिस्पर्धी सरकारी सहायता का लाभ उठाते हैं।
आयात पर निर्भरता भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है। भारतीय जहाज निर्माता समुद्री ग्रेड स्टील और अन्य महत्वपूर्ण घटकों के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर हैं। साथ ही, पुरानी बुनियादी ढांचा, जैसे कि छोटे और कम स्वचालित शिपयार्ड, उत्पादन लागत को बढ़ाते हैं। अंत में, नए जहाजों के लिए घरेलू मांग की कमी भी इस क्षेत्र के विकास में बाधा डाल रही है।
नीति उपायों का सुझाव
इन चुनौतियों के समाधान के लिए कई नीति उपायों की आवश्यकता है। सबसे पहले, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का विस्तार किया जाना चाहिए। मेक इन इंडिया को सागरमाला कार्यक्रम के साथ जोड़ने से बंदरगाहों के निकट समर्पित समुद्री औद्योगिक क्षेत्र बनाना संभव होगा।
इसके अलावा, एक समर्पित जहाज निर्माण वित्तीय संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए, जो कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित करे। मौजूदा शिपयार्ड का आधुनिकीकरण भी आवश्यक है, जिसके लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का उपयोग किया जा सकता है।
सरकारी खरीद नीति को लागू करने से भारत में निर्मित जहाजों के लिए सतत घरेलू मांग का सृजन किया जा सकता है। अंत में, अनुसंधान और विकास में निवेश करने के लिए एक राष्ट्रीय समुद्री नवाचार केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए, जो नए तकनीकी नवाचारों को प्रोत्साहित करे।
आगे की राह
भारत के जहाज निर्माण क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं, जो आर्थिक विकास और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। हालांकि, इसके विकास के लिए ठोस नीतिगत हस्तक्षेप और सुधार आवश्यक हैं। यदि इन चुनौतियों का समाधान किया जाता है, तो भारत का जहाज निर्माण उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकता है।