उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना
- महत्वपूर्ण खनिजों की परिभाषा और उनकी महत्ता।
- हरित अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति में इनका योगदान।
2. भारत में महत्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता
- नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, और सेमीकंडक्टर उद्योग में भूमिका।
- राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंध।
3. आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने की चुनौतियाँ
- आयात पर निर्भरता: चीन से 60% दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों का आयात।
- सीमित घरेलू अन्वेषण: केवल 48% खनिज ब्लॉक की नीलामी।
- प्रसंस्करण की अविकसितता: प्रसंस्करण बुनियादी ढाँचे की कमी।
- नीतिगत अंतराल: निवेशकों का विश्वास कम होना।
- भू-राजनीतिक जोखिम: वैश्विक प्रतिस्पर्धा और निर्यात प्रतिबंध।
4. टिकाऊ और रणनीतिक उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय
- केंद्रीकृत प्राधिकरण: अन्वेषण और प्रसंस्करण के लिए एकीकृत निकाय।
- रणनीतिक भंडारण: खनिजों का भंडार बनाना।
- वित्तीय प्रोत्साहन: अग्रिम वित्तीय सहायता।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
- खनिज कूटनीति: वैश्विक साझेदारियों का विस्तार।
- पुनर्चक्रण पहल: ई-अपशिष्ट से खनिजों की पुनर्प्राप्ति।
- उन्नत प्रौद्योगिकी में निवेश: खनन और प्रसंस्करण में दक्षता में सुधार।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: दूरदराज के क्षेत्रों में खनिज भंडार तक पहुँच सुनिश्चित करना।
5. निष्कर्ष
- महत्वपूर्ण खनिजों की रणनीतिक उपलब्धता का महत्त्व।
- भारत की हरित अर्थव्यवस्था में योगदान।
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भारत की हरित अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण खनिज जैसे लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्व आवश्यक हैं। वर्तमान में, भारत 60% से अधिक दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के लिए चीन पर निर्भर है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाओं में जोखिम बढ़ता है।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय प्राधिकरण स्थापित करना चाहिए जो खनन और प्रसंस्करण को संभाले। इसके अलावा, सरकार को अन्वेषण और प्रसंस्करण के लिए अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने चाहिए, जैसे सब्सिडी और कर छूट।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देकर, भारत को विदेशी विशेषज्ञता और निवेश को आकर्षित करना चाहिए। इसके अलावा, रिसाइक्लिंग तकनीकों में निवेश से ई-कचरे से महत्वपूर्ण खनिज प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इस तरह के उपाय भारत को अपने खनिज संसाधनों के लिए आत्मनिर्भर बना सकते हैं।
मॉडल उत्तर
प्रस्तावना
भारत की हरित अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ गई है। ये खनिज नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और उच्च तकनीक वाले उद्योगों के लिए आवश्यक हैं। इसके बावजूद, भारत में महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने में कई चुनौतियाँ हैं।
आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने की चुनौतियाँ
भारत की महत्वपूर्ण खनिजों पर अत्यधिक निर्भरता है, विशेषकर चीन से। वर्तमान में, भारत अपने दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों का 60% आयात करता है। इसके अलावा, घरेलू अन्वेषण की सीमितता और केवल 48% खनिज ब्लॉक की नीलामी ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। प्रसंस्करण की अविकसितता और नीतिगत अंतराल भी निवेशकों का विश्वास कम कर रहे हैं। भू-राजनीतिक जोखिम और वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
टिकाऊ और रणनीतिक उपलब्धता सुनिश्चित करने के उपाय
भारत को क्रिटिकल मिनरल्स के अन्वेषण और प्रसंस्करण के लिए एक केंद्रीकृत प्राधिकरण की आवश्यकता है। इसके साथ ही, रणनीतिक भंडारण को विकसित करना, अग्रिम वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है। खनिज कूटनीति के माध्यम से वैश्विक साझेदारियों का विस्तार करना और पुनर्चक्रण पहलों को अपनाना भी महत्वपूर्ण है। उन्नत खनन प्रौद्योगिकियों में निवेश और बुनियादी ढाँचे का विकास दूरदराज के क्षेत्रों में खनिज भंडार तक पहुँच सुनिश्चित करेगा।
आगे की राह
महत्वपूर्ण खनिजों की रणनीतिक उपलब्धता भारत की हरित अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इन खनिजों के प्रभावी प्रबंधन से न केवल आयात निर्भरता कम होगी, बल्कि आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूती पाएगी।