उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
- भूमिका (Introduction):
- संरक्षणवाद और वैश्वीकरण की परिभाषा।
- वर्तमान संदर्भ में भारत की आर्थिक वृद्धि की स्थिति।
- भारत की आर्थिक वृद्धि पर संरक्षणवाद के प्रभाव (Impact on Economic Growth):
- निर्यात प्रतिस्पर्धा में कमी।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान।
- MSME पर प्रभाव।
- मुद्रास्फीति संबंधी दबाव।
- आत्मनिर्भर भारत की रणनीति (Self-reliant India Strategy):
- संरक्षणवादी उपायों का प्रभाव।
- घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाएं।
- संरक्षणवाद और वैश्वीकरण को संतुलित करने के उपाय (Measures to Balance Protectionism and Globalization):
- रणनीतिक व्यापार साझेदारी को मजबूत करना।
- चयनात्मक उदारीकरण को बढ़ावा देना।
- समुत्थानशील आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण।
- बहुपक्षीय सहभागिता को बढ़ाना।
- बुनियादी अवसंरचना को मजबूत करना।
- निष्कर्ष (Conclusion):
- संरक्षणवाद से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान।
- संतुलित दृष्टिकोण का महत्व।
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मॉडल उत्तर
भूमिका
आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। बढ़ते संरक्षणवाद के साथ, भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि और आत्मनिर्भरता की रणनीति पर गंभीर विचार करना आवश्यक है।
भारत की आर्थिक वृद्धि पर संरक्षणवाद के प्रभाव
संरक्षणवाद ने भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को कम किया है। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों में संरक्षणवादी नीतियों के कारण भारतीय उत्पादों को बाजार में पहुंचने में कठिनाई हो रही है।
इसके परिणामस्वरूप, आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान भी उत्पन्न हो रहा है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण उद्योग प्रभावित हो रहे हैं। इसके साथ ही, छोटे और मध्यम उद्यम (MSME) पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि उनकी मांग में कमी आई है। इसके अलावा, आयात की बढ़ती लागत ने मुद्रास्फीति संबंधी दबाव को बढ़ा दिया है, जिससे आम जनता पर भी नकारात्मक असर पड़ा है।
आत्मनिर्भर भारत की रणनीति
आत्मनिर्भर भारत की रणनीति के तहत भारत ने घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं, जैसे कि उत्पादों पर बढ़े हुए टैरिफ और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाएं। हालांकि, यह उपाय कभी-कभी वैश्वीकरण के लक्ष्यों के विपरीत हो सकते हैं।
संरक्षणवाद और वैश्वीकरण को संतुलित करने के उपाय
भारत को संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाने के लिए कई उपाय अपनाने चाहिए। सबसे पहले, रणनीतिक व्यापार साझेदारी को मजबूत करना चाहिए, जैसे कि भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता। इसके अलावा, चयनात्मक उदारीकरण को बढ़ावा देना चाहिए ताकि कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ सके।
समुत्थानशील आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण भी आवश्यक है, जो कि भारत को महत्वपूर्ण आयातों के लिए एकल देशों पर निर्भरता से मुक्त करेगा। इसके साथ ही, बहुपक्षीय संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी और घरेलू बुनियादी अवसंरचना को मजबूत करना भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
संरक्षणवाद से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा। संरक्षणवाद की चुनौतियों का सामना करते हुए, वैश्वीकरण के लाभों को बनाए रखना आवश्यक है, जिससे भारत की आर्थिक वृद्धि और आत्मनिर्भरता की रणनीति को सशक्त बनाया जा सके।
भारत की आत्मनिर्भर भारत रणनीति, संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाने की चुनौती का सामना कर रही है।
निहितार्थ
उपाय
भारत को संरक्षणवाद और वैश्वीकरण का संतुलन बनाए रखते हुए दीर्घकालिक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करनी चाहिए।
भूमिका
बढ़ते संरक्षणवाद ने वैश्विक व्यापार और निवेश पर दबाव डाला है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और आत्मनिर्भर भारत की रणनीति को प्रभावित करता है।
निहितार्थ
संभावित उपाय
निष्कर्ष
भारत को संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाकर आत्मनिर्भरता और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करनी चाहिए।
भूमिका
बढ़ते संरक्षणवाद के कारण वैश्विक व्यापार सीमित हो रहा है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि और आत्मनिर्भर भारत की रणनीति के लिए चुनौती प्रस्तुत करता है।
निहितार्थ
संभावित उपाय
निष्कर्ष
भारत को संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाते हुए दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिए।